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उत्तराखंड, 

सरकार की नीतियों के परिणाम अब सामने आने लगे हैं. नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि प्रदेश के युवा आज केंद्र सरकार की नीतियों से आक्रोशित है, साथ ही उन्होंने कहा उत्तराखंड में युवाओं के जज्बे के चलते उनका पहला लक्ष्य सेना में भर्ती होना होता है। सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि इसे आत्महत्या कंहे या असंवेदनशील सरकारी तंत्र द्वारा की गई हत्या. बागेश्वर जिले के फरसाली गांव के निवासी 20 वर्षीय कमलेश गोस्वामी द्वारा जो कि एनसीसी का सी सर्टिफिकेट पास था, फिजिकल में 100 नंबर आये, फिर भी अग्निवीर परीक्षा में असफल होने पर सोशल मीडिया में पोस्ट डाल कर जीवन समाप्त करने ने अग्नि वीर परीक्षा के प्रारूप पर प्रश्न चिन्ह लगाने के साथ साथ बेरोज़गारी की भयावहता पर सरकारी फेलियर को उजागर किया है. यह आत्महत्या नहीं बल्कि व्यवस्थागत संगठित हत्या है. यह वही तनाव है जो युवाओं को नौकरी न मिल पाने के कारण इस कदर तनाव में ला रहा है कि वे आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर हैं। गौरतलब है कि अग्निवीर भर्ती के मानकों को लेकर अभ्यर्थी पहले दिन से ही अपना विरोध दर्ज करते रहे हैं।

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कई अभ्यर्थी असफल होने के बाद प्रमाण-पत्र फाड़कर व अन्य तरीकों से नाराजगी जताते देखे गए हैं। कई युवा अंतिम अवसर में असफल होने पर काफी निराश देखे गए हैं। इससे पहले सैनिक बाहुल्य उत्तराखंड में सैनिक भर्ती में असफल होने पर युवाओं की आत्महत्या की खबरें शायद ही सुनी गई हों लेकिन अग्निवीर भर्ती के मानकों को लेकर घर-घर में निराशा, आक्रोश व नाराजगी के स्वर साफ सुने जा रहे हैं। प्रतिभाशाली कमलेश गोस्वामी की आत्महत्या ने पर्वतीय इलाके के युवाओं के सेना में भर्ती के मानकों पर नये सिरे से गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। मानकों में बदलाव से पैदा हुआ संकट—सेना में भर्ती होने के लिए पहले उत्तराखंड के पर्वतीय युवाओं के लिए 163 सेमी ऊंचाई और 1600 मीटर की दौड़ के लिए 5:40 मिनट का समय निर्धारित था, लेकिन अब अग्निवीर भर्ती में 170 सेमी ऊंचाई तथा दौड़ को 5:00 मिनट पर सीमित कर दिया गया है। अग्निवीर भर्ती के मानकों को लेकर उत्तराखंड भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने अगस्त महीने तक लोगों को यह कहकर गुमराह किया कि जल्द ही अग्निवीर भर्ती के मानकों में शिथिलता बरती जाएगी लेकिन किया कुछ भी नहीं। तमाम भर्तियों में लगातार हो रहे फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही के नाम पर तमाम तरह के खिताबों के बावजूद भी कुछ न हो पाना किसी न किसी रूप में युवाओं का मनोबल खत्म कर रहा है।