📍 नैनीताल | संवाददाता रिपोर्ट
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने POCSO अधिनियम (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण कानून) के तहत दोषी ठहराए गए एक आरोपी की 20 साल की सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है।
यह फैसला अदालत ने आरोपी की पत्नी की भावनात्मक अपील को देखते हुए सुनाया 💔।
पत्नी ने कहा कि वह अकेली रह रही है, आर्थिक रूप से कमजोर है और पति की रिहाई के लिए नौकरानी बनकर कानूनी खर्च उठा रही है।
⚡ Highlights (मुख्य बिंदु):
⚖️ हाई कोर्ट ने 20 साल की सजा को निलंबित (Suspended) किया
❤️🩹 पत्नी ने पति की रिहाई के लिए की थी अपील
💬 पत्नी ने कहा — “मैं अकेली रह गई हूं, नौकरानी बनकर कानूनी लड़ाई लड़ रही हूं”
🧾 आरोपी को पहले POCSO Act और IPC की धारा 376(2)(N) में दोषी ठहराया गया था
🕵️♂️ कोर्ट ने कहा — “मामले में ठोस सबूत नहीं, निचली अदालत का फैसला अनुमान आधारित”
🔍 पीड़िता (अब पत्नी) मुकदमे के दौरान अपने बयान से पलट गई थी
🏛️ पूरा मामला: कैसे पहुंचा हाई कोर्ट तक?
यह मामला साल 2022 का है।
पीड़िता के पिता की शिकायत पर आरोपी व्यक्ति के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।
शिकायत में कहा गया था कि आरोपी ने पीड़िता को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया,
जिसके बाद उस पर —
📜 भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण),
📜 धारा 376(2)(N) (बार-बार बलात्कार) और
📜 POCSO अधिनियम की धारा 5(आई) (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत मामला दर्ज हुआ।
जनवरी 2024 में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराया और 20 साल की सजा सुनाई।
🧍♀️ पत्नी की अपील: “मैं असहाय हूं, पर न्याय में भरोसा है” 💔
आरोपी की पत्नी ने हाई कोर्ट में दायर अपील में कहा —
“मैं अकेली रह रही हूं, किसी का सहारा नहीं है।
पति की गिरफ्तारी के बाद मैंने आर्थिक रूप से बहुत कठिन समय झेला है।
अपने पति की कानूनी लड़ाई के खर्च के लिए मैं नौकरानी बनकर काम कर रही हूं।”
उन्होंने कहा कि निचली अदालत ने अनुमान के आधार पर फैसला सुनाया,
जबकि न तो कोई फोरेंसिक सबूत मिले, न प्रत्यक्ष प्रमाण।
⚖️ हाई कोर्ट का अवलोकन — “फैसला सबूतों से नहीं, अनुमानों से हुआ” 🧾
कोर्ट ने बार एंड बेंच की रिपोर्ट के हवाले से कहा —
“यह मामला सबूतों की कमी का नहीं, बल्कि बिना सबूत के दिया गया फैसला प्रतीत होता है।”
हाई कोर्ट ने कहा —
“क्राइम सीन से जुड़ा कोई फोरेंसिक सबूत या ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला
जो आरोपी को अपराध से सीधे जोड़ सके।”
इस आधार पर अदालत ने निचली अदालत के फैसले को ‘चौंकाने वाला’ (Shocking Conviction) बताया
और सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
🧩 कोर्ट ने पीड़िता (अब पत्नी) के पलटे बयान का भी लिया संज्ञान 💬
हाई कोर्ट ने यह भी माना कि मुकदमे के दौरान
पीड़िता (जो अब आरोपी की पत्नी है)
अपने पहले दिए बयानों से पलट गई थी।
उसने कोर्ट में साफ कहा था कि
“आरोपी ने मेरे साथ कोई गलत काम नहीं किया, मैं अपनी मर्ज़ी से गई थी।”
इसके बावजूद निचली अदालत ने अनुमान और पुराने बयान के आधार पर सजा दी थी।
🧭 संपादकीय दृष्टिकोण (Editorial View):
उत्तराखंड हाई कोर्ट का यह फैसला न्याय की मानवीय व्याख्या को दर्शाता है।
यह केस दिखाता है कि जब अदालतें केवल कानून नहीं, बल्कि सत्य और परिस्थिति के आधार पर निर्णय लेती हैं —
तब न्याय संवेदनशील और यथार्थवादी बनता है।
साथ ही, यह घटना फोरेंसिक साक्ष्यों और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता पर भी बड़ा सवाल उठाती है।
🧾 मामले का सारांश (Quick Recap):
🔢 | विवरण | जानकारी |
---|---|---|
📅 | वर्ष | 2022 |
📍 | क्षेत्राधिकार | उत्तराखंड हाई कोर्ट |
⚖️ | अधिनियम | POCSO Act और IPC धारा 363, 376(2)(N) |
🧑⚖️ | निचली अदालत | 20 साल की सजा (जनवरी 2024) |
💬 | अपीलकर्ता | आरोपी की पत्नी |
🧠 | कोर्ट का अवलोकन | सबूतों की अनुपस्थिति और अनुमान आधारित फैसला |
🔓 | परिणाम | आरोपी की सजा निलंबित (Suspension of Sentence) |






