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🧩 POCSO कोर्ट देहरादून का बड़ा फैसला — 20 पन्नों के आदेश में पुलिस विवेचना पर उठाए कई गंभीर सवाल ⚖️


🔹 मुख्य बिंदु (Highlights):

  • 🚨 मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला से गैंगरेप और शिशु का सौदा करने के आरोप में दोनों आरोपी बरी

  • ⚖️ जज रजनी शुक्ला ने कहा — “पुलिस जांच दूषित और अधूरी रही”

  • 📄 कोर्ट ने 20 पेज के फैसले में पुलिस विवेचना में कई कमियां गिनाईं

  • 👮‍♀️ एसएसपी देहरादून को चेतावनी — “ऐसी गलतियां भविष्य में न दोहराई जाएं”

  • ⛓️ आरोपी सुरेश 2019 से जेल में, वहीं शंकर को 2023 में मिली जमानत


⚖️ देहरादून: सबूतों के अभाव में बरी हुए आरोपी, पुलिस पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी 💥

देहरादून की पोक्सो कोर्ट ने सोमवार को मानसिक रूप से विक्षिप्त किशोरी के साथ गैंगरेप और उसके गर्भस्थ शिशु के सौदे के सनसनीखेज मामले में दोनों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया।

यह ऐतिहासिक फैसला पोक्सो कोर्ट की जज रजनी शुक्ला ने सुनाया। कोर्ट ने पुलिस की जांच को “दूषित” बताते हुए कहा कि विवेचना में गंभीर लापरवाही बरती गई।


🧾 पृष्ठभूमि: 2019 में सामने आया था यह मामला 📅

घटना मार्च 2019 की है, जब सेलाकुई पुल के नीचे एक मानसिक रूप से कमजोर गर्भवती महिला पाई गई थी।
सामाजिक कार्यकर्ता पूजा बहुखंडी ने 19 मार्च 2019 को सहसपुर थाने में गैंगरेप की शिकायत दर्ज कराई थी।

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एफआईआर में आरोप था कि महिला का लंबे समय से शोषण हो रहा है और उसने बताया कि वह तीन व्यक्तियों — एक बाबा, मिस्री उर्फ सुरेश और शंकर के संपर्क में रही थी।
तहरीर में यह भी उल्लेख था कि महिला के गर्भस्थ शिशु का सौदा डिलीवरी से पहले ₹22,000 में कर दिया गया था।

मामले की जांच एसआई लक्ष्मी जोशी को सौंपी गई।
26 जून 2019 को पुलिस ने बिहार निवासी मिस्त्री उर्फ सुरेश मेहता और यूपी के शंकर उर्फ साहिब के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।


📜 20 पन्नों में दर्ज कठोर टिप्पणियाँ: पुलिस पर कोर्ट की फटकार 🔍

जज रजनी शुक्ला ने अपने 20 पन्नों के फैसले में लिखा कि —

“पूरे मामले की शुरुआत ‘बाबा’ की बताई बातों पर हुई, लेकिन पुलिस ने उसे जांच में शामिल ही नहीं किया। यह विवेचक की घोर लापरवाही है।”

कोर्ट ने कहा कि “यदि पीड़िता मानसिक रूप से विक्षिप्त थी, तो उससे जन्मे शिशु को उसके पास क्यों छोड़ा गया?”
यह तथ्य विवेचक को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

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अदालत ने कहा कि महिला के मानसिक स्वास्थ्य की पुष्टि का कोई ठोस कानूनी प्रमाण नहीं दिया गया, और “पीड़िता कहां रही, उसकी स्थिति क्या रही — इसका कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं।”


⚠️ कोर्ट ने डीएम और एसएसपी को भेजा आदेश 🚨

अदालत ने मामले में डीएम देहरादून को आदेश भेजा है कि वे रिपोर्ट दें —

“पीड़िता और उसके बच्चे की वर्तमान स्थिति क्या है, और उन्हें उचित देखभाल मिल रही है या नहीं।”

साथ ही एसएसपी देहरादून को भी आदेश भेजा गया है कि वे इस फैसले को संज्ञान में लेकर भविष्य में ऐसी दूषित विवेचनाओं को रोकने के ठोस कदम उठाएं।


⛓️ 2019 से जेल में रहा सुरेश, अब हुआ रिहा 🕊️

पुलिस ने जांच के दौरान 30 मार्च 2019 को मिस्त्री उर्फ सुरेश मेहतो को और 5 मई 2019 को शंकर उर्फ साहिब को गिरफ्तार किया था।
सुरेश मेहतो गिरफ्तारी के बाद से अब तक जेल में था, जबकि शंकर को 18 जुलाई 2023 को जमानत मिली थी।

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अब कोर्ट के फैसले के बाद दोनों को बरी कर दिया गया है।


📚 बचाव पक्ष की दलीलें 🔖

बचाव पक्ष के अधिवक्ता आशुतोष गुलाटी और रजनीश गुप्ता ने अदालत में कहा कि पुलिस जांच एकतरफा और अधूरी थी।
उन्होंने तर्क दिया कि “पेश किए गए साक्ष्य न केवल अपर्याप्त हैं, बल्कि कई महत्वपूर्ण तथ्य अदालत से छिपाए गए।”

कोर्ट ने इन दलीलों को उचित ठहराते हुए कहा कि “प्रमाणों के अभाव में अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में विफल रहा।”


🧠 महिला जज का संदेश: जांच एजेंसियों को सीखने की जरूरत 📍

अदालत ने टिप्पणी की —

“पुलिस को यह समझना होगा कि हर केस सिर्फ चार्जशीट दाखिल करने से खत्म नहीं होता। निष्पक्ष जांच ही न्याय की नींव है।”


🧩 Conclusion:

इस फैसले ने न सिर्फ पुलिस जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी याद दिलाया है कि “न्याय केवल सजा देने में नहीं, बल्कि निष्पक्षता साबित करने में भी निहित है।” ⚖️
देहरादून की अदालत का यह निर्णय भविष्य में जांच एजेंसियों के लिए एक अहम सीख साबित हो सकता है।

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By Editor