उत्तराखंड में हजारों उपनल कर्मचारियों (UPNL Workers) के नियमितीकरण और न्यूनतम वेतनमान न दिए जाने के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर कड़ा रुख अपनाया है।
कोर्ट ने सरकार से सवाल किया है कि —
“कर्मचारियों का चरणबद्ध नियमितीकरण अब तक क्यों नहीं किया गया?”
“समान कार्य के लिए समान वेतन क्यों नहीं दिया जा रहा?”
⚠️ कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यदि 20 नवंबर तक स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया, तो सरकार पर “आरोप तय” किए जा सकते हैं।
🧾 मामला क्या है?
यह सुनवाई उत्तराखंड उपनल कर्मचारी संघ की अवमानना याचिका पर बुधवार को न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ में हुई।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने दलील दी कि वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि
-
एक वर्ष के भीतर चरणबद्ध नियमितीकरण किया जाए,
-
और छह माह में न्यूनतम वेतन दिया जाए।
👉 लेकिन इन आदेशों का पालन आज तक नहीं हुआ है।
🏛️ सरकार का पक्ष
सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि
“इस मामले में सात सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है और कर्मचारियों का डेटा संकलित किया जा रहा है।”
हालांकि, अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंच रही है, जबकि आदेश 2018 से लंबित हैं।
📜 पृष्ठभूमि
2018 में हाईकोर्ट ने उपनल कर्मियों के पक्ष में ऐतिहासिक आदेश जारी किया था।
इसके तहत सभी उपनल कर्मियों को एक वर्ष में नियमित किए जाने और समान वेतनमान देने के निर्देश दिए गए थे।
इसके बाद राज्य सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन
अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा और राज्य की याचिका खारिज कर दी।
🗓️ अब अगली सुनवाई
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि 20 नवंबर तक सरकार ने ठोस और लिखित जवाब नहीं दिया, तो अवमानना कार्यवाही शुरू की जा सकती है।


