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सोशल मीडिया पर लंबे समय से जारी ब्लॉगर कल्पना रावत और यूके बादशाह के बीच का वॉर अब पुलिस के दरवाजे तक पहुंच गया है। मामले में कल्पना रावत ने हल्द्वानी कोतवाली में तहरीर देकर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिस पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आरोपी के खिलाफ बीएनएस की धारा 79 और 352 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

📌 क्या है मामला?

चांदनी चौक घुड़दौड़ा निवासी और लोकप्रिय सोशल मीडिया ब्लॉगर कल्पना रावत ने आरोप लगाया है कि पिछले छह महीनों से यूके बादशाह नामक यूट्यूब चैनल चलाने वाला व्यक्ति — जिसकी पहचान राहुल नेगी के रूप में हुई है — लगातार उनके खिलाफ आपत्तिजनक और चरित्र हनन करने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर डाल रहा है।

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कल्पना रावत का कहना है कि उन्होंने इस बाबत कई बार पुलिस से शिकायत की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई न होने के चलते वे मानसिक रूप से परेशान हो गईं। मामला तब और गंभीर हो गया जब कल्पना ने एक भावुक वीडियो जारी कर आत्महत्या तक की बात कही। वीडियो में उन्होंने साफ कहा कि अगर उन्हें कुछ होता है तो उसके जिम्मेदार राहुल नेगी (यूके बादशाह) होंगे।

🤝 समझौते की कोशिश नाकाम

बताया जा रहा है कि दोनों पक्षों के बीच आपसी समझौते की भी कोशिश की गई, लेकिन बात नहीं बन सकी। अब यह मामला औपचारिक रूप से पुलिस के संज्ञान में है।

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कोतवाल राजेश कुमार यादव ने जानकारी देते हुए बताया कि ब्लॉगर कल्पना रावत की तहरीर के आधार पर आरोपी राहुल नेगी के खिलाफ बीएनएस की धारा 79 (साइबर उत्पीड़न) और 352 (आपराधिक धमकी और मारपीट) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। जांच प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है और जल्द ही सभी पक्षों के बयान दर्ज किए जाएंगे।

👩‍💼 ब्लॉगर की मांग: चैनल प्रतिबंधित हो

कल्पना रावत ने पुलिस से यह भी आग्रह किया है कि यूके बादशाह नामक चैनल को प्रतिबंधित किया जाए ताकि आगे किसी और को इस तरह की साइबर प्रताड़ना का सामना न करना पड़े।

🔎 क्या कहते हैं साइबर कानून विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी व्यक्ति की छवि को जानबूझकर नुकसान पहुंचाया जा रहा हो, या सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर उसे मानसिक प्रताड़ना दी जा रही हो, तो यह आईटी एक्ट के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।

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📌 निष्कर्ष:
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ इस तरह के मामलों में वृद्धि भी देखने को मिल रही है। इस घटना ने फिर से यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में किसी की प्रतिष्ठा और मानसिक शांति को ठेस पहुंचाना कहां तक उचित है।


 

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