भारतीय टीम बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में कमाल कर रही है और 2-0 की बढ़त बना चुकी है. दोनों ही मैच 3-3 दिन में खत्म हो गए हैं, इसके बाद एक बहस भी शुरू हुई है कि भारत में टेस्ट मैच इतनी जल्दी खत्म हो रहे हैं, विरोधी टीम आखिर क्यों यहां टिक नहीं पा रही हैं.
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क्रिकेट का सबसे अल्टीमेट फॉर्मेट यानी टेस्ट क्रिकेट. जब टी-20 फॉर्मेट में क्रिकेट फैन्स के दिल मंर जगह बनाई तब हर किसी को डर सता रहा था कि टेस्ट क्रिकेट पर खतरा है और यह खत्म हो जाएगा. कुछ वक्त के लिए ऐसा लगा भी कि टेस्ट क्रिकेट को लेकर लोगों की दिलचस्पी खत्म हो रही है, लेकिन जब बड़े क्रिकेटर्स ने टेस्ट क्रिकेट को अहम बताया और इस ओर ज़ोर दिया तब लोगों का ध्यान फिर इधर आया.
भारतीय टीम टेस्ट क्रिकेट में भी लंबे वक्त से बेहतर प्रदर्शन कर रही है, पहले विराट कोहली की अगुवाई में टीम इंडिया लगातार 3-4 साल तक नंबर-1 बनी रही और अब रोहित शर्मा की अगुवाई में भी नंबर-1 की गद्दी दूर नहीं बची है. लेकिन इस सबके बीच एक चिंता जो फैन्स के साथ-साथ एक्सपर्ट्स को भी खा रही है, वह बाहरी टीमों का भारत में आकर फेल हो जाना है.
भारतीय स्पिनर्स का हौवा…
ऑस्ट्रेलिया की टीम जब सीरीज़ के लिए भारत आई तब उसके दिमाग में सबसे बड़ा खौफ भारतीय स्पिनर्स को लेकर था. भारतीय उपमहाद्वीप में स्पिन बॉलिंग खेलना एक चैलेंज होता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने इसे जिस तरह से देखा यह काफी ज्यादा लगा. कंगारू टीम ने अक्षर पटेल के पुराने वीडियोज़ देखे, क्योंकि इंग्लैंड के खिलाफ हुई पिछली सीरीज़ में अक्षर पटेल सबसे सफल साबित हुए थे.
सबसे अंचभित करने वाला रविचंद्रन अश्विन की तरह बॉल करने वाले बॉलर को नेट बॉलर बनाना था. नेट बॉलर का एक्शन, बॉल करने का तरीका अश्विन की तरह था. लेकिन शायद अश्विन वाली प्लानिंग और अनुभव उसके पास नहीं था. ऑस्ट्रेलिया पर यह खौफ दोनों ही टेस्ट मैचों में साफ दिखा, लेकिन दिल्ली में तो कंगारू टीम की कलई पूरी तरह से खुल गई.
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अभी इस सीरीज़ के दो ही मैच हुए हैं और भारत के रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा ने ऑस्ट्रेलिया के कुल 31 विकेट झटक लिए हैं. दिल्ली टेस्ट की दूसरी पारी में तो ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाजी देखने लायक थी, क्योंकि जिस तरह से डरकर वह स्वीप और रिवर्स स्वीप शॉट खेल रही थी. इसी वजह से उसके अधिकतर विकेट क्लीन बोल्ड और एलबीडब्ल्यू आउट हुए
तीन दिन के टेस्ट मैच…
नागपुर टेस्ट तीन दिन में खत्म हो गया था, वहां कुल 3 पारियां हुईं. दिल्ली टेस्ट भी 3 दिन में खत्म हुआ, यहां चार पारियां हुईं. ऐसा सिर्फ इस सीरीज़ में ही नहीं बार-बार हो रहा है. इससे पहले इंग्लैंड, बांग्लादेश जैसी टीमें जब भारत आईं, तब भी 3 दिनों में मैच खत्म हुए हैं. इंग्लैंड के खिलाफ अहमदाबाद में हुआ टेस्ट तो 2 दिनों में खत्म हो गया था, अफगानिस्तान का टेस्ट भी 2 दिन में खत्म हो गया था.
भारत में 3 दिन में मैच खत्म होना फैन्स के साथ-साथ क्रिकेट एक्सपर्ट्स की भी चिंता बढ़ा रहा है. पूर्व क्रिकेटर आकाश चोपड़ा ने दिल्ली टेस्ट के बाद कहा, ‘भारत में टेस्ट मैच का पांचवें दिन ना पहुंचना अब नया नॉर्मल है. इसका टेस्ट क्रिकेट पर कितना प्रभाव पड़ता है, यह भी देखना होगा. अगर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी टीमें भी यहां मुकाबला नहीं कर पा रह हैं तो भारत में आने वाले चार साल में टेस्ट क्रिकेट का क्या होगा?’
सिर्फ आकाश चोपड़ा ही नहीं बल्कि अन्य कई फैन्स, एक्सपर्ट्स ने भी इस बात का जिक्र किया. क्योंकि सिर्फ खेल के स्तर पर ही नहीं अन्य स्तर पर भी इसका असर पड़ता है. भारत ने पिछले पांच साल में करीब 18 टेस्ट मैच घर में खेले हैं, इनमें से 16 में जीत मिली है और अधिकतर मैच 3-4 दिन की सायकल में खत्म हो गए हैं.
पिच की क्वालिटी के अलावा यहां दर्शकों को चौथे-पांचवें दिन टिकट खरीदवाना, ब्रॉडकास्टर्स के लिए चौथे-पांचवें दिन के लिए विज्ञापन लेना और अन्य सभी बातें भी ध्यान में रखी जा रही हैं. क्योंकि अगर भारत में तीन दिन में टेस्ट खत्म होना नया नॉर्मल है, तो चौथे-पांचवें दिन को लेकर चिंताएं होना लाज़िमी है.
ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड जैसे देशों में अभी भी पांच दिन तक टेस्ट क्रिकेट का रोमांच दिख रहा है, जहां आखिरी दिन के आखिरी ओवर तक टीमों को जीत के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. ऐसे में वक्त आ गया है कि बीसीसीआई को अब पिचों को टेस्ट क्रिकेट के हिसाब से तैयार करने का सोचना होगा.