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उत्तराखंड में नमामि गंगे प्रोजेक्ट में चमोली में जिस STP में करंट लगने से बड़ी दुर्घटना हुई थी जिसमें 16 व्यक्तियों की जान गई थी, उसका पूरा ढांचा इंजीनियरों ने लोहे और टीन का खड़ा कर दिया।

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जबकि जिस स्थान पर पूरा काम ही बिजली के उपकरणों का है, वहां विशेषज्ञों की नजर में लोहे और टीन से परहेज किया जाना चाहिए था। टीन की जगह ईंट की दीवारें खड़ी की जानी चाहिए थी। ऐसे में STP के पूरे डिजाइन एवं निर्माण पर ही सवाल उठ रहे हैं। STP निर्माण को 87 लाख का बजट नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत जल निगम को मिला। निर्माण का जिम्मा प्राइवेट कंपनी को दिया गया, मगर डिजाइन एवं निर्माण की शर्तें जल निगम ने ही तय की।

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वही अवसर पर जल निगम ने एसटीपी का जो शेड तैयार किया है, उसकी छत से लेकर दीवारें तक टीन की हैं। इसी शेड की जो सीढ़ी और रेलिंग हैं, वो भी पूरी तरह लोहे की हैं। इसी लोहे की शेड से सटा कर बिजली की तारें गुजार दी गईं। इन बिजली की तारों को प्लास्टिक के पाइप का प्रोटेक्शन नहीं दिया गया। यही बिजली की केबिल टीन की दीवारों से सटी हुई हैं। बरसात में इस हालत को जानकार खतरनाक बता रहे हैं। UPCL के निदेशक ऑपरेशन एमएल प्रसाद ने बताया कि बरसात में टीन से सट कर यदि केबिल गुजरती है, तो इससे करंट का खतरा बढ़ जाता है।

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अब ऐसे में प्रश्न उठ रहा है कि 87 लाख का बजट उपलब्ध होने के बाद भी क्यों टीन का शेड खड़ा किया गया।

जब STP परिसर में निर्माण में ईंट का उपयोग नहीं हुआ, तो इतना बजट कहां खपाया गया। इसका जवाब अधिकारीयों से देते नहीं बन रहा है। मौके पर UPCL के काम, टीन शेड, टैंक समेत सभी कार्यों को जोड़ कर कुल बजट से कम बताया जा रहा है। जल निगम की टीम मौके पर पहुंच गई है। पूरे प्रकरण की जल निगम के स्तर पर भी जाँच की जा रही है। विद्युत यांत्रिक की टीम ने मौके पर जाकर तथ्य जुटाने आरम्भ कर दिए हैं। मौके पर हुए निर्माण से जुड़े सभी पहलुओं को भी देखा जा रहा है।

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