खबर शेयर करें -

आखिरकार दिल्ली पुलिस ने अपनी गलती सुधार ही ली. अंजली केस की इस पुरानी एफआईआर में आईपीसी की धारा 304 को हटा कर अब नई धारा 302 जोड़ दी गई है. अंजलि केस की जांच कर रहे जांच अधिकारी इंस्पेक्टर रजनीश कुमार ने खुद ये जानकारी दी है कि एफआईआर में नई धारा 302 जोड़ दी गई है.

दिल्ली पुलिस ने अंजलि कांड को आखिरकार कत्ल मान ही लिया है. साथ ही इस मामले में अब आईपीसी की धारा 302 भी लगा दी गई है. मगर सवाल ये है कि क्या कत्ल का मुकदमा अंजलि केस के सातों आरोपियों पर चलेगा? या फिर सिर्फ उन चार लोगों पर.. जिन्होंने हादसे वाली रात कार से अंजलि को सड़क पर मरने तक घसीटा था. वैसे इस बात पर भी बहस होने लगी है कि आखिर अदालत में 302 का ये मुकदमा कहां तक टिक पाएगा? ऐसी ही एक वारदात नोएडा में भी हुई थी, उसका अंजाम जानना भी दिलचस्प होगा.

दिल्ली पुलिस ने सुधार ली गलती
तो आखिरकार दिल्ली पुलिस ने अपनी गलती सुधार ही ली. अंजली केस की इस पुरानी एफआईआर में आईपीसी की धारा 304 को हटा कर अब नई धारा 302 जोड़ दी गई है. अंजलि केस की जांच कर रहे जांच अधिकारी इंस्पेक्टर रजनीश कुमार ने खुद ये जानकारी दी है कि एफआईआर में नई धारा 302 जोड़ दी गई है. अब इस नए बदलाव के साथ ही कम से कम कानूनी पन्नों में ये साफ हो गया है कि अंजलि का कत्ल हुआ है और इसी नई धारा 302 के तहत अब ये मुकदमा ट्रायल के लिए अदालत में जाएगा.

चार आरोपियों पर हत्या का केस चलना तय
हालांकि पुरानी एफआईआर में आईपीसी की धारा 304 में एक साथ सात आरोपियों को लपेट दिया गया था. जबकि जिस वक्त ये हादसा हुआ तब कार में सिर्फ चार लोग थे. बाकी तीन आरोपियों की मदद करने के गुनहगार थे. लेकिन अब 302 जोड़ते ही ये तय है कि ये धारा सिर्फ उन चार लोगों पर ही लगेगी, जो हादसे वाली रात कार में सवार थे. यानी कार चला रहा अमित खन्ना, कृष्ण, मिथुन और मनोज मित्तल. बाकी तीन आरोपियों में से दो आशुतोष और अंकुश पहले ही जमानत पर बाहर हैं. बचा दीपक, जिसने ये झूठ बोला था कि हादसे वाली रात वही कार चला रहा था, वो बाकी चारों के साथ फिलहाल जेल में बंद है. अब देखना ये है कि जो तीन आरोपी हादसे के वक्त मौके पर मौजूद ही नहीं थे, क्या उन पर गैर इरादतन हत्या यानी 304 के तहत मुकदमा दर्ज होगा?

दिल्ली पुलिस ने अभी तैयार नहीं की चार्जशीट
तो दबाव में ही सही दिल्ली पुलिस ने अंजलि केस में कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया. मगर सवाल ये है कि क्या वो धारा 302 के तहत ट्रायल के दौरान अदालत में ये केस मजबूती से रख पाएगी? ये सवाल इसलिए है क्योंकि धारा जोड़ने का काम भले ही पुलिस का हो, लेकिन अदालत में बहस वकील को करना है और फैसला जज साहब या जज साहिबा को सुनाना है. हालांकि अभी इस केस में दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट भी तैयार नहीं की है. लेकिन थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि मौजूदा सूरत-ए-हाल में इस केस का ट्रायल अदालत में शुरू हो चुका है.

कुछ ऐसा होगा अदालत में सूरत-ए-हाल
जाहिर है दिल्ली पुलिस के वकील 302 की ही वकालत करेंगे. मगर आरोपियों के वकील और जज का रवैया क्या होगा? ये जानना हर किसी के लिए दिलचस्प होगा. तो चलिए इस केस के फैक्ट्स को सामने रखते हुए जाने-माने वकील और हाई कोर्ट की रिटायर्ड जज से समझते हैं कि 302 या 304 का ये पेंच आगे चल कर फंसेगा या नहीं? सीनियर वकील केटीएस तुलसी की मानें तो ये 302 के लिए फिट केस है. जबकि दिल्ली हाई कोर्ट की रिटार्यड जज उषा मेहरा का कहना है कि शायद ये 304 के लिए फिट केस है.

यह भी पढ़ें -  हल्द्वानी रोडवेज बस में महिला से लाखों के आभूषण चोरी, पुलिस ने दर्ज किया मामला

इरादा साबित कर सकती है पुलिस
तो इनमें से एक पूर्व जज हैं और एक वकील. इनकी बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अंजलि केस ट्रायल के लिए अदालत में पहुंचेगा, तो उसकी तस्वीर कुछ ऐसी ही होगी. कानून के जानकारों की मानें तो मामला मकसद और इरादे के बीच फंसेगा. कत्ल के मामले में मकसद और इरादा यानी मोटिव और इंटेंशन दोनों साबित करना होता है. अजलि केस में अब तक बरामद सबूत को देखते हुए दिल्ली पुलिस इंटेशन यानी इरादा बड़ी आसानी से अदालत में साबित कर सकती है. पुलिस के पास सीसीटीवी कैमरे की तस्वीरों की शक्ल में बाकायदा इसके सबूत भी हैं. सबूत के साथ-साथ निधि की शक्ल में एक चश्मदीद भी है.

आरोपियों ने अंजलि को कार के नीचे फंसा देखा
कैमरे में कैद तस्वीरें और चश्मदीद ये बता और दिखा रहे हैं कि कार सवार लोगों ने कम से कम दो बार कार से उतर कर अंजलि को कार के नीचे फंसा देखा था. यानी वो जानते थे कि एक इंसान उनके कार के नीचे है. फिर भी वो कार चला रहे थे. यानी इंटेशन या इरादा साफ था. उन्हें पता था कि ऐसा करने से उसकी मौत हो सकती है और उन्होंने पूरी जानकारी होने के बावजूद ऐसा ही किया. इस हिसाब से इंटेशन यानी इरादा को लेकर कोई शक नहीं है.

कत्ल के मकसद पर फंसेगा मामला
मगर जहां तक मकसद की बात है, कानून के जानकारों के हिसाब से 302 और 304 के बीच पेच यहीं आकर फंसेगा. केस की इकलौती चश्मदीद से लेकर आरोपियों के बयान और तमाम साइंटिफिक सबूत यही बताते हैं कि कार और स्कूटी की टक्कर अचानक हुई. कार में सवार आरोपियों और स्कूटी पर सवार अंजलि और निधि का आपस में कोई कनेक्शन नहीं था. एक दूसरे को ये लोग जानते भी नहीं थे. यानी पहले का कोई रिश्ता नहीं था. सभी एक दूसरे से अंजान थे. हादसा भी अचानक हुआ. ऐसे में मकसद को ढूंढना और अंजलि केस में उस मकसद को जोड़ना दिल्ली पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी.

क्या ऐसा हो पाएगा?
वैसे जिस तरह से अंजलि केस में धाराओं को लेकर ट्विस्ट आया है, वो आनेवाले वक्त में एक नजीर भी साबित हो सकता है. अभी तक सड़क हादसे के मामले में अमूमन गैर इरादतन हत्या यानी 304 की धारा लगा करती थी. पर अगर अंजलि केस निचली अदालत और हाई कोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जाती है, जो कि जाना ही है, और सुप्रीम कोर्ट भी इस केस को 302 के तहत ही ट्रीट करती है तो फिर आने वाले वक्त में सड़क हादसे में होनेवाली मौत को लेकर 302 की धारा ज्यादा देखने को मिलेगी. मगर क्या ऐसा हो पाएगा? तो इसे समझने के लिए अंजलि जैसे ही एक सड़क हादसे के केस को समझते हैं.

यह भी पढ़ें -  हल्द्वानी रोडवेज बस में महिला से लाखों के आभूषण चोरी, पुलिस ने दर्ज किया मामला

नोएडा में हुई थी ऐसी ही वारदात
6 दिसंबर 2022 को नोएडा में एक जगुआर कार ने एक स्कूटी को टक्कर मार दी थी. स्कूटी दीपिका त्रिपाठी नाम की एक लड़की चला रही थी. वो अपने घर से दफ्तर जा रही थी. हादसे में मौके पर ही दीपिका की मौत हो जाती है. बाद में पुलिस जगुआर चला रहे सैमुअल को गिरफ्तार कर लेती है. जांच में पता चलता है कि सैमुअल कुछ और कार चालकों के साथ सड़क पर रेस लगा रहा था. पुलिस सैमुअल के खिलाफ गैर इरादतन हत्या यानी 304 के तहत मुकदमा दर्ज करती है. हालांकि उसी दिन उसे जमानत भी मिल जाती है. सैमुअल की रिहाई पर लोग गुस्सा हो जाते हैं. लोगों के गुस्से को देखते हुए नोएडा के पुलिस कमिश्नर अगले दिन धारा 304 हटाकर सैमुअल के खिलाफ 302 यानी हत्या का मुकदमा दर्ज करा देते हैं. सैमुअल को फिर से गिरफ्तार कर लिया जाता है. उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया जाता है.

नोएडा केस में ऐसे हटी थी धारा 302
इसके बाद जमानत के लिए अदालत में बहस होती है. दिल्ली हाई कोर्ट के एक सीनियर वकील कोर्ट पहुंचते हैं. उनकी पूरी दलील ये थी कि हादसा अचानक हुआ था. बेशक लापरवाही  की वजह से हादसा हुआ. मगर सैमुअल का इरादा या मकसद स्कूटी सवार दीपिका को मारने का नहीं था. तो जब मकसद या इरादा जान लेने का ही नहीं था, तो फिर सैमुअल के खिलाफ हत्या का मुकदमा कैसे दर्ज हो सकता है? अदालत में हुई जिरह के बाद जज ने नोएडा पुलिस को लताड़ लगाते हुए साफ कहा कि ये मामला 304 का तो हो सकता है, मगर 302 का नहीं. इसके बाद सैमुअल के ऊपर से 302 की धारा हटा दी गई.

मध्य प्रदेश की घटना भी बनी थी मिसाल
एक दूसरी मिसाल मध्य प्रदेश की है. राज्य के सिहोर में सुमनबाई नाम की एक महिला को जला कर मार दिया जाता है. सुमन बाई एक शख्स के साथ अकेले रहा करती थी. चार दिसंबर 1993 को सुमन बाई का साथी रात को घर आता है और खाना मांगता है. सुमन की तबीयत ठीक नहीं थी. मगर उसने खाना बना रखा था. वो अपने साथी से कहती है कि किचन में जाकर खुद से खाना खा ले. बस इतनी सी बात पर उसके साथी को इतना गुस्सा आता है कि वो किचन में रखे मिट्टी के तेल की बोतल सुमन पर डाल कर उसे जला देता है. बाद में मामला अदालत में पहुंचता है. सिहोर के एडिशनल सेशन जज सुमन के साथी को धारा 302 के तहत उम्रकैद की सजा सुनाते हैं.

सुमन का साथी इस फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में अपील करता है. 14 नवंबर 2022 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट अपना फैसला सुनाती है. हाई कोर्ट का कहना था कि सुमन के साथी ने अचानक गुस्से में उसे जला कर मारा था. यानी उसका मकसद और इरादा पहले से कत्ल का नहीं था. ये गुस्से में अचानक हुआ एक कत्ल था, इसलिए सुमन के साथी पर धारा 302 के तहत मुकदमा चलाना ही गलत है. इसके बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सुमन के साथी को धारा 304 यानी गैर इरादतन हत्या के तहत दस साल कैद की सजा सुनाई.

यह भी पढ़ें -  हल्द्वानी पुलिस ने पकड़ी 14.92 ग्राम अवैध स्मैक, एक गिरफ्तार

तो इसमें से पहला केस वो था, जो 304 से 302 में तब्दील हुआ. उसका हश्र भी आपने देखा. और दूसरा केस वो जो 302 से 304 में बदल गया. उसका नतीजा भी आपने देखा. अब अंजलि केस अदालत में कौन सा करवट लेगा, ये तो ट्रायल शुरू होने के बाद ही पता चलेगा.

चर्चित बीएमडब्ल्यू केस
बात 10 जनवरी 1999 की है. जब पूर्व नौसेना प्रमुख एसएस नंदा के पोते संजीव नंदा ने अपनी बीएमडब्ल्यू कार से फुटपाथ पर सो रहे 6 लोगों को कुचलकर मार डाला था. संजीव नंदा पर IPC की धारा 304 के तहत मुकदमा चला. और सजा हुई फकत दो साल की.

एलिस्टर परेरा केस
मुंबई में साल 2006 में एलिस्टर परेरा नाम के एक शख्स ने अपनी कार से सात लोगों को कुचल डाला था. एलिस्टर पर भी IPC की धारा 304 के तहत मुकदमा चला. सजा मिली फकत तीन साल.

सलमान खान हिट एंड रन केस
28 सितंबर 2002 को मुंबई में एक बेकरी के बाहर सो रहे पांच लोगों को सलमान खान की कार ने कुचल दिया था. जिनमें से एक की मौत हो गई थी जबकि चार घायल हो गए थे. सलमान पर भी बाकी धाराओं के अलावा IPC की धारा 304 के तहत मुकदमा चला. सजा हुई महज पांच साल की. अभी सुप्रीम कोर्ट से आखिरी फैसला आना बाकी है.

ये मामले बानगीभर 
ये सारे केस सिर्फ बानगीभर हैं. IPC की धारा 304 के तहत ऐसे नामालूम कितने सैकड़ों और हजारों केस हैं, जिनमें गुनहगार मामूली सज़ा के बाद बरी हो गए. जरा सोचिए यहां तो सड़क हादसे में सिर्फ एक अंजलि की मौत हुई थी. जबकि अकेले बीएमडब्लयू वाले संजीव नंदा और एलिस्टर परेरा ने ही अपनी अपनी गाडियों से कुल 13 लोगों को कुचल कर मार डाला था. लेकिन इसके बावजूद ये दोनों सिर्फ 3 और 2 साल की सजा काट कर बाहर आ गए. अगर अंजलि केस में दिल्ली पुलिस सचमुच 302 को इसके अंजाम तक ईमानदारी से पहुंचा दे, तो फिर यकीन मानिए ना सिर्फ देश में सड़क हादसों में कमी आ जाएगी, बल्कि लापरवाही से गाड़ी चलानेवाले भी डरेंगे.

आप शायद यकीन नहीं करेंगे कि हमार देश में अकेले सड़क हादसे में करीब 1.50 लाख लोग मारे जाते हैं. दुनिया के किसी भी देश में सड़क हादसे में होने वाली मौत के मामले में हमारा देश पहले नंबर पर है. जाहिर है इस डरावने से आंकडे से बचने के लिए लापरवाह ड्राइवरों को सख्त कानून और सजा से डराना भी जरूरी है.