नई दिल्ली।
प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) में प्रवेश के लिए आयोजित JEE Advanced 2025 को लेकर आई जॉइंट इंप्लीमेंटेशन कमेटी (JIC) की रिपोर्ट ने पूरे शैक्षणिक जगत में हलचल मचा दी है। रिपोर्ट में सामने आया है कि इस बार मात्र 92 अंकों पर जनरल कैटेगरी में सीट मिल गई, जबकि सुपर न्यूमेरी सीट में तो सिर्फ 80 अंक वाली छात्रा को एडमिशन मिला।
सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब आरक्षित वर्ग की सीटों के आँकड़े आए। रिपोर्ट के मुताबिक –
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EWS कैटेगरी: 78 अंक पर ही एडमिशन।
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OBC कैटेगरी: छात्र को 74 अंक और छात्रा को मात्र 66 अंक पर सीट।
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SC कैटेगरी: 46 और 43 अंक पर एडमिशन।
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ST कैटेगरी: 41 और यहाँ तक कि सिर्फ 37 अंक (360 में से 10%) पर भी IIT सीट।
शिक्षा विशेषज्ञ देव शर्मा का कहना है कि “आरक्षण नीति ने शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब एक ही परीक्षा में एक ओर 250+ अंक वाला छात्र सीट पाने से चूक जाता है, तो दूसरी ओर 37 अंक वाला IIT में प्रवेश पा लेता है, यह मेरिट और भविष्य दोनों के साथ समझौता है।”
यह आँकड़े साफ़ बताते हैं कि आरक्षण के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं की संतुलन और निष्पक्षता पर गहरा असर पड़ा है। जनरल कैटेगरी के प्रतिभाशाली छात्र जहाँ उच्च अंक लाकर भी सीट से वंचित रह जाते हैं, वहीं दूसरी ओर कम अंकों पर भी एडमिशन मिल जाना पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर देता है।
मूल सवाल — “पढ़ाई में आरक्षण या योग्यता?”
आज देश के सामने मूल प्रश्न यही है—क्या शिक्षा और तकनीकी संस्थानों जैसे IITs, IIMs, AIIMS में आरक्षण जारी रहना चाहिए या यहाँ केवल मेधा (Merit) को ही सर्वोपरि बनाया जाना चाहिए?
क्योंकि यदि आने वाली पीढ़ी को शिक्षा की शुरुआत से ही बराबरी का अवसर नहीं दिया गया, तो “न्याय” की इस नीति की कीमत “गुणवत्ता” और राष्ट्र के भविष्य को चुकानी पड़ सकती है।
👉 आपका क्या मानना है?
क्या शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह आरक्षण मुक्त कर केवल मेधा आधारित बनाना चाहिए❓
या फिर वर्तमान स्वरूप में आरक्षण जारी रखना ज़रूरी है❓
📢 यह खबर बहस को जन्म देगी, और समाज में गहरी सोच की आवश्यकता को रेखांकित करेगी।





