वन्यजीव सप्ताह के तहत इन दिनों स्कूल गांव व अन्य जगहों पर जागरूकता अभियान चल रहे हैं। बाघ हाथी और गुलदार के व्यवहार के बारे में बताया जा रहा है ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष पर नियंत्रण पाया जा सके मगर जंगल के अंदर इन वन्यजीवों के साथ क्या हो रहा है और क्या हो चुका है वन विभाग को खुद वर्षों बाद भी कुछ नहीं पता है।
वन्यजीव सप्ताह के तहत इन दिनों स्कूल, गांव व अन्य जगहों पर जागरूकता अभियान चल रहे हैं। बाघ, हाथी और गुलदार के व्यवहार के बारे में बताया जा रहा है, ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष पर नियंत्रण पाया जा सके, मगर जंगल के अंदर इन वन्यजीवों के साथ क्या हो रहा है और क्या हो चुका है, वन विभाग को खुद वर्षों बाद भी कुछ नहीं पता है।
मामला अज्ञात मौतों से जुड़ा है, जिसमें जंगल का राजा यानी बाघ और हाथी-बाघ भी शामिल है। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 11 साल में कुमाऊं की अहम डिवीजन तराई केंद्रीय में अज्ञात मौतों का आंकड़ा कोई पांच-दस प्रतिशत नहीं, बल्कि 50 प्रतिशत से ज्यादा है। उत्तराखंड को वनसंपदा और वन्यजीवों की आबादी के लिहाज से समृद्ध माना जाता है।
जुलाई में जारी बाघ गणना के अनुसार यहां 560 बाघ हैं। वहीं हाथी तीन साल पहले हुई गिनती में 2026 पाए गए थे। बाघ और हाथियों की ज्यादा संख्या तराई के क्षेत्र में है। पश्चिमी वृत्त के तहत आने वाली तराई केंद्रीय डिवीजन में हल्द्वानी, भाखड़ा, टांडा, पीपलपड़ाव, गदगदिया, रुद्रपुर और बरहैनी रेंज आती है। दैनिक जागरण ने आरटीआइ से जानकारी मांगी थी कि जनवरी 2012 से जनवरी 2023 के बीच कितने बाघ, गुलदार और हाथियों की मौत हुई।
जवाब मिला कि इन 11 साल में नौ बाघ, 22 हाथी और 28 गुलदारों की डिवीजन के जंगल में मौत हुई है। 58 में से 28 की मौत की वजह वन विभाग को पता है, लेकिन 31 मामलों में उसने ‘अज्ञात’Ó जवाब दिया। इसमें 13 गुलदार, 12 हाथी और छह बाघ शामिल हैं। दूसरी तरफ वन विभाग सालों बाद भी पता नहीं लगा सका कि इनके मरने की वजह क्या थी।
अज्ञात मौतों की स्थिति
वन विभाग ने दैनिक जागरण को आरटीआइ में बताया है कि 2012-13 में तीन, 2013-14 में दो, 2016-17 में दो, 2017-18 में दो, 2019-20 में दो, 2020-21 में एक और 2022-23 में एक गुलदार की मौत की वजह पता नहीं चली, जबकि बाघों की 2013-14 में एक, 2016-17 में एक, 2017-18 में दो, 2018-19 में एक, 2021-22 में एक की अज्ञात मौत हुई है। वहीं, 2013-14 में एक हाथी, 2015-16 में दो, 2017-18 में तीन, 2018-19 में दो, 2019-20 में एक और 2021-22 में तीन हाथियों की मौत की वजह पता नहीं चल सकी।
28 की वजह ट्रेन, करंट, तार और जख्म
बाघ, गुलदार और हाथी के 28 मामलों में वन विभाग ने मौत की वजह बताई है। ट्रेन से कटकर, घायल होकर, करंट लगने और स्वभाविक मौत को भी वजह बताया गया है। वहीं, चार गुलदारों ने तार में फंसकर अपनी जान गंवा दी। तार में फंसाना शिकारियों की रणनीति होती है।
वन्यजीवों की मौत को लेकर 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में वजह का पता न चलना हैरानी वाली बात है। हाथी जैसे बड़े जानवर की अज्ञात मौत से सवाल भी उठते हैं। इससे पता चलता है कि जांच में किसी तरह की कमी होगी। इन मामलों की उच्च स्तर से जांच होनी चाहिए। वन विभाग के कर्मचारी इन घटनाओं में विशेषज्ञ के तौर पर काम नहीं कर सकते।
– बीडी सुयाल, सेवानिवृत्त पीसीसीएफ