नैनीताल उच्च न्यायालय ने गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई कर अहम निर्णय दिया है। HC की खंडपीठ में अंग्रेजी में पीएचडी घनश्याम पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए विवि पर 50 हजार जुर्माना लगाते हुए विवि की अकादमिक परिषद को विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर आरुषि उनियाल की योग्यता पर निर्णय लेने को कहा है।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई कर अहम निर्णय दिया है।
खंडपीठ में अंग्रेजी में पीएचडी घनश्याम पाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए विवि पर 50 हजार जुर्माना लगाते हुए विवि की अकादमिक परिषद को विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर आरुषि उनियाल की योग्यता पर निर्णय लेने को कहा है।
अन्य विषयों में योग्यता वाले व्यक्ति को दूसरे विषय पर नहीं हो सकती नियुक्ति
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि भाषाविज्ञान में योग्यता रखने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी, आधुनिक यूरोपीय और अन्य विदेशी भाषाओं के विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है। जबकि विश्वविद्यालय ने अपने जवाबी हलफनामे में बताया कि यूजीसी विनियम, 2018 में कहा गया है कि संबंधित विषय योग्यता रखने वाले व्यक्ति को उस विभाग के लिए सहायक प्रोफेसर बनने के लिए नियुक्त किया जा सकता है।
विश्वविद्यालय ने दलील दी कि उन्होंने अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसरों के साथ-साथ उक्त विभाग के डीन और अध्यक्ष सहित एक “विशेषज्ञ समिति” नियुक्त की, जिसने याचिकाकर्ता घन श्याम पाल के साथ-साथ प्रतिवादी आरुषि उनियाल की उम्मीदवारी की अंग्रेजी, आधुनिक यूरोपीय और अन्य विदेशी भाषाओं के विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर जांच की।
योग्यता पर दोबारा विचार करेगी अकादमिक परिषद
इस मामले में खंडपीठ ने निर्णय दिया है कि यह अकादमिक परिषद है, न कि विशेषज्ञ समिति, जो किसी आवेदक की उम्मीदवारी का निर्णय करेगी। न्यायालय ने डा. आरुषि उनियाल की नियुक्ति को केवल इस सीमा तक रद कर दिया है कि भाषाविज्ञान में उनकी योग्यता पर अकादमिक परिषद की ओर से दोबारा विचार किया जाएगा।
कोर्ट ने गढवाल विवि पर लगाया 50 हजार का जुर्माना
अगर अकादमिक परिषद इस निर्णय पर पहुंचती है कि भाषाविज्ञान में योग्यता रखने वाले उम्मीदवार को अंग्रेजी, आधुनिक यूरोपीय और अन्य विदेशी भाषाओं के विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए संबंधित विषय, तो उस स्थिति में, उनकी सेवाएं बिना किसी ब्रेक के जारी रहेंगी और अगर अकादमिक परिषद निर्णय लेती है कि भाषाविज्ञान प्रासंगिक नहीं है और अंग्रेजी, आधुनिक यूरोपीय और अन्य विदेशी भाषाओं विभाग के लिए संबद्ध विषय हुआ तो याचिकाकर्ता घन श्याम पाल को नियुक्ति दी जाएगी।
कोर्ट ने इस मामले में विश्वविद्यालय पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया है।