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बीते 9 दिसंबर को भारत और चीन (China) के सैनिकों के बीच अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के तवांग (Twang) में झड़प हुई, जिसके बाद से दोनों देशों के बीच टेंशन जारी है. चीनी सीमा पर भारतीय वायुसेना (IAF) का युद्धाभ्यास भी जारी है. इस बीच, भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट (Gorkha Regiment) की खूब चर्चा हो रही है. गोरखा रेजिमेंट ऐसी रेजिमेंट है जिससे लड़ाई करने में चीनी सैनिक थर-थर कांपते हैं. गोरखा रेजिमेंट का लोहा अमेरिका-ब्रिटेन तक मानते हैं. भारत की आजादी से पहले गोरखा रेजिमेंट हिटलर की सेना के खिलाफ भी लड़ चुकी है. आइए जानते हैं कि गोरखा रेजिमेंट को इतना खतरनाक क्यों माना जाता है?

बता दें कि गोरखा राइफल्स की 7 रेजिमेंट भारतीय सेना में हैं. गोरखा रेजिमेंट में भारत और नेपाल दोनों देशों के सैनिक भर्ती हो सकते हैं. भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल मानेकशॉ भी गोरखा रेजिमेंट के अफसर थे. इसके अलावा देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत भी गोरखा रेजिमेंट से थे. कारगिल युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान देने वाले परमवीर चक्र विजेता शहीद मनोज पांडे भी गोरखा रेजिमेंट के थे. गोरखा रेजिमेंट शूरवीरों के नामों से भरी हुई है.

जान लें कि एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद 1816 में सुगौली संधि हुई थी, जिसके बाद ब्रिटिश भारत के प्रयास से गोरखा रेजिमेंट की पहली बटालियन बनाई गई थी, जिसका नाम नसीरी रेजिमेंट रखा गया था. हालांकि, बाद में इसका नाम बदल दिया गया. भारत की आजादी के बाद से गोरखा रेजिमेंट भारत और ब्रिटिश सेना दोनों का हिस्सा आज भी है. एंग्लो-नेपाल जंग में ब्रिटिश सैन्य अधिकारी नेपाल के नागरिकों के साहस से बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने इन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया था.

गौरतलब है कि गोरखा रेजिमेंट के जवानों की पहचान तिरछी गोरखा हैट और उनकी खुकरी है. खुकरी एक तरह का चाकू होता है जो आगे की तरफ से मुड़ा हुआ होता है. गोरखा रेजिमेंट का नारा ‘जय महाकाली, आयो गोरखाली’ है.गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना का अभिन्‍न हिस्‍सा है. गोरखा रेजिमेंट ने देश के लिए कई सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया है और दुश्मनों को धूल चटाई है.

भारत आज 1971 में पाकिस्तानी सेना पर हुई जीत को विजय दिवस के रूप में मना रहा है. इस युद्ध में गोरखा रेजिमेंट ने बड़ा शौर्य दिखाया था. तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के सिलहट में 6000 पाकिस्तानी सैनिकों के सामने गोरखा रेजिमेंट के करीब 800 जवान थे. फिर भी युद्ध के दौरान डर के मारे पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए और गोरखा रेजिमेंट के शूरवीरों के सामने घुटने टेक दिए. पाकिस्तानी सैनिक पूरे 9 दिन भी गोरखा रेजिमेंट के सामने नहीं टिक पाए थे.