हिंदू पंचांग के अनुसार, मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन यानी षष्ठी तिथि को होती है. षष्ठी तिथि 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 11.17 बजे से लेकर 9 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12.14 बजे तक रहने वाली है.
मां कात्यायनी नवदुर्गा का छठा स्वरूप है. नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी की हो समर्पित है. अपने इस स्वरूप में देवी मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं. लेकिन अगर आपके विवाह, प्रेम संबंध या वैवाहिक जीवन से जुड़ी कोई समस्या है तो इस शारदीय नवरात्रि में मां कात्यायनी की उपासना से विशेष लाभ मिल सकता है. आइए आपको मां कात्यायनी की पूजन विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में बताते हैं.
षष्ठी तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के छठे दिन यानी षष्ठी तिथि को होती है. षष्ठी तिथि 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 11.17 बजे से लेकर 9 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12.14 बजे तक रहने वाली है.
कैसे करें मां कात्यायनी की पूजा?
गोधूली वेला में पीले या लाल कपड़े पहनकर इनकी पूजा करनी चाहिए. इनको पीले फूल और पीली मिठाई अर्पित करें. मां के इस स्वरूप को शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है. मां को सुगन्धित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे और साथ ही प्रेम से जुड़ी बाधाएं भी दूर होंगी. इसके बाद मां के सामने उनके मंत्रों का जाप करें.
मां कात्यायनी का भोग
नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं. देवी को शहद का भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटें. इससे आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी.
कौन सी कामनाएं पूरी करेंगी मां कात्यायनी?
कन्याओं के शीघ्र विवाह के लिए इनकी पूजा अद्भुत मानी जाती है. मनचाहे विवाह और प्रेम विवाह के लिए भी इनकी उपासना की जाती है. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इनकी पूजा फलदायी होती है. अगर कुंडली में विवाह के योग क्षीण हों तो भी देवी कृपा से विवाह हो जाता है. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो देवी की उपासना में नियम-कायदों का विशेष महत्व है. विवाह के मामलों में इनकी पूजा अचूक होती है.
मां कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे. उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया. इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया. उनकी कोई संतान नहीं थी. मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया. कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया. तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया. कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया