खबर शेयर करें -

छावनी बोर्ड के अध्यक्ष ब्रिगेडियर विजय मोहन चौधरी की अध्यक्षता में तीन दिन पहले हुई बैठक में लैंसडौन नगर का नाम हीरो ऑफ द नेफा महावीर चक्र विजेता शहीद राइफलमैन बाबा जसवंत सिंह रावत के नाम पर जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव पारित किया गया है।

लालकुआं : बिन्दुखत्ता राजस्व गाँव को लेकर आम जनता में संका का माहौल, गली नुक्कड़ में चर्चाओं का बाजार गर्म क्या राजस्व गांव बनेगा ?

छावनी परिषद ने वर्षों पुराने छावनी नगर का नाम लैंसडौन से परिवर्तित कर जसवंतगढ़ करने का सुझाव रक्षा मंत्रालय को भेजा है। रक्षा मंत्रालय ने पूर्व में छावनी बोर्ड से नाम बदलने संबंधी सुझाव मांगा था। अब तीन दिन पहले हुई छावनी बोर्ड की बैठक में लैंसडौन का नाम वीर शहीद जसवंत सिंह के नाम से जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

यह भी पढ़ें -  हरिद्वार में गंगा घाट के पास नॉनवेज खाने पर हंगामा, खोखा स्वामी की पिटाई

छावनी बोर्ड की कार्यालय अधीक्षक विनीता जखमोला ने इसकी पुष्टि की है। बताया कि छावनी बोर्ड के अध्यक्ष ब्रिगेडियर विजय मोहन चौधरी की अध्यक्षता में तीन दिन पहले हुई बैठक में लैंसडौन नगर का नाम हीरो ऑफ द नेफा महावीर चक्र विजेता शहीद राइफलमैन बाबा जसवंत सिंह रावत के नाम पर जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव को कैंट के प्रमुख संपदा अधिकारी मध्य कमान लखनऊ के माध्यम से रक्षा मंत्रालय को भेजा है।

रुद्रपुर -ट्रांजिट कैंप में अज्ञात कारणों से युवक की मौत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से होगा कारणों का खुलासा

यह भी पढ़ें -  दिल्ली-मुंबई जाने वालों के लिए गुड न्यूज, लालकुंआ से इस दिन शुरू होगी एक और ट्रेन

प्रस्ताव में यह भी उल्लेख है कि आम जनता लैंसडौन नगर का नाम बदलने का विरोध कर रही है। यदि इस नगर का नाम बदलना है तो भारत-चीन युद्ध के महानायक वीर जसवंत सिंह के नाम पर जसवंतगढ़ किया जाना तर्कसंगत होगा। बोर्ड बैठक में बोर्ड सचिव शिल्पा ग्वाल, बोर्ड के मनोनीत सदस्य अजेंदर रावत आदि शामिल रहे।

कौन थे बाबा जसवंत सिंह रावत

पौड़ी जिले के बीरोंखाल ब्लॉक के दुनाव ग्राम पंचायत के बाड़ियूं गांव में 19 अगस्त, 1941 को जसवंत सिंह रावत का जन्म हुआ था। उनके पिता गुमान सिंह रावत और माता लीला देवी थीं जिस समय वे शहीद हुए उस समय वह गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में सेवारत थे। 1962 का भारत-चीन युद्ध अंतिम चरण में था। चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश के तवांग से आगे तक पहुंच गए थे। भारतीय सैनिक भी चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला कर रहे थे।

यह भी पढ़ें -  इन राशियों के लिए बड़ी खुशखबरी, आर्थिक तंगी से मिलेगी राहत, भाग्य देगा साथ और सूर्य की होगी कृपा

जसवंत सिंह रावत सेला टॉप के पास की सड़क के मोड़ पर तैनात थे। इस दौरान वह चीनी मीडियम मशीन को खींचते हुए वह भारतीय चौकी पर ले आए और उसका मुंह चीनी सैनिकों की तरफ मोड़कर उनको तहस-नहस कर दिया। 72 घंटे तक चीनी सेना को रोककर अंत में 17 नवंबर, 1962 को वह वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत वह महावीर चक्र से सम्मानित हुए।

You missed