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उत्तराखंड में अब दंगाइयों की खैर नहीं है. क्योंकि, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तर्ज पर अब उत्तराखंड में भी सार्वजनिक और निजी संपत्ति क्षति वसूली बिल को धामी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. ऐसे में अब नुकसान की भरपाई दंगाइयों से की जाएगी. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार यह कानून दो साल पहले ही ला चुकी है, अब धामी सरकार ने भी कैबिनेट बैठक में अहम निर्णय लिया है. जिसके तहत दंगा और अशांति में सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति वसूली, नुकसान पहुंचाने वालों से की जाएगी. इसके लिए क्लेम ट्रिब्यूनल का गठन किया जाएगा.

उत्तराखंड सचिवालय में धामी मंत्रिमंडल की बैठक हुई. बैठक में सार्वजनिक निजी संपत्ति क्षति वसूली एक्ट को कैबिनेट में मंजूरी दी गई. हाल ही में हल्द्वानी के बनभूलपुरा हिंसा के दौरान सरकार को इस कानून की कमी खली थी. तब से ही उत्तराखंड में इस एक्ट की चर्चाएं तेज हो गई थी. इस तरह का एक्ट उत्तर प्रदेश में पहले ही लागू है. इसके तहत उत्तर प्रदेश में निजी भूमि क्षति वसूली कानून के तहत तमाम अपराधियों पर तत्काल कार्रवाई की गई, जिसे आम जनता ने भी जमकर सराहा.

क्या होता है निजी संपत्ति क्षति वसूली कानून?

सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 के प्रावधानों के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है, जिसके बाद वो दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती है. इसके अलावा उस पर जुर्माना भी लग सकता है. ऐसे मामलों में दोषी को सजा और जुर्माना दोनों का भी प्रावधान है.

कानून के मुताबिक, सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्ति को तब तक जमानत नहीं मिलती है, जब तक वो नुकसान की पूरी तरह यानी 100 फीसदी भरपाई नहीं कर देता है. यह भारत सरकार का कानून है, जो कि सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 के नाम से लागू है. वहीं, इस कानून को अलग-अलग राज्यों ने अपनाया है और इसमें कुछ संशोधन भी किए गए हैं.

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इस कानून में संशोधन करते हुए कई राज्यों ने सार्वजनिक और सरकारी भूमि को नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्ति कड़ी कार्रवाई के प्रावधान किए हैं. उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इस एक्ट को बेहद सख्त बनाया गया है तो वहीं अब उत्तराखंड में भी इसकी कवायद शुरू की गई जा रही है, जिस पर कैबिनेट ने अप्रूवल भी दे दिया है.

क्या बोले सचिव गृह शैलेश बगोली? 

उत्तराखंड के सचिव गृह शैलेश बगोली ने बताया कि यदि कोई किसी सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो ऐसे मामलों में FIR तो दर्ज होती ही है, लेकिन नए एक्ट के प्रावधानों के अनुसार लोकल सर्किल ऑफिसर अपनी एक रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेजेगा. जिसमें नुकसान की भरपाई को लेकर एक क्लेम ट्रिब्यूनल का गठन किया जाएगा. जिसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जज के माध्यम से होगी और इस ट्रिब्यूनल में और भी सदस्य होंगे.

इस तरह के मामले इसी क्लेम ट्रिब्यूनल में जाएंगे, जहां पर क्षति की गई संपत्ति की भरपाई को लेकर कार्रवाई चलेगा. उन्होंने बताया कि क्लेम ट्रिब्यूनल चाहे तो ऐसे मामलों में कमिश्नर कोर्ट का भी गठन कर सकता है. इसमें पूरी कार्रवाई के बाद कोर्ट असेसमेंट करेगा कि कितना और किस तरह का नुकसान किया गया है? जिसके बाद उसकी भरपाई को लेकर वसूली की कार्रवाई की जाएगी.

गौर हो कि सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हड़ताल, बंद, धरना या विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारी या उपद्रवी अगर सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं और इससे सरकारी और निजी संपत्तियों को भी नुकसान होता है तो इसकी क्षतिपूर्ति यानी नुकसान की भरपाई के लिए अब तक उत्तराखंड में कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी. लिहाजा, इस कानून के तहत दंगे करने और अशांति फैलाने वालों पर सरकार अब सख्ती से पेश आएगी.

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दरअसल, धामी सरकार ने ‘दंगारोधी’ यानी दंगे के दौरान होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए देश के सबसे कठोर (अध्यादेश) कानून को मंजूरी दे दी है. इस कानून के तहत अब निजी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर दंगाइयों से क्षति की पूरी वसूली की जाएगी. इसके अलावा 8 लाख तक का जुर्माना और दंगा नियंत्रण में सरकारी अमले और अन्य कार्य पर आने वाले खर्चे की भरपाई भी की जाएगी. आज मंत्रिमंडल ने इस कानून को मंजूरी देकर राज्यपाल की स्वीकृति को भेज दिया है.

बता दें कि उत्तराखंड में धामी सरकार कड़े और बड़े फैसलों से नए-नए इबारत लिख रही है. देश का सबसे बड़ा नकल विरोधी कानून लागू करने और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को मंजूरी देने के बाद आज धामी कैबिनेट ने दंगा रोकने और दंगाइयों से निपटने को लेकर उत्तराखंड लोक निजी संपत्ति क्षति वसूली कानून 2024 पर मुहर लगा दी है.

इस कानून से राज्य में दंगा, हड़ताल, बंद जैसे उपद्रव और अशांति के दौरान निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने वाले अब बच नहीं पाएंगे. कानून के मुताबिक क्षति पर संपत्ति के नुकसान की वसूली के साथ कड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी. खासकर सरकारी, निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई के अलावा दंगे के दौरान किसी के अंग-भंग करने पर भी इलाज का पूरा खर्चा दंगाई से वसूला जाएगा.

इसके अलावा दंगा नियंत्रण को पुलिस, प्रशासन या अन्य एजेंसियों पर दंगे के दौरान होने वाले पूरे खर्चे की वसूली भी की जाएगी. सरकार ने अन्य सजा और कार्रवाई के साथ दंगाइयों पर इस कानून से 8 लाख तक का जुर्माना लगाने का भी निर्णय लिया है. दंगाइयों से सख्ती से निपटने को सरकार ने विधिवत दावा अधिकरण (क्लेम ट्रिब्यूनल) गठित करने को भी मंजूरी दे दी है. ताकि, कानून लागू होते ही अधिकरण के माध्यम से दंगाइयों पर कड़ी नकेल कसी जा सके.

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क्लेम ट्रिब्यूनल को कार्रवाई के अधिकार:

दंगाइयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने पर उत्तराखंड लोक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2024 के तहत कार्रवाई की जाएगी. इसके लिए सरकार ने विधिवत दावा अधिकरण (क्लेम ट्रिब्यूनल) को भी मंजूरी दे दी है. इसी ट्रिब्यूनल के तहत दंगाइयों और उनके परिजनों, संपत्ति आदि से नुकसान की भरपाई की जाएगी. इसके लिए एडीएम श्रेणी के अधिकारी को दावा आयुक्त की जिम्मेदारी दी गई है. जबकि, दावा अधिकरण में रिटायर्ड जज के अलावा अन्य सदस्यों को शामिल किया गया है.

संविधान में दी गई यह व्यवस्था: 

सरकार ने कैबिनेट में इस कानून को मंजूरी के बाद राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेज दिया है. अभी वर्तमान में विधानसभ सत्र नहीं चल रहा है तो ऐसे में भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 के खंड 1 की ओर से प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल कर राज्यपाल को इस कानून को राज्य में लागू करने के अधिकार प्राप्त है. राज्यपाल की मंजूरी के बाद राज्य में धामी सरकार का तीसरा बड़ा निर्णय और कानून ‘उत्तराखंड लोक निजी संपत्ति वसूली अध्यादेश 2024’ राज्य में लागू हो जाएगा.

क्या होता है ट्रिब्यूनल: 

ट्रिब्यूनल एक कानूनी प्रणाली होती है, जो किसी विशेष प्रकार के मामलों का निर्णय लेने के लिए गठित की जाती है. यह सामान्य न्यायिक प्रक्रिया के बाहर की स्थिति में काम करता है. जो विशेष विधियों या कानूनों के अनुसार निर्धारित किए गए होते हैं. ट्रिब्यूनल के निर्णय अक्सर अंतिम होते हैं और उन्हें अपील या संशोधित नहीं किया जा सकता है.

ट्रिब्यूनल कई विभिन्न क्षेत्रों में हो सकते हैं, जैसे व्यवसाय, श्रम, कर, कला और सांस्कृतिक विवादों, आदिवासी और उपनिवेशीय समुदायों के मामलों के लिए इन ट्रिब्यूनल्स में आमतौर पर न्यायिक अधिकारियों की ओर से फैसले किए जाते हैं, जो कई मामलों में अधिक समर्थ होते हैं. क्योंकि, वे उन क्षेत्रों की विशेषज्ञता रखते हैं.