केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की उन 20 फाइलों पर फिर से विचार करने को कहा है जो हाईकोर्ट में जजों की अपॉइंटमेंट से जुड़ा है. सूत्रों के मुताबिक, इनमें वकील सौरभ कृपाल की भी फाइल शामिल है, जो खुद के समलैंगिक होने के बारे में बता चुके हैं. केंद्र की मुख्य आपत्ति यह भी है कि सौरभ कृपाल स्विस नागरिक हैं.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की अपॉइंटमेंट की प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों ने बताया, ‘सिफारिश किये गए नामों पर केंद्र सरकार ने कड़ी अपत्ति जताई है और 25 नवंबर को फाइलें कॉलेजियम को वापस कर दीं.’ उन्होंने कहा कि इन 20 मामलों में से 11 नए मामले हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने नौ मामलों को दोहराया है. इनमें दो कलकत्ता हाईकोर्ट से, दो केरल हाईकोर्ट से और पांच इलाहाबाद हाईकोर्ट से थे. मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) के अनुसार, अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अपने फैसले को दोहराता है, तो सरकार नामों को अधिसूचित करने के लिए बाध्य है.
‘दोहराए जाने के बाद देनी होगी मंजूरी’
सोमवार को जस्टिस संजय किशन कौल की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने न्यायिक दखल के खिलाफ चेतावनी देते हुए सरकार से कॉलेजियम की ओर से मंजूर किए गए नामों पर कार्रवाई करने को कहा. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि एक बार सिफारिश दोहराए जाने के बाद नामों को मंजूरी देनी होगी.
पूर्व CJI के बेटे हैं सौरभ कृपाल
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन वी रमण की अगुआई वाली कॉलेजियम ने वकील सौरभ कृपाल के नाम की सिफारिश दिल्ली हाईकोर्ट में बतौर जज की थी. सौरभ कृपाल देश के पूर्व चीफ जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे हैं. दिल्ली हाई कोर्ट कॉलेजियम की ओर से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को कृपाल का नाम अक्टूबर, 2017 में भेजा गया था. लेकिन बताया जा रहा है कि कृपाल के नाम पर विचार करने को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने तीन बार टाला. वकील कृपाल ने हाल ही में कहा था कि उन्हें लगता है कि उनकी उपेक्षा का कारण उनका यौन रुझान है.
जस्टिस रमण से पहले सीजेआई रहे जस्टिस एसए बोबडे ने कथित रूप से सरकार से कहा था कि वह कृपाल के बारे में और ज्यादा जानकारी मुहैया कराए. इसके बाद जस्टिल रमण की अगुआई वाली कॉलेजियम ने नवंबर, 2021 में कृपाल के हक में फैसला लिया. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कॉलेजियम की ओर से शीर्ष अदालत में जज नियुक्ति किये जाने के लिए सिफारिश किए गए नामों को मंजूरी देने में केंद्र सरकार की देरी को लेकर नाराजगी जताई और कहा कि इससे नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावी रूप से हतोत्साहित होती है.