उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त को आई भीषण आपदा का जख्म अब भी ताजा है। बादल फटने और उसके बाद हुई भारी बारिश व भूस्खलन ने गाँव और वहां काम करने वाले मजदूरों की जिंदगी बदल कर रख दी। बाढ़ के मलबे में दबकर अब तक छह लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई लोग अब भी लापता हैं, जिनका कोई सुराग नहीं मिल पाया है।
इन लापता लोगों में बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के 11 मजदूर भी शामिल हैं। मगलहिया गांव के आठ और घोघा पंचायत के तीन मजदूर, जिनमें एक ही परिवार के देवराज शर्मा और उनके दो बेटे भी हैं—इनकी तलाश अब तक नतीजा नहीं दे पाई। परिजनों ने हर उम्मीद टूटने के बाद अपनों की याद में उनके पुतले बनाकर अंतिम संस्कार किया और अब श्राद्ध की तैयारी में जुट गए हैं।
आख़िरी बात और फिर सन्नाटा…
हादसे से ठीक पहले इन मजदूरों ने अपने घरवालों से बात की थी—’बारिश तेज़ है, कमरे में ही हैं’… और फिर कुछ ही घंटों में सब कुछ तबाह कर देने वाली खबर आई। तभी से उनके नंबर बंद हैं। खोज-बीन थमती नहीं, लेकिन आसार भी नहीं। प्रशासन, एनडीआरएफ, सेना—हर एक टीम राहत और रेस्क्यू में जुटी है, लेकिन आस-पास का सारा इलाका मलबे में तब्दील है, रास्ते बिखरे पड़े हैं, और कई घर-परिवार उम्मीद के सहारे जिए जा रहे हैं।
पूरे गाँव पर कहर का साया
धराली का पूरा मार्केट, मकान, होटल, होमस्टे—सब कुछ पानी और मलबे ने अपने साथ बहा दिया। रेस्क्यू अभी भी जारी है, लेकिन हर बीतता दिन परिजनों के घाव को और गहरा कर रहा है।
जब शव नहीं मिले, तो पुतले जला दिए…
सोचिए, उन परिवारों की हालत जिन्हें अपनों की लाश तक नसीब नहीं हुई। उनकी आत्मा की शांति के लिए पुतले बनवाकर अंतिम संस्कार किया गया। अब माताएं, बहनें, पत्नियाँ, बच्चों के साथ श्राद्ध की तैयारी कर रही हैं, आँखों में आँसू और दिल में चट्टान-सा बोझ।
यह घटना सिर्फ एक गाँव या एक राज्य की नहीं, पूरे देश को झकझोरती है—किसी की माँ, किसी का बेटा, किसी का भाई ऐसे लापता हो जाए और उम्मीद की आखिरी डोर भी जला दी जाए।



