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देहरादून (अग्रसर भारत न्यूज)।

उत्तराखंड की राजनीति में हालिया ऑडियो खुलासे ने एक नया बवंडर खड़ा कर दिया है। लेकिन जैसे-जैसे इस मामले की परतें खुल रही हैं, यह सवाल बड़ा होता जा रहा है कि क्या यह अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने की कोशिश है या महज एक राजनीतिक लाभ लेने का जरिया? तथ्यों पर गौर करें तो इस पूरे प्रकरण की विश्वसनीयता पर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

आधारहीन बयानबाजी का केंद्र: सिर्फ सुरेश राठौर?

​इस पूरे मामले में उर्मिला सुरेश राठौर द्वारा सार्वजनिक की गई रिकॉर्डिंग में सारी बयानबाजी स्वयं सुरेश राठौर की है। जानकारों का मानना है कि पत्रकारों को असली सवाल सुरेश राठौर से करने चाहिए थे। सवाल यह है कि उन्होंने अपनी कथित पत्नी से जो बातें कहीं, उनका आधार क्या है? क्या उनके पास कोई ठोस सबूत हैं या यह महज आपसी बातचीत में किया गया एक बढ़ा-चढ़ाकर बोला गया दावा था?

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भावुकता का बदला और कानूनी फंदा

​कहा जा रहा है कि उर्मिला सुरेश राठौर ने प्रेम में मिले धोखे का बदला लेने के लिए इन व्यक्तिगत रिकॉर्डिंग्स को सार्वजनिक किया। हालांकि, इससे प्रदेश की राजनीति में उबाल तो आ गया, लेकिन कानून की नजर में इसे साबित करना एक बड़ी चुनौती है। बिना सच्चाई जाने और बिना किसी ठोस साक्ष्य के निजी रिकॉर्डिंग सार्वजनिक करना, उर्मिला को ही किसी बड़ी कानूनी मुसीबत में डाल सकता है, जिसका आभास शायद अब उन्हें हो रहा है।

विपक्ष की खामोशी और कोर्ट से दूरी

​हैरानी की बात यह है कि इस मामले को लेकर अभी तक कोई भी विपक्षी दल या नेता कोर्ट की शरण में नहीं गया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि विपक्षी भी जानते हैं कि इन ऑडियो क्लिप्स के जरिए जनता की भावनाओं को तो भड़काया जा सकता है और राजनीतिक रोटियां सेकी जा सकती हैं, लेकिन अदालत की दहलीज पर ये दावे टिक नहीं पाएंगे।

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भावनाओं का दोहन या न्याय की लड़ाई?

​इस पूरे प्रकरण में सबसे दुखद पहलू यह है कि क्या अंकिता भंडारी केस जैसे संवेदनशील मामले का इस्तेमाल पहाड़ की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने के लिए किया जा रहा है? जिस तरह से सरकार को बिना किसी न्यायिक साक्ष्य के घेरा जा रहा है, उससे साफ झलकता है कि मकसद न्याय से ज्यादा राजनीतिक माइलेज लेना है।

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अग्रसर भारत का नजरिया:

न्याय की लड़ाई सड़कों पर शोर मचाने या निजी बातचीत की रिकॉर्डिंग से नहीं, बल्कि अदालत में ठोस सबूतों के दम पर लड़ी जाती है। जनता को यह समझने की जरूरत है कि जांच एजेंसियां और न्यायालय तथ्यों पर काम करते हैं, न कि किसी के व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए जारी किए गए ऑडियो पर। प्रदेश की सरकार न्याय प्रक्रिया में पूरी तरह सहयोग कर रही है, और हमें संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा बनाए रखना चाहिए।

बने रहें ‘अग्रसर भारत’ के साथ, हम लाते हैं खबरों के पीछे का असली सच।

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