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भारत में इस समय जिस एक विषय पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है ‘इतिहास’. बीते हफ्ते पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों ने असम सरकार के एक कार्यक्रम में सदियों से देश मे पढ़ाए जाने वाले गलत इतिहास का ना सिर्फ मुद्दा उठाया, बल्कि इतिहास को सुधारने के लिए भी जोर दिया था. लेकिन अब भारत का यह आधा अधूरा ‘इतिहास’, इतिहास की बात होने वाली है.

ICHR लिखने जा रही भारत कासहीइतिहास

भारत सरकार की इतिहास पर शोध करने वाली संस्था भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) Comprehensive History of India नाम के प्रोजेक्ट के सहारे भारत का असली इतिहास कुल 9 Volume में लिखवा रही है. प्रोजेक्ट से जुड़े एक इतिहासकार के मुताबिक अभी भारत का असली इतिहास 9 वॉल्यूम में लिखना प्रस्तावित हुआ है लेकिन जरूरत पड़ी तो ये 9 वॉल्यूम बढ़ कर 12 तक भी हो सकती हैं. पहली वॉल्यूम अगले साल मार्च तक आने की संभावना है.

कुल 9 वॉल्यूम में लिखा जाएगा इतिहास

नए सिरे से लिखे जाने वाले प्रस्तावित 9 वॉल्यूम की बात करें तो पहले वॉल्यूम में नए सिरे से इतिहास लेखन में किन चीज़ों को प्रमुखता से लिखा जा रहा है. यह सब इस पहले वॉल्यूम मे होगा. भारत के करोड़ो वर्ष के इतिहास में प्रमुख घटनाएं हैं. उनका बखान और साथ ही ऐसे महापुरुष और वीर योद्धा जिनका भारत निर्माण में प्रमुख योगदान है इन सबके बारे में सबकुछ बताया जाएगा. यह एक ट्रेलर की तरह होगा कि ICHR की अगली 8 वॉल्यूम में क्या कुछ विस्तृत रूप से लिखा जा रहा है.

दूसरे वॉल्यूम मे मानव सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर, मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभ तक के समय का वर्णन किया जाएगा. यह बताया जाएगा कि उस समय जब ज्ञान के क्षेत्र सीमित थे, तब कैसे भारतीय भारत निर्माण में लगे हुए थे. उस समय के प्राचीन अस्त्र, शस्त्र, विद्या के बारे में भी बताया जाएगा.

सबूतों और तथ्यों के साथ दी जाएगी जानकारी

वहीं तीसरे वॉल्यूम में सभ्यता के उषाकाल से लेकर महाजनपद काल तक का विस्तृत वर्णन होगा, जिसमे सिंधु-सरस्वती सभ्यता का गौरवमयी इतिहास जिसके सबूत आज राखीगढ़ी में मिलते हैं उसकी विशेषताओं को बताया जाएगा. इतना ही नही इसमें सबूतों और तथ्यों के साथ यह भी बताया जाएगा कि सिंधु-सरस्वती सभ्यता ही विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता हैं.

चौथे वॉल्यूम में महाजनपद से लेकर गुप्त-वाकाटक काल शुरू होने से पहले तक का इतिहास पढ़ाया जाएगा. वहीं पांचवे वॉल्यूम में  गुप्त-वाकाटक काल से लेकर वर्ष 1191 में सल्तनत काल शुरू होने से पहले का इतिहास पढ़ाया जाएगा. इस वॉल्यूम में बताया जाएगा कि इस्लामी राज्य आने से पहले कैसे भारत विश्व गुरु था, आर्थिक सिरमौर था और महाराजा सुहेलदेव सरीखे कई महापुरुषों की वीरता जिसे पहले के विस्तृत इतिहास लेखन में ठीक जगह नही मिली उन्हें भी इस वॉल्यूम में उचित जगह दी जाएगी.

देश के चक्रवर्ती सम्राटों को मिलेगा सम्मान

छठे वॉल्यूम में इतिहास सल्तनत काल की शुरुआत से 1191 से लेकर शिवाजी महाराज के राज्यअभिषेक के काल 1674 के शुरू होने से पहले के समय के बारे में बताया जाएगा. इस वॉल्यूम में पहले की तरह इस्लामी शासन की महिमामण्डन नहीं बल्कि उनके शासन की तथ्यों के सहारे सत्यता बताई जाएगी. उनके गलत काम भी बताए जाएंगे और ठीक इसी समय कैसे भारत के अन्य वैभवशाली साम्राज्य विजय नगर, अहोम राज्य काम कर रहे थे, इसके बारे में बताया जाएगा.

सातवे वॉल्यूम में महाराज शिवाजी के राज्याभिषेक 1674 की शुरुआत के बाद से लेकर 1857 की क्रांति तक के भारत और होने वाली विशेष घटनाओं के बारे में बताया जाएगा. वहीं आठवें वॉल्यूम में 1857 की क्रांति के बाद से 1947 तक काल को न सिर्फ बताया जाएगा बल्कि उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी उचित जगह दी जाएगी जिनका भारत की आज़ादी में महत्वपूर्ण स्थान था. अंत मे नौवे वॉल्यूम में 1947 से लेकर अब तक के भारत का विस्तृत लेखा जोखा सही तथ्यों और सभी के योगदानों के साथ रखा जाएगा.

भारतीयों के नजरिए से लिखी जाएगी हिस्ट्री

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ उमेश कदम के मुताबिक इस नए सिरे से इतिहास लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस इतिहास लेखन में “Primary Sources” का प्रयोग किया जाएगा. यानी भारत में कब और क्या हुआ इस पर उस समय के भारतीयों ने क्या लिखा इस आधार पर इतिहास लेखन किया जा रहा है ना कि घटना के कई सौ वर्षों बाद यूरोपियों और फारसियों ने क्या लिखा औए क्या देखा इस आधार पर. जिसकी वजह से आज आज़ादी के 75 वर्ष फिर से इतिहास लेखन ICHR को करना पड़ रहा है.

मुगलोंसुलतानों का नहीं दिखेगा महिमामंडन

ICHR के सदस्य सचिव उमेश कदम के मुताबिक भारत के पुराने इतिहास लेखन में कई ऐसे चक्रवर्ती महान राजा थे, जिन्हें इतिहास की पुस्तकों में जगह ही नही दी गई, जबकि उनका भारत और भारत की सभ्यता के प्रति महत्वपूर्ण योगदान था लेकिन उन्हें या तो कुछ लाइन में ही समेट दिया गया या तो एक लाइन भी नहीं.  डॉ उमेश कदम के मुताबिक पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने सिर्फ उत्तर भारत के इतिहास को ही भारत के इतिहास की तरह पेश किया जिसमें सुलतानो और मुगलों को सबसे ज्यादा जगह दी गई. यही कारण है कि आज भारत की पीढियां कश्मीर का सल्तनत काल से पहले का इतिहास नही जानती हैं. लेकिन अब जिन्हें इतिहास में उचित स्थान मिलना चाहिए था, उन्हें उनका उचित स्थान दिया जाएगा.

 

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