प्रदेश में 2021 से खोले गए महाविद्यालयों में प्रोफेशनल कोर्स भी दिए जा रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में खोले गए संस्थानों में अधिक है और यहां कई विषयों में विद्यार्थियों की संख्या 10 से कम रह रही है। प्रदेश के डिग्री कालेजों में संचालित विषयों में विद्यार्थियों की 10 से कम संख्या होने पर उन्हें बंद करने की तैयारी है।
प्रदेश के डिग्री कालेजों में संचालित विषयों में विद्यार्थियों की 10 से कम संख्या होने पर उन्हें बंद करने की तैयारी है। उच्च शिक्षा निदेशालय ने इसे लेकर कवायद शुरू कर दी है। महाविद्यालयों से पांच वर्षों की छात्र संख्या का विषयवार रिकार्ड मांगा जा रहा है। ऐसे में जिन विषयों में लगातार कम विद्यार्थियों का प्रवेश हो रहा है उन्हें बंद कर छात्रों के अधिक दबाव वाले कालेज में शिफ्ट किया जाएगा।
प्रदेश में 119 सरकारी महाविद्यालय संचालित हैं। इनमें 36 स्नातकोत्तर और करीब 83 स्नातक स्तरीय कालेज हैं। कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के बड़े पीजी कालेजों को छोड़ दें तो अन्य छोटे महाविद्यालयों में विद्यार्थी कम प्रवेश ले रहे हैं। ऐसे में बड़े महाविद्यालयों में दाखिलों के दौरान काफी मारामारी रहती है। जबकि स्नातक स्तर के कालेजों में सीटें खाली रह जाती हैं। ऐसी स्थिति पर्वतीय क्षेत्रों में खोले गए संस्थानों में अधिक है और यहां कई विषयों में विद्यार्थियों की संख्या 10 से कम रह रही है।
छोटे कालेजों में काफी कम छात्र होने और बड़े कालेजों में दबाव के हालातों को नाम मात्र छात्रों वाले विषय बंद करने की योजना बनाई जा रही है। विषयों को बंद प्राध्यापकों को नजदीक के अधिक संख्या वाले महाविद्यालय में समायोजित करने की बात कही जा रही है। हालांकि, कालेजों से रिपोर्ट आने के बाद निदेशालय स्तर पर निर्धारण कर कार्यवाही की जाएगी।
पहाड़ के महाविद्यालयों में संसाधनों का अभाव
प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों में सरकार ने डिग्री कालेजों को इसलिए खोला था कि विद्यार्थियों का पलायन न हो। महाविद्यालय तो खोल दिए गए मगर इनमें संसाधनों की कमी बनी हुई है। कई कालेजों के पास अपने भवन तक नहीं हैं। साथ ही बैठने के लिए पर्याप्त स्थान तक नहीं है। ऐसे में संसाधनों के अभाव में पहाड़ में खोले गए कालेज छात्रों की पसंद नहीं बन पाए।
कालेजों में प्रोफेशनल कोर्स शुरू न करने का परिणाम
प्रदेश में 2021 से खोले गए महाविद्यालयों में प्रोफेशनल कोर्स भी दिए जा रहे हैं। मगर पूर्व खुले कालेजों में सामान्य काल, विज्ञान और वाणिज्य के कोर्स ही हैं। जबकि वर्तमान समय में उद्योगों में प्रोफेशनल पढ़ाई किए हुए युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसे में विद्यार्थी इंटरमीडिएट के बाद रोजगारपरक कोर्स करने हल्द्वानी और देहरादून का रुख कर रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में खोले गए छोटे कालेजों में सीटें खाली रहने के पीछे यह भी बड़ा कारण माना जा रहा है।
एनईपी की अवधारणा भी पूरी नहीं कर पा यूजी कालेज
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को अपनी स्ट्रीम के साथ दूसरे संकाय के पसंदीदा विषयों को चुनने का विकल्प भी दिया गया है। मगर प्रदेश के कई यूजी कालेज ऐसे हैं जहां एकल संकाय ही संचालित है और उसमें भी सभी विषय नहीं हैं। ऐसे में विद्यार्थियों को अन्य पसंदी विषयों का विकल्प नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में एनईपी की असल अवधारणा भी पूरी नहीं हो रही है।
विगत वर्षों में देखने को मिला है कि डिग्री कालेजों में कई विषयों में विद्यार्थियों की संख्या 10 से कम है। कालेजों से विषयवार छात्र संख्या का रिकार्ड मांगा जा रहा है। इसके बाद विषयों को लेकर विचार किया जाएगा। – प्रो. गोविंद पाठक, सहायक निदेशक उच्च शिक्षा