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देश में आमजन के जीवन और स्वास्थ्य को लेकर गंभीर संकट गहराता जा रहा है। दवा और खाद्य सुरक्षा की lax व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार के कारण आम जनता की समस्याएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं।

देश की सुरक्षा-भावना और प्रशासन की उदासीनता ने गरीब वर्ग को असहाय कर दिया है, जो इस विषम परिस्थिति में अपनी रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है।

मामूल की बात हो या बड़ी, स्वास्थ्य सेवाओं में भयावह कमी ने अनेक मासूम बच्चों की जान ले ली है। स्कूलों से लेकर अस्पतालों तक जहां खाने-पीने की वस्तुओं की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं, वहीं स्वास्थ्य प्रणाली में भ्रष्टाचार ने इसे व्यावसायिक उद्योग बनाकर लोगों के लिए दुविधाजनक कर दिया है।

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सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी, उपकरणों की अनुपलब्धता, विशेषज्ञों की तंगी और भ्रष्टाचार के कारण एक गरीब को स्वस्थ रहना बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है।स्वास्थ्य विभाग, प्रशासन और सेवाओं की अव्यवस्था का खामियाजा सबसे अधिक गरीब, मजदूर और निर्धन परिवार भुगत रहे हैं। सरकार के दावे और जमीनी हकीकत में भारी अंतर है।

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बड़ी संख्या में लोग अपने कमजोर स्वास्थ्य के चलते जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।इस समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है कि प्रशासन और सरकार तत्काल गंभीर पहल करे, ताकि सेवा सुधार हो और हर जरूरतमंद तक गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सहायता पहुचाई जा सके।

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लेखक नवीन दुमका, पूर्व विधायक लालकुआं इस विषय पर गहन चिंतन करते हुए कहते हैं कि मौन तंत्र और गैरजिम्मेदारी से सर्वहारा वर्ग की स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है।यह खबर स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के संकट की चेतावनी है, जो सरकार और समाज दोनों के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है।

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