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क्या 2024 या उससे पहले ही इंडिया और भारत के नाम से मशहूर हमारा देश सिर्फ भारत के नाम से जाना जाएगा? देश में मंगलवार को चर्चा का सिर्फ एक ही विषय रहा. ‘इंडिया बनाम भारत’. लेकिन इस बहस से पहले कुछ सवालों पर गौर करना जरूरी है.

विष्णु पुराण का एक श्लोक है, ‘उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्तति: ‘ यानी जो समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है वो भारतवर्ष है और उसमें भरत की संतानें बसी हुई हैं. जब भारत अभी दुनिया की बीस बड़ी आर्थिक ताकत वाले देशों के संगठन जी-20 की मेजबानी कर रहा है. तब एक आमंत्रण पत्र पर लिखे भारत शब्द ने पूरे देश में सियासी हलचल मचा दी. सवाल पूछा जाने लगा कि क्या केंद्र सरकार अब देश का नाम इंडिया और भारत नहीं बल्कि सिर्फ भारत करने वाली है? इसकी 4 वजहें हैं.

– पहले राष्ट्रपति भवन की तरफ से G20 के दौरान डिनर के लिए जारी निमंत्रण पत्र में ‘द प्रेसीडेंट ऑफ भारत’ लिखा दिखा.

– फिर G20 बैठक में अधिकारियों के बदले हुए पहचान पत्र सामने आए हैं, जिसमें भारत लिखा हुआ है.

 इसके बाद एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई, जहां दक्षिण अफ्रीका और ग्रीस में प्रधानमंत्री के दौरे पर फंक्शन नोट्स पर ‘प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत’ लिखा दिखा.

– वहीं चौथी तस्वीर सात सितंबर को होने वाले इंडोनेशिया के दौरे के फंक्शन नोट की है. उसमें भी प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत ही लिखा हुआ है.

यह कोई पहला मौका नहीं है जब कोई देश अपना नाम बदल रहा हो. अब से पहले भी ऐसे कई परिवर्तन इस दुनिया ने देखे हैं.

हॉलैंड नीदरलैंड बन गया.

तुर्की का नाम तुर्किए हुआ.

चेक रिपब्लिक चेकिया हो गया.

सियाम थाईलैंड बन गया.

बर्मा म्यांमार हो गया.

ईस्ट जर्मनी 1990 से सिर्फ जर्मनी नाम से जाना गया.

फ्रेंच सूडान 1960 में माली हो गया.

तो क्या इसी तरह 2024 या उससे पहले ही इंडिया और भारत के नाम से मशहूर हमारा देश सिर्फ भारत के नाम से जाना जाएगा? देश में मंगलवार को चर्चा का सिर्फ एक ही विषय रहा. ‘इंडिया बनाम भारत’. लेकिन इस बहस से पहले कुछ सवालों पर गौर करना जरूरी है.

पहला सवाल-

क्या वाकई देश का नाम अब सिर्फ भारत करने की तैयारी है? क्यों अचानक इंडिया और भारत के नाम को लेकर बहस शुरु हुई? 

जवाब- राष्ट्रपति भवन से आए इस निमंत्रण पत्र से इस पूरी बहस की शुरुआत हुई. दरअसल नौ सितंबर को विदेशी मेहमानों और कुछ भारत के नेताओं का निमंत्रण पत्र भेजे गए. इसी न्योते में ऊपर लिखा है, ‘द प्रेसीडेंट ऑफ भारत. पूरी चर्चा की शुरुआत यहीं से हुई. यहां समझने वाली बात है कि इस न्योते से देश का नाम भारत कर देने की बात कैसे होने लगी?

इसे ऐसे समझिए कि एक तरफ राष्ट्रपति का सोशल मीडिया एक्स हैंडल है. इसमें लिखा है प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया. लेकिन आमंत्रण पत्र पर लिखा है प्रेसीडेंट ऑफ भारत. वहीं पुराने आमंत्रण पत्रों से तुलना की जाए तो गणतंत्र दिवस के न्योते में भी प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया लिखा है. लेकिन जी-20 के आमंत्रण पत्र में प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखा है. इसी फर्क को देखकर कांग्रेस के महासचिव और मीडिया विभाग देखने वाले मुखिया जयराम रमेश ने ये ट्वीट करते हुए लिखा कि संविधान में अनुच्छेद 1 के मुताबिक, INDIA जिसे भारत कहते हैं वह राज्यों का एक संघ होगा, लेकिन अब इस राज्यों के संघ पर भी हमला हो रहा है.

दूसरा सवाल- 

अगर पहले प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया लिखा जाता रहा और अब प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिख दिया गया तो क्या कोई गलती हुई है? 

जवाब- यह गलती है या नहीं इसका जवाब संविधान के अनुच्छेद एक में छिपा है. जहां लिखा है, ‘इंडिया दैट इज भारत शैल बी ए यूनियन ऑफ स्टेट्स’. यानी संविधान ने देश के लिए इंडिया और भारत दोनों शब्द मंजूर किए हैं. इसका सीधा सा मतलब ये है कि बस एक पुरानी परंपरा को छोड़ा गया है. प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखकर कोई गलती नहीं हुई है.

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तीसरा सवाल-

अगर इंडिया और भारत दोनों एक ही हैं तो फिर प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखे जाने से क्यों विपक्ष को लगने लगा कि देश का नाम सरकार बदलकर सिर्फ भारत करने वाली है? 

जवाब- दरअसल 1 सितंबर का संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक बयान दिया था. अपने इस बयान में मोहन भागवत कहते हैं कि भारत बोलिए, इंडिया नहीं. लेकिन क्या सिर्फ इसीलिए विपक्ष को लगने लगा कि भारत नाम देश का होने जा रहा है? या कुछ संकेत और दिखे?

इससे पहले 31 अगस्त को खबर आई कि 18 सितंबर से देश की संसद का विशेष सत्र आयोजित होगा. फिर 1 सितंबर को संघ प्रमुख इंडिया नहीं भारत बोलने को कहते हैं. इसके बाद 5 सितंबर को G20 से जुड़ा नया सोशल मीडिया हैंडल G20 भारत लॉन्च होता है. फिर 5 सितंबर को ही खबर आई कि राष्ट्रपति भवन की तरफ से जारी निमंत्रण पत्र में प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखा गया है. क्या इन्हीं चारों सिरों को जोड़कर विपक्ष को लगता है कि अब देश का नाम भारत करने की तैयारी है?

सितंबर के महीने का इंडिया और भारत वाले नाम की कहानी से ऐतिहासिक रिश्ता है. पहले इस रिश्ते के इतिहास को याद करते हैं. संविधान के अनुच्छेद 1 में लिखा है कि इंडिया दैट इज भारत. यानी इंडिया और भारत दोनों नाम हमारे देश के हैं. संविधान सभा में इसी अनुच्छेद एक को लेकर 15 नवंबर और 17 नवंबर 1948, 17 सितंबर 1949, और 18 सितंबर 1949 को चार दिन बहस हुई. अनुच्छेद एक भाग एक इंडिया दैट इज भारत वाली बात 18 सितंबर 1949 को ही स्वीकार हुई.

ऐसे में विपक्ष को लग रहा है कि 18 सितंबर 2023 से ही संसद का विशेष सत्र की शुरुआत की तारीख से भी इसका कोई संबंध हो सकता है. हालांकि विपक्ष तो खुलकर ये भी कहता है कि उनके गठबंधन का नाम इंडिया है, इसीलिए सरकार ने डरकर भारत वाली बात छेड़ दी है.

चौथा सवाल-

क्या विपक्षी गठबंधन को लगता है कि उनके मोर्चे का नाम इंडिया होने से अब सरकार देश का नाम भारत कर सकती है? 

जवाब- बेंगलुरु की बैठक में विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन को इंडिया नाम दिया. इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलेपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस. जिसके बाद जमकर ये नैरेटिव बनाने में विपक्ष के नेता जुटे कि इंडिया और नरेंद्र मोदी की लड़ाई है. जिसमें फायदा अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखकर उठाना चाहा. अब जैसे ही प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखा हुआ न्योता मीडिया में सामने आया, विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं ने दलील दी कि सरकार ने इंडिया गठबंधन से डरकर ही भारत नाम को बोलना शुरू किया है.

लेकिन क्या वाकई सरकार घबराकर कर रही है या फिर विपक्ष को ही अब हर जगह इंडिया ही लिखा हुआ चाहिए. बल्कि भारत लिखा देखने पर ही इनको अपने गठबंधन के लिए चुनौती नजर आने लगती है. फिलहाल एनडीए का जोर भारत बोलने-लिखने पर जरूर है. जबकि इंडिया गठबंधन की आशंका देश के नाम से इंडिया हटाकर भारत कर देने को है. ये साफ नहीं है कि देश का नाम वाकई इंडिया से हटाकर सिर्फ भारत होगा भी नहीं लेकिन नाम पर महाभारत हो चुकी है. विपक्ष भले ये दलील दे कि उनके गठबंधन का नाम इंडिया होने भर से सरकार देश का एक नाम भारत ही रखना चाहती है, लेकिन इतिहास गवाह है नाम बदलने को लेकर चर्चा पहले भी बहुत हुई.

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पहले भी उठी हैं ऐसी मांगें…

साल था 2004, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. विधानसभा में एक प्रस्ताव पास हुआ. मांग की गई थी कि संविधान में India, That is भारत को भारत दैट इज इंडिया कर देना चाहिए.

वहीं 2012 में कांग्रेस के सांसद रहे शांताराम नाइक राज्यसभा में बिल लाए. मांग की थी कि संविधान की प्रस्तावना में अनुच्छेद एक में और संविधान में जहां-जहां इंडिया शब्द का उपयोग हुआ हो, उसे बदल कर भारत कर दिया जाए.

इसके बाद 2014 में योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में एक निजी विधेयक पेश किया था. इसमें संविधान में ‘इंडिया’ शब्द की जगह पर ‘हिन्दुस्तान’ शब्द की मांग की गई थी, जिसमें देश के प्राथमिक नाम के रूप में ‘भारत’ का प्रस्ताव किया गया था.

सदन ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट तक ये मांगें पहले उठ चुकी हैं. मार्च- 2016 में इंडिया नाम हटाकर भारत करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी.

 2016 में तब चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर और जस्टिस यू यू ललित ने याचिकाकर्ता से कहा था कि भारत कहिए या इंडिया कहिए, जो मन है कहिए. अगर आपका मन भारत कहने का है तो कहिए. अगर कोई इंडिया कहता है तो कहने दीजिए.

– चार साल बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इंडिया की जगह भारत नाम रखने वाली याचिका को खारिज किया.

 2020 में चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा था कि संविधान में भारत और इंडिया दोनों नाम दिए गए हैं.

यानी ये चर्चा अभी की नहीं, पुरानी है. हांलाकि सियासत नई जरूर है. गौर करने वाली बात है कि नाम बदलने के मुद्दे पर अब तक सरकार की ओर से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन जरूर साफ हो गया है कि भारत और इंडिया दोनों नाम से जो देश 7 दशक से ज्यादा से संविधान मुताबिक जाना जा रहा है. वहां भारत और इंडिया के बीच अब खेमे बंटने लगे हैं.

पांचवां सवाल-

आखिर INDIA नाम हटाकर भारत नाम ही देश का करने की दलीलें क्यों उठती रही हैं? क्या INDIA शब्द में वाकई गुलामी झलकती है? 

जवाब- इस सवाल का जवाब ढ़ूंढ़ने के लिए संसद का बीते सत्र में आवाज उठाने वाले सांसद नरेश बंसल की बात कर गौर करनी जरूर चाहिए. बीजेपी सांसद नरेश बसंल ने कहा कि अंग्रेजों ने देश का नाम भारत से बदलकर इंडिया कर दिया. भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की मेहनत और बलिदानों के कारण जब 1947 में देश आजाद हुआ और संविधान में 1950 में लिख दिया इंडिया दैट इज भारत. जबकि हमारे देश का नाम हजारों साल से भारत ही रहा है. भारत को भारत ही बोला जाना चाहिए, इसके बजाए लिखा गया इंडिया दैट इज भारत. भारतवर्ष इस देश का वास्तविक नाम है, देश का अंग्रेजी नाम इंडिया गुलामी की निशानी है, देश को मूल और प्रमाणिक नाम भारत से ही मान्यता देनी चाहिए. यानी सांसद और नेता खुद मानते आए हैं कि यह गुलामी की निशानी है.

छठे सवाल-

क्या इंडिया नाम अंग्रेजों का दिया हुआ है?  

जवाब- हमारे देश के बदलते नाम का एक इतिहास है. कहते हैं कि महाराज भरत ने भारत का संपूर्ण विस्तार किया था और उनके नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा. मध्य काल में जब तुर्क और ईरानी यहां आए तो उन्होंने सिंधु घाटी से प्रवेश किया. वो स का उच्चारण ह करते थे और इस तरह से सिंधु का और इस तरह से सिंधु का अपभ्रंश हिंदू हो गया. दावा होता है कि यहां के निवासी हिंदू कहलाए और देश को हिंदुस्तान नाम मिला. सिंधु नदी का दूसरा नाम इंडस भी था. सिंधु का इंडस नाम विदेशियों ने रखा. यूनानी से इंडो या इंडस लैटिन में बदलकर इंडिया तक पहुंच गया.

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कैसे तय हुआ था अपने देश का नाम? 

अब सवाल उठता है कि आखिर संविधान सभा में जब बात इंडिया दैट इज भारत पर मुहर लगी तो फिर अंग्रेजों की तरफ से इंडिया नाम दिए जाने की बात क्यों? इस सवाल के साथ संविधान सभी की बहस पर नजर डालिए.

18 नवंबर 1949 को बहस की शुरुआत संविधान सभा के सदस्य एचवी कामथ ने की थी. उन्होंने अंबेडकर समिति के उस मसौदे पर आपत्ति जताई थी, जिसमें देश के दो नाम थे- इंडिया और भारत. एचवी कामथ का प्रस्ताव था कि देश का एक ही नाम होना चाहिए. उन्होंने ‘हिंदुस्तान, हिंद, भारतभूमि और भारतवर्ष’ जैसे नाम सुझाए. तब सेठ गोविंद दास ने भी इसका विरोध किया था. उन्होंने कहा था, ‘इंडिया यानी भारत’ किसी देश के नाम के लिए अच्छा शब्द नहीं. वो मूल नाम भारत के समर्थन में उतरे.

सेठ गोविंद दास ने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्होंने देश की आजादी के लड़ाई ‘भारत माता की जय’ के नारे के साथ लड़ी थी. इसलिए देश का नाम भारत ही  होना चाहिए. बीएम गुप्ता, श्रीराम सहाय, कमलापति त्रिपाठी और हर गोविंद पंत जैसे सदस्यों ने भी देश का नाम सिर्फ भारत ही रखे जाने का समर्थन किया था. हालांकि, ये सारी बहस का कुछ खास नतीजा नहीं निकला और जब संशोधन के लिए वोटिंग हुई तो ये सारे प्रस्ताव गिर गए. आखिर में अनुच्छेद-1 ही बरकरार रहा और इस तरह से ‘इंडिया दैट इज भारत’ बना रहा.

क्या ISRO होगा BSRO?

अब सवाल है कि अगर देश का नाम भारत रखने के लिए ही बात आगे बढ़ी. तो क्या कुछ बदलना पड़ेगा. इसमें कितना खर्च आएगा? अगर बात देश का नाम सिर्फ भारत करने तक पहुंची तो क्या नोट पर लिखे हुए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को भी बदला जाएगा. क्या रिजर्व बैंक ऑफ भारत लिखे हुए नए नोट छपेंगे? क्या देश में चलने वाली तमाम योजनाओं का नाम भी बदला जाएगा? जैसे Khelo India, Stand-Up India, Digital India, Make In India,. Startup India, Skill India, Fit India और इनका नाम बदलकर खेलो भारत, स्टैंड अप बारत, डिजिटल भारत, मेक इन भारत, स्टार्ट अप बारत, स्किल भारत, फिट भारत होगा? अभी चंद्रयान और सूर्ययान भारत ने भेजा है. ISRO का नाम भी क्या बदला जाएगा, जिसे अभी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के नाम से जाना जाता है. क्या नाम बदलकर फिर भारत स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन किया जाएगा?

तो क्या तमाम सरकारी संस्थाओं के नाम भी बदले जाएंगे?

देश के तमाम शहरों में जिन एम्स अस्पतालों को खोलकर सरकार पीठ थपथपाती है. तो क्या उनके नाम में लिखा इंडिया भी हटेगा और इसे ऑल भारत इस्टिंट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज कहा जाएगा? क्या सारे आईआईटी और आईआईएम का नाम भी बदला जाएगा.ऐसे तो भारत की जनता का पासपोर्ट भी बदलना होगा. वहां भी भारत लिखना होगा. ये सवाल सिर्फ जनता के मन में ही नहीं है. विपक्षी गठबंधन इंडिया वाले भी पूछ रहे हैं.

नाम बदलने में कितना खर्च आएगा?

अब सवाल उठता है कि अगर वाकई नाम बदलने लग गए तो कितना खर्च लगेगा. इसका कोई पुख्ता हिसाब तो अब तक नहीं सामने नहीं आया है, लेकिन जो रिसर्च बताती है उसे ही आधार मानें तो दावा होता है कि एक शहर का ही नाम बदलने में औसत 300 करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं. अब सवाल है कि इंडिया हटाकर सिर्फ भारत नाम हुआ तो कितना खर्च देश की जनता पर आएगा? दक्षिण अफ्रीका के एक प्रॉपर्टी लॉयर डेरेन ओलिवियर ने देश का नाम बदलने के खर्च का फॉर्मूला निकाला. ओलिवियर के फॉर्मूले के मुताबिक इंडिया हटाकर भारत नाम करने में औसत 14304 करोड़ रुपए खर्च होंगे. प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया हमेशा लिखा जाता रहा.