खण्डपीठ ने इस मामले में एक नवंबर को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसे आज सुनाया गया। हाईकोर्ट के फैसले के बाद करीब 4300 परिवार प्रभावित होंगे।
हाईकोर्ट ने मंगलवार को हल्द्वानी के वनभूलपुरा गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद रेलवे को अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर नोटिस देकर ध्वस्तीकरण करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने इस मामले में पहली नवंबर को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसमें मंगलवार को फैसला सुनाया गया। सुनवाई न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ के समक्ष हुई।
मामले में पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान अतिक्रमणकारियों की ओर से कहा गया कि रेलवे की ओर से उनका पक्ष नहीं सुना गया। इसलिए उनको भी सुनवाई का मौका दिया जाए। जबकि राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि यह अतिक्रमित जमीन राज्य सरकार की नहीं बल्कि रेलवे की है। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में कहा गया था कि कोर्ट के बार-बार आदेश होने के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाया गया। रेलवे ने कोर्ट को बतायाकि हाईकोर्ट के आदेश पर इन लोगों को पीपी एक्ट में नोटिस दिया गया है, जिनकी रेलवे ने पूरी सुनवाई कर ली है। किसी भी व्यक्ति के पास जमीन के वैध कागजात नहीं पाए गए हैं। इसके बाद कोर्ट ने सभी अतिक्रमणकारियों से अपनी-अपनी आपत्ति पेश करने को कहा था। कोर्ट ने सभी आपत्तियों व पक्षकारों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
ये है याचिका
हल्द्वानी के समाजसेवी रविशंकर जोशी की ओर से कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। इस पर नौ नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने 10 सप्ताह के भीतर रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जितने भी अतिक्रमणकारी हैं उनको रेलवे पीपी एक्ट के तहत नोटिस देकर जन सुनवाई करें।
29 एकड़ भूमि में 4365 हैं अतिक्रमणकारी
रेलवे की ओर से कहा गया कि हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है, जिनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी हैं।
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे आदेश
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को दिशा-निर्देश दिए थे कि अगर रेलवे की भूमि में अतिक्रमण किया गया है तो पटरी के आसपास रहने वाले लोगों को दो सप्ताह के अंदर तथा उसके बाहर रहने वाले लोगों को छह सप्ताह में नोटिस देकर हटाया जाए। पूर्व में कुछ अतिक्रमणकारी भी राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मामला हाईकोर्ट को हस्तांतरित कर दिया।
डेढ़ दशक पहले कब्जा हटाने के लिए चला था बड़ा अभियान