काबुल हाउस की 400 करोड़ रुपये की संपत्ति को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस कार्रवाई के तहत करीब 300 लोगों को उनके घरों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. यह विवाद पिछले 40 साल से देहरादून की डीएम कोर्ट में चल रहा था. कुछ दिन पहले देहरादून के डीएम ने सभी को इस जमीन से कब्जा हटाने का आदेश जारी किया था और जमीन खाली करने के लिए 15 दिन का नोटिस दिया था.
उत्तराखंड सरकार ने देहरादून में कभी अफगानिस्तान के राजा याकूब खान का महल रहे काबुल हाउस को सील कर दिया है. इसके चलते इसमें रह रहे 16 परिवारों के सामने पड़ा संकट पैदा हो गया है. दरअसल, काबुल हाउस की 400 करोड़ रुपये की संपत्ति को खाली कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस कार्रवाई के तहत करीब 300 लोगों को उनके घरों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. यह विवाद पिछले 40 साल से देहरादून की डीएम कोर्ट में चल रहा था. कुछ दिन पहले देहरादून के डीएम ने सभी को इस जमीन से कब्जा हटाने का आदेश जारी किया था और जमीन खाली करने के लिए 15 दिन का नोटिस दिया था.
इसके बाद गुरुवार को सिटी मजिस्ट्रेट प्रत्यूष सिंह ने पुलिस बल के साथ मौके से सारा अतिक्रमण हटा दिया. इसमें लगभग 16 परिवार शामिल हैं, जिनके 200 से 300 लोग यहां रहते थे. उनमें से कुछ का दावा है कि वे विस्थापित व्यक्ति हैं, जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान यहां आए थे. लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई और उनका पक्ष सुने बिना ही उन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया.
कार्रवाई करते हुए प्रशासन ने पूजा के परिवार के घर को भी खाली करा कर सील कर दिया है. दावा है कि उनका परिवार यहां पिछले सौ वर्षों से रह रहा है. पूजा की अगले महीने दिसंबर में शादी है और घर में शादी की तैयारियां की जा रही थीं, लेकिन अब घर नहीं होने के कारण शादी की तैयारियों में खलल पड़ गया है. अन्य लोगों का आरोप है कि उन्हें कुछ दिन पहले ही घर खाली करने का आदेश उन्हें मिला है. अब उनके पास कोई ठिकाना नहीं रहेगा.
काबुल हाउस के ही निवासी राजमोहन का कहना है कि हमारे परिवार 100 साल से अधिक समय से इस घर में रह रहे हैं. वह और उनका परिवार अपने 4 अन्य भाइयों के परिवारों के साथ रहता है. राजमोहन का कहना है कि देहरादून प्रशासन के इस कदम के बाद वह टूट गए हैं.
1879 में हुआ था महल का निर्माण
बता दें कि काबुल हाउस का निर्माण राजा मोहम्मद याकूब खान ने 1879 में करवाया था. हालांकि पाकिस्तान के विभाजन के दौरान उनके कई वंशज पाकिस्तान चले गए थे. तब से काबुल हाउस के कई व्यक्तियों ने स्वामित्व का दावा करते हुए फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे. काबुल हाउस में 16 परिवार लंबे समय से रह रहे थे. काबुल हाउस मामला पिछले 40 वर्षों से जिला मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित है. फैसला सुनाते हुए जिला मजिस्ट्रेट ने काबुल हाउस को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया है और वहां रहने वाले लोगों को घर खाली करने का नोटिस जारी कर दिया. अब सीलिंग की कार्रवाई शुरू हो गई है.
प्रशासन की एक टीम गुरुवार को इस शत्रु संपत्ति को खाली कराने के लिए एकत्र हुई. हालांकि, यहां रहने वाले लोग अब संकट का सामना कर रहे हैं और सोच रहे हैं कि आखिर कहां जाएं. फिलहाल प्रशासन का दावा है कि ये कार्रवाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक की गई है, लेकिन 16 परिवारों के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है. वे कह रहे हैं कि अब वह कहां जाएंगे, इसके बारे में किसी ने नहीं सोचा. हम यहां 80 साल से रह रहे हैं, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है.
ये है इस महल का इतिहास
बता दें कि अफगानिस्तान के पूर्व राजा दोस्त मोहम्मद खान को मसूरी के सुरम्य शहर में निर्वासित कर दिया गया था. यह ध्यान देने योग्य है कि इतिहास ने चार दशक बाद खुद को दोहराया और उनके पोते अंतिम अफगान राजा याकूब मोहम्मद को भी देहरादून में निर्वासन का सामना करना पड़ा. उन्होंने काबुल हाउस के नाम से मशहूर एक शानदार आवास में शरण ली, जिसे आज मंगला देवी कॉलेज कहा जाता है.
देहरादून में ईसी रोड पर स्थित याकूब मोहम्मद खान का महल बरकजई राजवंश से अफगानिस्तान के निर्वासित अमीर के घर के रूप में कार्य करता था. यह एंग्लो-अफगान युद्ध में उनकी हार के बाद अफगानिस्तान में उनके शासन के अंत का प्रतीक है.
दिलचस्प बात यह है कि कुछ दशक पहले अपने दादा के निर्वासन के दौरान दोस्त मोहम्मद खान देहरादून में बासमती चावल लेकर आया था. कारण, वह यहां अपने पसंदीदा पुलाव के लिए तरस रहे थे. वह अफगानिस्तान के कुनार प्रांत से बासमती चावल लाने में सफल रहे, जिससे देहरादून की पाक विरासत समृद्ध हुई. हालांकि, याकूब खान के वंशजों का दावा है कि वे यहां से कभी नहीं गए और वे अभी भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं. उनके वंशजों के अनुसार याकूब के 11 बेटे और 11 बेटियां थीं. उनमें से केवल कुछ ही पाकिस्तान चले गए थे जबकि उनमें से अधिकांश देहरादून या अफगानिस्तान में ही रह गए थे. इसलिए इस संपत्ति को शत्रु संपत्ति कहना उनकी विरासत को बदनाम करता है.