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उत्तराखंड, लालकुआं

लालकुआं । एशिया की नंबर वन कहलाई जाने वाली सेंचुरी पेपर मिल जिसकी चर्चाएं और उसका पेपर विदेशों में भी बड़ी तेजी के साथ बिकता है और पूरे भारत में इसका कागज कई डिपार्टमेंट से होकर बच्चों की कॉपियों में भी काम आता है पर दुर्भाग्य का विषय यह है ।
सेंचुरी पेपर मिल आज कल जहां अपनी फैक्ट्री में वाइट पेपर बना रही है वही आम लोगों के जीवन में अपनी मनमानी का ब्लैक एंड वाइट पेपर भी तैयार कर रही है ।
मिल मजदूरों का 119 दिन बीत जाने के बाद भी रात दिन धरना जारी है और अपना और अपने परिवार का हक मांगने के लिए रात दिन धरने में जुटे हैं । कि इस मिल में 20 से अधिक काम करने वाले मजदूर आज धरने में बैठने को मजबूर हैं । और इन मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है ।
मजदूरों का कहना है कि हम लोगों के अंदर जो भी काबिलियत थी उसको तो सेंचुरी मिल प्रबंधक ने जितना इस्तेमाल करना था उतना कर लिया अब ऐसे में हम लोग कौन सी फैक्ट्री में जाएं और काम करें ।
ऐसा नहीं कि इस मिल में काम करने वाले धरना प्रदर्शन नहीं कर चुके हैं बल्कि पहले भी कई बार मजदूर अपनी मांगो को लेकर कई बार धरने में बैठ चुके हैं । और उनकी मांगे भी पूरी हो चुकी हैं पर इस टाइम इन मजदूरों की बात नहीं सुनी जा रही है । इन मजदूरों की मांग है कि मिल प्रशासन द्वारा हम लोगों से रोजाना मिल के अंदर हर तरीके का काम करवाया गया । और जब हम लोग से एक एग्रीमेंट हुआ था की तुम्हारी तेय उम्र की सीमा तक तुम सभी लोगों को पक्का कर दिया जाएगा । पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और झूठे आश्वासन दिए गए तभी हम लोगों को धरना प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा ।ऐसे में इतने दिन धरने के बीच जाने के बाद भी इनका हौसला बढ़ाने के लिए जनप्रतिनिधि धरना स्थल में आए तो जरूर पर जनप्रतिनिधियों की बात मिल मैनेजमेंट ने नहीं  सुनी और अपने बात पर अड़ी रही ।ऐसे में बड़ा सवाल की सरकारें और क्षेत्रीय विधायक इन मिल प्रशासन के आगे क्यों बोना साबित होती हैं । हम तो बस इतना ही कहेंगे जितने मजदूर धरने में इतने दिनों से बैठे हैं अगर जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधि के साथ फैक्ट्री मिल प्रबंधक आपस में वार्तालाप का हल निकालते तो इन मजदूरों का जीवन सुधर जाता और इन लोगों को फिर से रोजगार मिल जाता ।
जिस संघर्ष के लिए मजदूर इस कड़ाके की ठंड में धरने में बैठे हैं अगर इनके साथ जनप्रतिनिधि या जिला प्रशासन के अधिकारी से लेकर कर्मचारी 1 दिन अगर धरने में बैठ जाएं तो इन लोगों को धरने का मतलब समझ में आ जाएगा कैसे पेट के खातिर यह लोग रात दिन संघर्ष कर रहे हैं । और जनता को इस तरीके का धरना प्रदर्शन के लिए बाध्य क्यों होना पड़ता है क्यों नहीं क्षेत्र के विधायक की बात मिल प्रशासन नहीं सुनता है और क्यों बोना साबित होता है जिला प्रशासन

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