24 साल में वह कई लोगों की जान बचा चुकी। आज तक वो कानपुर के श्याम नगर निवासी डॉ. मनीष त्रिपाठी के परिवार का हिस्सा रही। न सिर्फ परिवार बल्कि पड़ोसियों के भी खूब काम आई। वो कोई इंसान नहीं, मारुति जेन कार थी जो सोमवार काट दी गई।
अब तक जो ‘जेन’ चार पीढ़ियों की यादों की गवाह थी, उसकी बॉडी एक झटके में अलग-अलग कर दी गई। सच मानिए, यह देख परिवार के लोगों की आंखें नम हो गईं। मगर वो नई स्क्रैप पॉलिसी से मजबूर थे। रनियां के स्क्रैप सेंटर में प्यारी सी कार को कटते देखते रह गए।
बिंदकी (फतेहपुर) निवासी डॉ. मनीष त्रिपाठी श्यामनगर के ई ब्लाक में रहते हैं। वर्ष 2000 में मारुति जेन कार (यूपी-78 एएफ-9263) खरीदी थी। उस जमाने में मारूति जेन लग्जरी कारों में थी। परिवार की पहली कार होने से सभी सदस्य देखने को उत्सुक थे। घर पर जैसे ही कार आई तो दादा गंगा चरण त्रिपाठी ने जेन की पूजा कर रोचना लगाया था। तब से यह कार परिवार और पड़ोसियों के लिए बड़ा सहारा बन गई। डॉ. मनीष कहते हैं कि यह भावनाएं ही थीं कि कार का दो-दो बार पांच-पांच साल का री-पंजीयन कराया। अब संभव नहीं था तो मजबूरी में कानपुर संभाग में खुले स्क्रैप सेंटर में जाकर कार बेच दी। स्क्रैप सेंटर के सीईओ कार्तिकेय गर्ग ने बताया सेंटर में पहली चौपहिया कार डॉ. मनीष की ही आई थी।
कार के बारे में बताते-बताते भावुक हो गए डॉ. मनीष डॉ. मनीष त्रिपाठी बताते-बताते भावुक हो गए। कहते हैं कि यह घर की पहली कार थी। भाई अनिल त्रिपाठी की शादी में इसे सजाया गया था। इसी से भाभी जया त्रिपाठी आईं थीं। मेरी शादी हुई तो मेरी पत्नी भी किदवईनगर से विदा होकर श्यामनगर आईं। बड़े भाई के बच्चे वसुंधरा और वर्धन त्रिपाठी भी जब मदर चाइल्ड अस्पताल श्यामनगर में पैदा हुए थे तो वे भी इसी से घर आए थे। मेरा बेटा आयुष्मान, बेटी कियारा बी अस्पताल में पैदा होने के बाद इसी से घर आए।
दादी की तो कार में बसती थी आत्मा
डॉ. मनीष ने बताया घर की पहली कार में तो मेरी दादी गोमती देवी की एक तरह से आत्मा बसती थी। वह पोती-पोतियों के साथ जब बैठकर बातें करती थी तो कहती थी, जब पैदा हुए थे तो इसी घर आए थे और आपके दादा ने पूजा कराई थी। उन्होंने बताया अक्तूबर 2009 में जिवाजी विवि ग्वालियर से पीएचडी कर रहे थे। सूचना आई कि 15 घंटे बाद परीक्षा है। कार से ही ग्वालियर पहुंचे। समय से न पहुंचते तो परीक्षा छूट जाती।
मोहल्ले के लिए मददगार थी कार
डॉ. मनीष कहते हैं कि 24 साल पहले वीरान से श्यामनगर में न तो घर इतने थे और न ही सड़कें। अधिकांश लोगों के पास कारें नहीं थीं। लिहाजा मोहल्ले में जो भी बीमार पड़ता उसके घर वाले कार से अस्पताल पहुंचाने को कहते थे। 14-15 लोगों की जान कार की वजह से बची। वे लोग समय पर कॉर्डियोलॉजी और इमरजेंसी पहुंचे। धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले के लिए यह कार मददगार बन गई।