सबसे पहले बात करते हैं केरल में अगस्त 2018 में आई बाढ़ का. इस प्राकृतिक आपदा में केरल में 483 लोगों की मौत हो गई थी, जिसे राज्य की ‘सदी की बाढ़’ कहा गया था. इस विनाशकारी आपदा ने न केवल लोगों की जान ली, बल्कि संपत्ति और आजीविका को भी नष्ट कर दिया था.
केरल के पहाड़ी जिले वायनाड में कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया है कि यहां लैंडस्लाइड में 143 लोगों की मौत हो गई है. 90 से ज्यादा लोग लापता बताए जा रहे हैं. इस आपदा ने केरल के उन जख्मों को कुरेद दिया है, जिन प्राकृतिक आपदाओं से केरल कई बार सहम चुका है.
केरल सरकार के अनुसार राज्य की कुल आबादी का छठा हिस्सा बाढ़ और उससे जुड़ी घटनाओं से सीधे तौर पर प्रभावित हुआ था. जबकि राज्य 2018 की विनाशकारी बाढ़ के बाद धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा हो रहा था, तभी 2019 में एक और आपदा आई, जब वर्तमान में प्रभावित क्षेत्रों से लगभग 10 किलोमीटर दूर वायनाड के पुथुमाला में भूस्खलन हुआ, जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी.
पीटीआई के मुताबिक अक्टूबर 2021 में फिर से लगातार बारिश के कारण भूस्खलन हुआ, जिससे राज्य के इडुक्की और कोट्टायम जिलों में 35 लोगों की मौत हो गई थी. भारतीय मौसम विभाग द्वारा शेयर किए गए आंकड़ों के अनुसार 2021 में भारी बारिश और बाढ़ से संबंधित घटनाओं ने केरल में 53 लोगों की जान ले ली थी.
इसका असर इतना ज्यादा था कि केंद्र सरकार ने 2018 की बाढ़ को ‘डिजास्टर ऑफ सीरियस नेचर’ घोषित किया था. इस हादसे के बाद 3.91 लाख परिवारों के 14.50 लाख से अधिक लोगों को राहत शिविरों में पुनर्वासित किया गया था. कुल 57,000 हेक्टेयर कृषि फसलें नष्ट हो गईं थीं. 2018 में भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों द्वारा प्रेग्नेंट महिलाओं को एयरलिफ्ट करने की तस्वीरें केरलवासियों के जेहन में अभी भी ताजा हैं. 2018 की बाढ़ से तबाह केरल के पुनर्निर्माण के दौरान पर्यावरण के अनुकूल निर्माण की आवश्यकता पर भी सवाल उठाए गए थे.