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ह पोलसभी राज्यों में चला बीजेपी का मोदी मैजिक तीन राज्यों में दर्ज की जीत, वही कांग्रेस निर्मित तेलंगाना में बीजेपी ने जीती पिछले वर्ष की अपेक्षाकृत अधिक सीटें, बंपर वोटो से जीत की दर्ज मध्य प्रदेश, राजस्थान राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बंपर वोटों से विजयी रही भारतीय जनता पार्टी

धोरों की धरती कहे जाने वाले राजस्थान में एक बार फिर रिवाज की जीत हुई है. राजस्थान में वर्ष 1993 से एक रिवाज चल रहा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदल जाती है, ये रिवाज इस बार भी बरकरार रहा. कांग्रेस को उम्मीद थी कि रिवाज बदलेगा और गहलोत का जादू चलेगा. लेकिन ना तो जादू चला ना रिवाज बदला. लेकिन यहां कांग्रेस का राज बदल गया. मतगणना से पहले जीत के दावे कर रही कांग्रेस के खाते में सिर्फ 69 सीटें ही आई हैं, जबकि मरुधरा में 115 सीटों के साथ कमल खिला है.

राजस्थान में बीजेपी जहां अपनी जीत का जश्न मना रही है, वहीं कांग्रेस अपनी हार के कारण ढूंढ रही है. चुनाव जीतने के बाद वसुंधरा राजे ने जहां जीत का श्रेय पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा को दिया. वहीं अशोक गहलोत ने कहा कि हम विनम्रतापूर्वक राजस्थान के लोगों द्वारा दिए गए जनादेश को स्वीकार करते हैं. यह सभी के लिए अप्रत्याशित परिणाम है. यह हार बताती है कि हम अपनी योजनाओं, कानूनों और नवाचारों को जनता तक ले जाने में पूरी तरह से सफल नहीं हुए.

छत्तीसगढ़ वो जगह, जहां एक्सपर्ट से लेकर आम लोग तक जिस राज्य के बारे में एकमत हों कि यहां तो कांग्रेस ही जीतेगी. वहां ना सिर्फ भाजपा की जीत होती है, बल्कि जीत भी नेक टू नेक न होकर अच्छे खासे मर्जिन से होती हो…तो इसे क्या कह जाए? आखिर कांग्रेस से चूक कहां हुई है?

छत्तीसगढ़ चुनावों के मद्देनज़र दुष्यंत कुमार का शेर बहुत मौजूं है. एक्सपर्ट से लेकर आम लोग तक जिस राज्य के बारे में एकमत हों कि यहां तो कांग्रेस ही जीतेगी. वहां ना सिर्फ भाजपा की जीत होती है, बल्कि जीत भी नेक टू नेक न होकर अच्छे खासे मर्जिन से होती हो…तो इसे क्या कह जाए? आखिर कांग्रेस से चूक कहां हुई है?

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वैसे तो पुलिस की भाषा में कहें तो सब कंट्रोल में ही था. सीएम भूपेश बघेल बेहद पॉपुलर…ओबीसी का चहेता चेहरा…आदिवासियों में भी खास क्रेज…सरकारी विकास योजनाएं सरपट दौड़ रही थीं. विपक्षी पार्टी भाजपा पिटी हुई हालत में थी. मुकाबले के लिए तैयार तक नहीं दिख रही थी, यहां तक कि किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने तक में इंट्रेस्ट नहीं दिखाया गया था. मानो, सब लगभग अनिच्छा से किया जा रहा हो, तब आखिर कांग्रेस से गलती हो कहां गई?

एक पार्टी जिसने पिछले चुनावों में बंपर जीत हासिल की हो. इस बार के चुनावों में कहां गच्चा खा गई. जहां उसकी जोरदार जीत की संभावना को धता बताकर भाजपा प्रदेश की 90 सीटों में से 55 सीटें निकालकर सरकार बनाने जा रही हो. तब यह जरूरी हो जाता है कि पता लगाया जाए कि इस हार के पीछे कौन से फैक्टर्स जिम्मेदार हैं. खोजा जाए कि बाहर से सबकुछ कंट्रोल में दिखने वाले इस चुनाव में कांग्रेस से कहां, क्या चूक हो गई?

वैसे इसे कांग्रेस की गलतियां कहें या चूक… फेहरिश्त काफी लंबी है, ज़रा बानगी तो देखिए…

महतारी वंदन योजना का इंपैक्टः भाजपा जहां राज्य में महतारी वंदन योजना के तहत विवाहित महिलाओं को 12,000 रुपये सालाना की आर्थिक मदद का वादा कर रही हो. राज्य की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 50,000 से अधिक फॉर्म भरवाए रही हो. राज्य की अच्छी खासी आबादी को प्रभावित करने वाली इस योजना को गहराई से समझने में शायद भूपेश बघेल चूक कर गए. जब तक वे इस योजना को समझे और उसकी काट के रूप में 15 हजार रुपये साल देने का वादा किया तब तक काफी देर हो चुकी थी. दीपावली के समय की गई इस घोषणा की जानकारी भी ठीक ढंग से लोगों तक नहीं पहुंच पाई. इस योजना का ही इंपैक्ट रहा कि महिलाओं ने बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया. मप्र में जिस तरह से लाडली बहना योजना गेमचेंजर साबित हुई कुछ उसी तरह का इंपैक्ट छत्तीसगढ़ में इस योजना का रहा।

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किसान-मजदूरों को 10 हजार सालाना, युवाओं को 2 लाख नौकरियांः बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में भूमिहीन किसानों और मजदूरों को 10,000 रुपये सालाना देने का वादा किया था. यह वादा सीधे तौर पर एक ऐसे वर्ग को एड्रेस था, जिसकी जनसंख्या छ्त्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा है. इसके अलावा युवाओं को जोड़ने के लिए भी बीजेपी ने 2 लाख सरकारी नौकरियों देने का भी वादा किया था. युवा वर्ग ने इस वादे को बहुत पॉजिटिव तरीके से लिया. इस वर्ग ने पीएम मोदी और बीजेपी पर पूरा भरोसा जताया. इन योजनाओं के काउंटर में बघेल ने अपनी पुरानी योजनाओं को ही जारी रखा. नतीजा-एक अन एक्सपेक्टेड रिजल्ट के रूप में सामने आया.

सोशल इंजीनियरिंग में इस बार भाजपा ने किया कमालः पिछली बार भूपेश बघेल ने कमाल की सोशल इंजीनियरिंग की थी. ओबीसी की सभी जातियों को साथ लाने में कामयाब हुई थी. लेकिन इस बार भाजपा ने साइलेंटली ओबीसी की अलग-अलग जातियों को धीरे से अपने साथ जोड़ लिया. टिकट का बंटवार भी जातियों के इसी समीकरण के तहत किया. बघेल शायद मुगालते में रहे, जैसी सोशल इंजीनियरिंग भाजपा ने यूपी में की थी उसी तरह की कलाकारी यहां दोहरा दी. भाजपा की गांव-शहरों में की गई इस महीन कारीगरी को भूपेश बघेल शायद समझने में भूल कर बैठे. सबसे बड़ी बात भूपेश बघेल खुद अपनी ही साहू जाति का बड़ा समर्थन कांग्रेस को नहीं दिलवा पाए. साहू जाति ने इस बार भाजपा को जबर्दस्त समर्थन देकर बड़ी जीत हासिल करने में मदद की.

छापे; प्रताड़ना का आरोप, छाप नहीं छोड़ पाएः भूपेश बघेल ने ED-IT के छापों को अपनी सरकार के खिलाफ प्रताड़ना के रूप में प्रोजेक्ट किया. इन छापों के खिलाफ हवा बांधने में ही लगे रहे. वहीं, भाजपा महादेव ऐप, गोबर घोटाला, शराब घोटाले को बघेल की इमेज के साथ चिपका पाने में सफल हो गई. संदेश देती रही कि राज्य में बहुत भ्रष्टाचार हो रहा है. पीएम मोदी सहित भाजपा के बड़े नेता अमित शाह, जेपी नड्डा तक. तक इसी मुद्दे पर कांग्रेस और बघेल सरकार को घेरते नजर आए. भाजपा इस मुद्दे को लगातार उछालती रही. भ्रष्टाचार को लेकर लोगों के बीच भी मैसेज गया. बघेल अपनी सरकार की छवि को नीट एंड क्लीन बनाए रख पाने में सफल होते नहीं दिखे.

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सांसदों को उतारने का दांव चल गयाः बीजेपी ने यहां भी मप्र, राजस्थान की तरह सांसदों को उतारा. रेणुका सिंह, अरुण साव, विजय बघेल और गोमती साय को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया गया. नतीजे बता रहे हैं कि विजय बघेल को छोड़ बाकी सांसदों ने न सिर्फ अपनी सीटों को निकाला बल्कि आसपास की कई सीटों को भी प्रभावित किया. यानी सांसदों को उतारने का दांव बीजेपी के पक्ष में गया.

बघेल-टीएस सिंहदेव की टसल भारी पड़ीः राजस्थान के पायलट-गहलोत झगड़े की तरह छत्तीसगढ़ में भी बघेल-टीएस सिंहदेव की टसल चल रही थी. दोनों के बीच लंबे समय से रस्साकशी चल रही थी. मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर यह विवाद हुआ था. जो बाद में आलाकमान के समझाने पर सीजफायर में बदला था, लेकिन राख के नीचे चिंगारी हमेशा से रही. इस गुटबाजी का असर सरकार पर भी दिखाई दिया. टिकट वितरण खूब खींचतान हुई. टिकट वितरण में भी यह गुटबाजी दिखाई दी. अपने-अपने कैंडिडेट्स के लिए खूब साम-दाम किया गया. कांग्रेस को टिकट वितरण की इसी खामी की वजह से कई सीटें गंवानी पड़ीं. हालात यहां तक पहुंची की खुद सिंहदेव अपनी सीट हार गए. जबकि पिछली बार उन्होंने सरगुजा की सभी 14 सीटों पर कांग्रेस की जीत पक्की की थी, इस बार सभी 14 सीटों पर कांग्रेस की पराजय हुई।

 

मध्यप्रदेश में जारी चुनावी मतगणना (MP Election 2023 Results) की बात करें तो खबर लिखे जाने तक प्रदेश की 230 सीटों में से BJP 148 सीटें जीतकर 16 पर बढ़त बनाए हुए है. इसके मुकाबले कांग्रेस 65 सीटें जीतती हुई ही दिख रही है. वहीं, एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी की विजय हुई है. इस चुनाव में सपा, बसपा और आप का खाता तक नहीं खुल सका.