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देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि 1947 में विभाजन के समय बलिदान हुए हिंदुओं की स्मृति में स्मारक स्थल बनाया जाएगा

27 अगस्त को देहरादून के सुभाष रोड स्थित वेडिंग प्वाइंट में में भारत विभाजन विभीषिका स्मृति कार्यक्रमों की शृंखला के समापन पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ। पंजाबी सभा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बंटवारे का खौफनाक दर्द सहने वाले 300 से अधिक बुजुर्गों को सम्मानित किया गया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सम्मानस्वरूप उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया और शॉल ओढ़ा कर उनके पांव छुए। इस सम्मान से सभी बुजुर्ग भाव-विह्वल हो गए। समारोह में पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की कि भारत विभाजन के दौरान बलिदान हुए लाखों हिंदुओं की स्मृति में उत्तराखंड में एक विशाल स्मारक स्थल बनाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि यह कसक हमारे दिल में है और हमेशा रहेगी कि हमने अपने धर्म की खातिर अपनी जन्मभूमि को छोड़ा, बेघर हुए और बहुत कुछ हमने और आपने खोया है। उन्होंने कहा कि बंटवारे के दंश को झेलने वाले लाखों ऐसे लोग हैं जिनके दर्द का कभी कहीं उल्लेख नहीं किया गया और बीते 75 वर्ष से ये लोग उस दर्द को अपने सीने में दबाए बैठे थे। उन्होंने कहा कि भारत के तथाकथित इतिहासकारों ने यह उल्लेख कहीं नहीं किया है कि 1947 में जब विभाजन हुआ तो 12,00,000 से ज्यादा हिंदुओं की हत्या की गई। महिलाओं और बच्चियों के साथ दुराचार किया गया। डेढ़ करोड़ से ज्यादा हिंदुओं को अपनी बेशकीमती संपत्ति छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ा।

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उन्होंने विभाजन के दौरान अपनी जान गंवाने वालों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने वयोवृद्ध श्रीमती विद्यावंती, सरदार मनोहर सिंह नागपाल, नानकचंद नारंग, भवानीदास अरोड़ा आदि को सम्मानित किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को एक ओर जहां देश आजादी का जश्न मना रहा था, वहीं दूसरी ओर देश के विभाजन का भी हमने दर्द सहा। देश का विभाजन भारत के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं था। इस दंश के दर्द की टीस आज भी है, जो इसे झेलने वाले लोगों की आंखों को नम कर देती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत का विभाजन केवल एक भूभाग का विभाजन नहीं था, पीढ़ियों से साथ रह रहे लोगों के बीच नफरत और सांप्रदायिकता की लकीर खींच दी गई थी। लगभग पूरा भारत छिन्न-भिन्न हो गया था। वर्षों से साथ रहने वाले लोग, एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे, हर जगह क्रूरता नजर आ रही थी, जीवन मूल्यहीन हो गया था। मानव विस्थापन का इससे भयानक और विकराल रूप पहले कभी नहीं देखा गया। भारत के बंटवारे ने सामाजिक एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर दिया था।

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विभाजन के दौरान वैमनस्य और दुर्भावना का दृढ़तापूर्वक सामना करने वाले, प्रत्येक व्यक्ति के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उस हिंसक उन्माद के दौर के इस परिसर में बैठे हमारे वरिष्ठों और उनके अनेक साथियों ने, समाज के प्रति अपने कर्तव्य, राष्ट्र के प्रति अपनी कृतज्ञता और मातृभूमि के प्रति अपने समर्पण को जीवंत रखा। इस बंटवारे ने जो जटिलताएं और विषमताएं, आजाद भारत के सामने ला कर खड़ी कीं, देश आज भी उनका सामना कर रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अनेक इतिहासकारों और राजनेताओं ने, विभिन्न मंचों से स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत का विभाजन राजनीतिक निर्बलता का स्पष्ट उदाहरण था। हम सभी का यह दायित्व है कि हमारी युवा पीढ़ी, उस तथ्य को जाने कि यह आजादी हमने किन हालातों में प्राप्त की थी। उन्होंने कहा कि देश आज आजादी के अमृत वर्ष में प्रवेश कर चुका है और इस अमृतकाल में हमारा यह कर्तव्य है कि हम देश को स्वतंत्र कराने वाले और देश के विभाजन की यातनाएं झेलने वाले मां भारती के प्रत्येक सपूत के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद विभाजन विभीषिका झेल चुके लोगों ने विभाजन से मिले दर्द को भुलाकर देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। विभाजन की विभीषिका की पीड़ा सह चुके लोगों ने इस क्षेत्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से पलायन करके आए हुए आप जैसे हमारे पंजाबी भाइयों ने दिखा दिया कि मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर इंसान क्या नहीं कर सकता।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमने भी उत्तराखंड को देश का श्रेष्ठ राज्य बनाने का ‘विकल्प रहित संकल्प’ लिया है। इसके लिए हम सरलीकरण, समाधान, निस्तारण और संतुष्टि के मंत्र पर काम कर रहे हैं। प्रदेश में सड़क, रेल, हवाई यातायात की सुविधाओं का तेजी से विकास किया जा रहा है। सभी के सहयोग और समर्थन से हम उत्तराखंड को श्रेष्ठ राज्य बनाने में अवश्य सफल होंगे।