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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 के पीलीभीत फेक एनकाउंटर मामले में 43 पुलिसकर्मियों को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई है. दोषी पुलिसकर्मियों पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.

सजा सुनाते समय जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव ने कहा कि ‘बेशक पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना और उन्हें ट्रायल के लिए भेजना है. लेकिन पुलिस का काम ये नहीं है कि वो आरोपी को सिर्फ इसलिए मार दे क्योंकि वो एक खूंखार अपराधी है.’

हालांकि, अदालत ने ये भी कहा कि पुलिस ने वही किया, जो करना जरूरी था. इसलिए ये हत्या नहीं, बल्कि गैर-इरादतन हत्या के दायरे में आएगा.

लिहाजा, हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोषी पुलिसकर्मियों की सजा को कम कर दिया. सीबीआई कोर्ट ने 4 अप्रैल 2016 को दोषी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

क्या है पीलीभीत एनकाउंटर केस?

उत्तर प्रदेश में 31 साल पहले 12-13 जुलाई 1991 की रात को पीलीभीत जिले में तीन फर्जी एनकाउंटर हुए थे. इसमें 10 सिखों की हत्या हो गई थी. पुलिस ने इन्हें खलिस्तानी आतंकवादी बताया था.

हालांकि, इन एनकाउंटर पर सवाल उठ गए. मामला सुप्रीम कोर्ट तो पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को इस एनकाउंटर की सीबीआई जांच के आदेश दिए.

सीबीआई जांच में पाया कि पुलिसकर्मियों ने तीर्थ यात्रियों से भरी बस को रोका और उसमें से 10 सिख यात्रियों को जबरन उतार दिया. बाद में तीन अलग-अलग जगह ले जाकर उनका एनकाउंटर कर दिया.

इस मामले में कुल 57 पुलिसकर्मियों पर चार्जशीट दाखिल की गई थी. सीबीआई कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही 10 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. सीबीआई कोर्ट ने 47 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद और जुर्माने की सजा सुनाई.

पुलिसकर्मियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान चार और पुलिसकर्मियों की मौत हो गई. 15 दिसंबर 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 43 पुलिसकर्मियों की सजा को घटा दिया और उन्हें 7 साल कैद की सजा सुनाई. साथ ही 10-10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया.

पुलिस की थ्योरी क्या थी?

पुलिस ने अपनी एफआईआर में इन सभी 10 सिखों को आतंकवादी बताया था. साथ ही आरोप लगाया था कि पहले इन्होंने फायरिंग की, जिसके जवाब में पुलिस को भी गोलियां चलानी पड़ीं.

पुलिस ने इस मामले में पीलीभीत जिले के तीन पुलिस थानों- न्योरिया, बिलसांदा और पूरनपुर में एफआईआर दर्ज की थी.

एफआईआर में क्या-क्या था?

1. न्योरिया थाना

12-13 जुलाई की रात को पुलिस को शिकायत मिली. इसके बाद पुलिस की टीम ने महोफ जंगल के धमेला कुंआ पहुंची.

एफआईआर के मुताबिक, तभी 5-6 सिख उनकी तरफ बढ़ रहे थे और उन्होंने गोलीबारी शुरू कर दी. इसके जवाब में आत्मसुरक्षा में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.

मुठभेड़ के दौरान दो सिख चरमपंथी वहां से भाग गए. फायरिंग रुकने के बाद पुलिस ने चार लोगों के शव को बरामद किया.

इस एनकाउंटर में बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह उर्फ जस्सा, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा और सुरजन सिंह उर्फ बिट्टू की मौत हो गई थी. पुलिस का कहना था कि इनके पास से बंदूक और कारतूस बरामद किए गए थे.

2. बिलसांदा थाना

12 जुलाई की रात को पुलिस ने लूट का केस दर्ज किया. ये केस राइफल और बंदूक की लूट से जुड़ा था. इसी सिलसिले में पुलिस की टीम तड़के साढ़े तीन बजे फगुनई घाट पहुंची.

एफआईआर में पुलिस ने लिखा कि नदी किनारे कुछ लोगों की चहलकदमी हो रही थी. जब पुलिस ने टॉर्च जलाकर देखा तो सिख चरमपंथियों ने फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.

फायरिंग रुकने के बाद जब पुलिस मौके पर पहुंची तो तीन लोगों के शव नदी किनारे पड़े थे, जबकि एक का शव नदी के अंदर से बरामद किया गया.

इस एनकाउंटर में लखविंदर सिर्फ उर्फ लक्खा, जसवंत सिंह उर्फ फौजी, करतार सिंह और रणधीर सिंह उर्फ धीरा की मौत हो गई थी.

3. पूरनपुर थाना

पुलिस को रात में सूचना मिली कि AK47, राइफल और बंदूक लिए 6-7 लोग तराई इलाके से रात में आए हैं. इस आधार पर पुलिस की टीम पट्टाभोजी गांव पहुंची.

पुलिस ने अपनी एफआईआर में लिखा कि पट्टाभोजी जंगल में 6-7 लोगों ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दी. इसके जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की.

जब फायरिंग रुकी तो मौके पर पहुंचकर पुलिस ने दो चरमपंथियों के शव बरामद किए. इस एनकाउंटर में नरेंद्र सिंह उर्फ निंदर और मुखविंदर सिंह उर्फ मुखा की मौत हो गई थी.

सीबीआई जांच में क्या मिला?

इस एनकाउंटर पर जब सवाल उठे तो सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए. इस मामले में सीबीआई ने लखनऊ में तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज कीं.

सीबीआई ने जांच में पाया कि 12 जुलाई 1991 को एक यात्री बस पटना साहिब और कुछ दूसरे धार्मिक स्थलों की तीर्थ यात्रा से लौट रही थी. इस बस में 24 यात्री सवार थे.

12 जुलाई की रात को पीलीभीत के पुलिसकर्मियों ने बस को रोका और उससे 10 सिख यात्रियों को जबरन उतार लिया. इसके बाद इन 10 सिखों को नीले रंग की मिनी बस में बैठाया. उस बस में 8-10 पुलिसकर्मी भी थे.

सीबीआई जांच के मुताबिक, उन सिखों को मिनी बस में बैठाकर घुमाया गया. फिर देर रात उन्हें तीन समूहों में बांटा और न्योरिया, बिलसांदा और पूरनपुर में ले जाकर फर्जी एनकाउंटर कर दिया.

सुनवाई के दौरान सीबीआई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रमोशन और पुरस्कार के लालच में इस एनकाउंटर को अंजाम दिया गया