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असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विपिन कुमार ने पिछले दिनों जोशीमठ में दरारें आने के बाद शोध किया था। शोध में जोशीमठ और भटवाड़ी से सैंपल लेकर वहां के एरिया को कंप्यूटर की मदद से तैयार किया गया। इसके बाद यहां पर बारिश का पानी, सीवेज वाले पानी और भूकंप का कंपोनेट डालकर देखा कि अगर भविष्य में यहां पर भूकंप आ जाए तो यहां की जमीन अपने धरातल से कितना अलग हट सकती है।

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जोशीमठ और भटवाड़ी में चमोली और उत्तरकाशी की तरह भूकंप आता है तो वहां की जमीन 20 से 21 मीटर तक खिसक सकती है। यह खुलासा दून विश्वविद्यालय के भूगर्भ शास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विपिन कुमार की ओर से किए गए शोध में हुआ है।

डॉ. विपिन कुमार ने कहा कि चमोली में 1999 और उत्तरकाशी में 1991 में तबाही मचाने वाले भूकंप आए थे। चमोली में आया भूकंप जोशीमठ से सिर्फ 26 किलोमीटर दूर और उत्तरकाशी में आया भूकंप भटवाड़ी से करीब 20 से 30 किलोमीटर दूर था। पिछले दिनों जोशीमठ में दरारें आने के बाद उन्होंने इस शोध को शुरू किया था। यह शोध यूरोपियन जियो साइंस यूनियन के जनरल नैचुरल हैजर्ड्स एंड अर्थ सिस्टम साइंसेज में अप्रैल 2023 में प्रकाशित हो चुका है।

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डॉ. विपिन ने बताया कि जोशीमठ और भटवाड़ी मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) वाले एरिया में बसा हुआ है। यह एक फॉल्ट है। जहां पर भूकंप आने की संभावना अधिक रहती है। शोध में जोशीमठ के लिए चमोली में 1999 में आए भूकंप का रिफरेंस और भटवारी के लिए उत्तरकाशी में 1991 में आए भूकंप का रिफरेंस लिया गया है। इसका डाटा स्ट्रॉन्ग मोशन वर्चुअल डाटा सेंटर से लिया गया। इस अध्ययन को डीएसटी प्रायोजित परियोजना की ओर से फंड दिया गया था, जिसे हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल ने प्राप्त किया था।

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शोध में शामिल कीं चार बड़ी वजह 
– जोशीमठ और भटवाड़ी के करीब उत्तरकाशी और चमोली में भूकंप आ चुका है।
– यहां पर लोग खेती भी करते हैं, ऐसे में पानी का ज्यादा उपयोग होता है। पानी रिसकर जमीन में जाता है। इससे जमीन खिसकने का खतरा बढ़ जाता है।
– इन इलाकों में सीवेज का पानी की निकासी के लिए न उपयुक्त नालियां बनी हैं और न ही कोई टैंक है। पानी खुला बहता रहता है। जोशीमठ में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा हुआ है लेकिन वह चल नहीं रहा है।
– यह दोनों एमसीटी वाले इलाके हैं। यहां पर घाटियां पास होती हैं, धरातल (टॉपोग्राफी) ऊपर होता है। यहां पर हवाओं में नमी अधिक होने की वजह से बारिश अधिक होती है।

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कंप्यूटर पर बनाया एरिया फिर निकला निष्कर्ष 
शोध में जोशीमठ और भटवाड़ी से सैंपल लेकर वहां के एरिया को कंप्यूटर की मदद से तैयार किया गया। इसके बाद यहां पर बारिश का पानी, सीवेज वाले पानी और भूकंप का कंपोनेट डालकर देखा कि अगर भविष्य में यहां पर भूकंप आ जाए तो यहां की जमीन अपने धरातल से कितना अलग हट सकती है।सिर्फ बारिश और सीवेज वाले पानी का निष्कासन वाली वजह देखेंगे तो एक दिन में 100 एमएम से अधिक बारिश होने पर यहां की जमीन 4 से 6 मीटर तक खिसक सकती है। वहीं अगर छह मैग्नीट्यूड से अधिक का भूकंप आता है तो यहां की जमीन 20 से 21 मीटर तक खिसक सकती है।पर्यटन भी बड़ा कारण
डॉ. विपिन ने बताया कि इन स्थानों में पर्यटन भी स्थिति में बदलाव का एक बड़ा कारण है। जोशीमठ में नौ से 10 हजार लोग रहते हैं। पर्यटन सीजन में यहां अचानक 20 से 30 लाख लोग आ जाते हैं। इससे यहां की स्थिति में काफी बदलाव हो रहा है।

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 एक घर से रोज 70 लीटर पानी बह रहा
जोशीमठ में देखने को मिला कि एक घर में जहां चार से पांच लोग रहते हैं, वहां पर एक दिन में 60 से 70 लीटर पानी बहता है। वहीं, पर्यटन बढ़ने पर अगर 20 से 30 लाख लोग आ जाते हैं तो कितना पानी बहेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस पानी के जमीन में जाने की वजह से वह कमजोर हो जाती है।
जमीन खिसकने में एक से दो और तीन महीने तक लग सकते
हैं
वैज्ञानिक दृष्टि से यह देखा गया है कि किसी भी पहाड़ी क्षेत्र के ऊपर बने धरातल पर अधिक पानी बहता है तो वहां की जमीन खिसकने में एक से दो दिन और दो से तीन महीने भी लग सकते हैं। यहां पर मई से सितंबर तक पर्यटकों की भीड़ रही। सितंबर के बाद अक्तूबर-नवंबर छोड़कर दिसंबर से जमीन खिसकने लगी थी और दरारें आना शुरू हो गई थीं।हल्द्वानी – ऑटो चालक ने जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या, वीडियो बना युवती को बताया अपनी मौत का जिम्मेदार – यह भारत का पहला शोध 
डॉ. विपिन कुमार का दावा है कि यह भारत का पहला शोध है, जिसमें यह बताया गया है कि बारिश होने, सीवेज के पानी का ज्यादा बहाव होने या भूकंप आने पर जमीन कितना खिसक सकती है।

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