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ECI ने सोमवार शाम तीन पार्टियों से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया. ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर इन दलों का यह दर्जा क्यों छिना? इसके नियम क्या हैं?

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चुनाव आयोग ने सोमवार शाम एक आदेश जारी करते हुए तीन राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा वापस ले लिया. इसके अलावा चुनाव आयोग ने दो क्षेत्रीय पार्टियों का दर्जा भी वापस ले लिया है. क्षेत्रीय दलों में निर्वाचन आयोग ने भारत राष्ट्र समिति (BRS) से आंध्र प्रदेश में और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) से UP में क्षेत्रीय दल का दर्जा वापस लिया गया है. इस आदेश के बाद अब रालोद एक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है. साथ ही ECI ने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया, जिसकी कि AAP लंबे समय से मांग कर रही थी. ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि आखिर इन दलों का यह दर्जा क्यों छिना? इसके नियम क्या हैं?

दरअसल चुनाव आयोग ही मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों के स्टेटस की समीक्षा करता है, जो सिंबल ऑर्डर 1968 के तहत एक सतत प्रक्रिया है. साल 2019 से अब तक चुनाव आयोग ने 16 राजनीतिक दलों के स्टेटस को अपग्रेड किया है और 9 राष्ट्रीय/राज्य राजनीतिक दलों के करंट स्टेटस को वापस लिया है.

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3 दलों से क्यों छिना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा?

चुनाव आयोग के मुताबिक इन दलों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया था लेकिन ये दल उतना रिजल्ट नहीं ला पाए, इसलिए यह दर्जा वापस लिया गया है. इन तीनों पार्टियों का वोट शेयर देशभर में 6 प्रतिशत से कम हुआ है. इन्हें 2 संसदीय चुनावों और 21 राज्य विधानसभा चुनावों के पर्याप्त मौके दिए गए थे. इसके बाद इन दलों के प्रदर्शन को रिव्यू किया गया और फिर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया गया. हालांकि ये पार्टियां आगे के चुनावी चक्र में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा वापस हासिल कर सकती हैं.

इन राज्यों में बढ़ा कद

गौरतलब है कि इन दलों को कुछ राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया है. नागालैंड में NCP और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), मेघालय में तृणमूल कांग्रेस और वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी, त्रिपुरा में टिपरा मोथा को मान्यता प्राप्त राज्य राजनीतिक दल के रूप में दर्जा दिया गया है.

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हालिया चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने का मिला फल

टिपरा मोथा पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) और वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी को इस साल के शुरू में त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में हुए विधानसभा चुनावों में उनके हालिया प्रदर्शन के आधार पर राज्य की पार्टियों के रूप में मान्यता मिली है.

जानें क्या कहते हैं इस मामले के एक्सपर्ट्स

ECI के इस एक्शन पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने कहा कि किसी भी राजनीतिक पार्टी का छोटा या बड़ा होना उसकी राष्ट्रीय दर्जे से नहीं, बल्कि पॉलिटिकल परफॉर्मेंस के आधार पर देखा जाता है. किसी भी पार्टी को अगर देश में चार से ज्यादा राज्यों में 6 फीसदी से ज्यादा वोट मिलता है, तो उसे राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर दिया जाता है. इसके अलावा अगर कोई दल 3 राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 3 फीसदी सीटें जीतती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है. साथ ही अगर किसी दल को 4 राज्यों में क्षेत्रीय दल का दर्जा प्राप्त है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाता है.

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जब छिना था लालू की पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा

कुरैशी याद करते हुए बताते हैं कि उनके वक्त में लालू प्रसाद यादव की पार्टी का नेशनल स्टेटस छीना गया था, क्योंकि उस वक्त इलेक्शन में उनकी पार्टी को 5.99% ही वोट मिला था जो कि 6% के करीब राउंड ऑफ में होता है. उस वक्त के चुनाव आयोग के वकील ने नियम बताया था कि राष्ट्रीय पार्टी तभी हो सकती है जब 4 राज्यों में उसका वोट 6% से कम न हो.

उन्होंने कहा, करीब हर क्षेत्रीय पार्टी राज्य से निकलकर अपना विस्तार चाहती है. राष्ट्रीय होने पर सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि स्टार कैंपेनर की संख्या बढ़ जाने पर खर्चा इंडिविजुअल नहीं रहता बल्कि वो पार्टी फंड में जुड़ जाता है. ऐसे में ज्यादा खर्चा होने पर किसी इंडिविजुअल के अयोग्य (disqualified) होने का खतरा नहीं रहता है. कुरैशी ने बताया कि रजिस्टर तो हर पॉलिटिकल पार्टी हो जाती है, लेकिन उसको पहचान मिलना बड़ी बात होती है और ये पहचान चुनावी प्रदर्शन (Electoral Performance) पर आधारित होती है.

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चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती देगी TMC! 

ECI के इस फैसले के बाद TMC अब लीगल विकल्पों की ओर रुख कर रही है. माना जा रहा है चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ TMC अदालत जाएगी.

राष्ट्रीय पार्टी होने के फायदे

1. राष्ट्रीय पार्टी को विशिष्ट चुनाव चिन्ह का आवंटन किया जाता है. राष्ट्रीय पार्टी के चुनाव चिन्ह को पूरे देश में किसी अन्य पार्टी के द्वारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है.

2. मान्यता प्राप्त `राज्य और राष्ट्रीय’ दलों को नामांकन दाखिल करने के लिए केवल एक प्रस्तावक (proposer) की आवश्यकता होती है.

3. मान्यता प्राप्त `राज्य ‘और` राष्ट्रीय’ दलों को चुनाव आयोग की तरफ से (मतदाता सूची के संशोधन की दशा में) मतदाता सूची के दो सेट मुफ्त में दिए जाते हैं. साथ ही इन पार्टियों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को आम चुनावों के दौरान मतदाता सूची की एक प्रति मुफ्त मिलती है.

4. इन दलों को अपने पार्टी कार्यालय स्थापित करने के लिए सरकार से भूमि या भवन प्राप्त होते हैं.

5. राज्य और राष्ट्रीय दल चुनाव प्रचार के दौरान 40 स्टार प्रचारक तक रख सकते हैं जबकि अन्य पार्टियाँ ’20 स्टार प्रचारकों’ को रख सकतीं हैं. स्टार प्रचारकों का यात्रा खर्च उनकी पार्टी के उम्मीदवारों के चुनाव खर्च के हिसाब में नहीं जोड़ा जाता है.

6. चुनाव के कुछ समय पहले उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर टेलीविजन और रेडियो प्रसारण करने की अनुमति देना ताकि वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहंचा सकें.

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देश में अभी कितनी राष्ट्रीय पार्टी? 

1. भारतीय जनता पार्टी (BJP)

2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC)

3. बहुजन समाज पार्टी (BSP)

4. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPM)

5. नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP)

6. आम आदमी पार्टी (AAP)

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तीन कैटेगरी में बंटती है राजनीतिक पार्टियां

उल्लेखनीय है कि भारत में सभी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन कराना होता है. इस देश में में कोई भी चुनाव लड़ सकता है और अपनी पॉलिटिकल पार्टी बना सकता है. इस समय देश में जितनी राजनीतिक पार्टियां हैं उन्हें 3 कैटेगरी में बांटा गया है.

राष्ट्रीय पार्टी: जिन्हें चुनाव आयोग ने नेशनल पार्टी का दर्जा दिया है.

क्षेत्रीय पार्टी: जिन्हें चुनाव आयोग से राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा मिला हो. भारत में अभी 50 से ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियां हैं.

गैर मान्यता प्राप्त पार्टीः ऐसी पार्टियां जो चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड होती हैं, लेकिन इन्हें मान्यता नहीं मिली होती. क्योंकि या तो ये बहुत नई होती हैं या इन्होंने इतने वोट हासिल नहीं किए होते कि क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा दिया जा सके. अब रालोद भी इसी कैटेगरी में आ गई है.

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