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आज ऐतिहासिक दिन है. यहां मंगलवार को विधानसभा के पटल पर समान नागरिक संहिता (UCC) बिल पेश किया गया है. सदन में बीजेपी विधायकों ने जय श्रीराम के नारे लगाए. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे इतिहास की युगांतकारी घटना बताया है.

राज्य सरकार जल्द ही इस विधेयक को कानून का रूप देकर पूरे राज्य में लागू करने वाली है. वहीं, देश में भी इस समय समान नागरिक संहिता को लेकर बहस छिड़ गई है. उत्तराखंड को मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है. सवाल ये है कि आखिर बीजेपी का ये दांव कितना काम आएगा और ये आम चुनाव से पहले बीजेपी की कोई रणनीति का हिस्सा है?

बता दें कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए उत्तराखंड की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की थी. चार दिन पहले ही सीएम को 740 पेज की ड्राफ्ट कमेटी की रिपोर्ट सौंपी गई थी. समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक का उद्देश्य नागरिक कानूनों में एकरूपता लाना है. यानी प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होना. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा. सभी पंथ के लोगों के लिए विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत और बच्चा गोद लेने में समान रूप से कानून लागू होगा.

‘यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बनेगा उत्तराखंड’

फिलहाल, आजादी के बाद उत्तराखंड देश में यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य बनने जा रहा है. हालांकि, पुर्तगाली शासन के दिनों से गोवा में भी यूसीसी लागू है. संविधान में गोवा को विशेष राज्‍य का दर्जा दिया गया है. गुजरात और असम समेत देश के कई बीजेपी शासित राज्यों ने उत्तराखंड यूसीसी को एक मॉडल के रूप में अपनाने की इच्छा जाहिर की है. इस विधेयक में 400 से ज्यादा प्रावधान किए गए हैं. शादी से लेकर लिव इन रिलेशन तक पर सख्त नियम बनाए गए हैं. हालांकि, इस विधेयक में जो विशेष प्रावधान किए गए हैं, उन्हें लेकर विवाद खड़ा हो सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि ये मुसलमानों पर यह कानून हम पर थोपने की तरह है. अगर इसे लागू किया जाता है तो मुस्लिमों के कई अधिकार खत्म हो जाएंगे. जैसे- तीन शादियों का अधिकार नहीं रहेगा. शरीयत के हिसाब से संपत्ति का बंटवारा नहीं होगा.

‘केंद्र सरकार भी दिखा रही है दिलचस्पी’

बताते चलें कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून बनाना बीजेपी का चुनावी घोषणापत्र वाला वादा था. धामी सरकार ने जन आकांक्षाओं के मुताबिक वो कानून बना दिया है. अब केंद्र सरकार की ओर से भी कहा जा रहा है कि विधि आयोग की रिपोर्ट के बाद इस दिशा में विचार किया जाएगा. देश के 22वें विधि आयोग ने पिछले साल UCC पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों से अपनी राय देने के लिए कहा था. फिलहाल, देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.

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‘यूसीसी लागू करने के लिए दिए जा रहे तर्क’

दरअसल, यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत आता है. इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे. इसी अनुच्छेद का हवाला देकर देश में UCC लागू करने की मांग उठाई जा रही है. लोगों का तर्क है कि इस कानून के लागू होने से जनसंख्या वृद्धि रोकने में मदद मिलेगी. वहीं, बीजेपी को लेकर देखा जाए तो UCC पार्टी के प्राथमिक मुद्दों में शामिल रहा है. बीजेपी के जो तीन प्रमुख मुद्दे रहे हैं, उनमें दो मुद्दे राम मंदिर का निर्माण और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का वादा पूरा हो गया है. अब सिर्फ यूसीसी ही बाकी रह गया है.

‘सहूलियत के नजरिए से देखा जाए यूसीसी’

लोगों का यह भी तर्क है कि देश में यूसीसी लागू होने से विवाह, तलाक, गोद लेने और संपत्ति बंटवारे में सभी के लिए एक नियम बन जाएगा. अलग-अलग कानून का झंझट दूर होगा. परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध और अधिकारों में समानता आएगी. जाति, धर्म या परंपरा के आधार पर नियमों में कोई रियायत नहीं मिलेगी. इसके अलावा किसी भी धर्म विशेष के लिए अलग से नियम नहीं रहेगा. कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि यूसीसी लागू होने से धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पूजा-इबादत और वेश-भूषा भी प्रभावित नहीं होगी. ऐसे में इसे कानूनी झमेले की बजाय सिर्फ सहूलियत के नजरिए से देखना चाहिए.

‘यूसीसी लागू करना आसान नहीं’

जानकार कहते हैं कि देश में यूसीसी लागू करना आसान नहीं है. क्योंकि, संविधान सभी को अपने-अपने धर्म का पालन करने और उसे मानने का अधिकार देता है. अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता का स्पष्ट तौर पर जिक्र किया गया है. यूसीसी लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे. हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्‍थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता और सुरक्षा देने की बात कही गई है. उत्तराखंड में आदिवासियों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है. उत्तराखंड में पांच जनजातियां अधिसूचित हैं. इनकी जनसंख्या 2,91,903 है. इसके पीछे बेहद कम जनसंख्या वाले जनजातीय समाज की संस्कृति और परपंराओं को सहेजे रखने के साथ ही उनके संरक्षण को उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख किया गया है.

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‘बीजेपी के बड़े वादे में शामिल रहा यूसीसी’

यूसीसी पर बीजेपी की रणनीति क्या होगी? इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा. भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जम्मू-कश्मीर की धरती से एक नारा दिया था- ‘एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान…नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे’. पिछले साल ही मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में सवाल दागा था कि एक परिवार में दो कानून कैसे चलेंगे? यूसीसी को लेकर लॉ कमीशन से लेकर स्टैंडिंग कमेटी तक एक्टिव है. सियासी गलियारों से लेकर संविधान, कानून के विशेषज्ञों-जानकारों तक ये चर्चा का मुख्य विषय बन गया है. सियासत के जानकार इसे उत्तराखंड चुनाव में ऐतिहासिक सफलता से जोड़ रहे हैं.

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‘उत्तराखंड से बड़ा संदेश जाएगा’

इस संबंध में हमने एक्सपर्ट से बात की है. उत्तराखंड में साल 2017 से 2021 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मीडिया सलाहकार रहे रमेश भट्ट ने कहा, उत्तराखंड में इसका इम्पैक्ट नहीं है. लेकिन मैसेज बड़ा है. पहली बार विधानसभा से पारित करके लागू किया जा रहा है. इसलिए बाकी राज्यों के लिए एक मॉडल की तरह होगा. उत्तराखंड यूसीसी के मुद्दे पर इसलिए हॉटस्पॉट बना हुआ है, क्योंकि सबसे पहले उत्तराखंड सरकार ने इसे लेकर पहल की थी. वह भी तब, जब इसकी इतनी चर्चा नहीं थी. कम अल्पसंख्यक आबादी के तर्क को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि सूबे की डेमोग्राफी में तेजी से बदलाव हुआ है. उत्तराखंड राज्य गठन के समय मुस्लिमों की आबादी प्रदेश में दो फीसदी के करीब थी जो अब लगभग 14 फीसदी के आसपास पहुंच चुकी है. सिख समुदाय के लोगों की भी अच्छी-खासी संख्या है. रमेश भट्ट ने साथ ही ये भी कहा कि उत्तराखंड में बड़ी आबादी को आज भी ये तक नहीं पता है कि यूसीसी है क्या? यूसीसी का मुद्दा उतना असरदार नहीं लग रहा जितना राम मंदिर निर्माण और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का था.

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‘हड़बड़ी दिखाने के मूड में नहीं है बीजेपी’

उत्तराखंड के बाद बीजेपी इस मुद्दे पर कितना आगे बढ़ेगी? इस बारे में राजनीतिक जानकार अमिताभ तिवारी कहते हैं कि ये मसला मैसेज का है. बीजेपी अपनी शुरुआत से तीन वादे करती आ रही है. मोदी सरकार ने अपने दूसरे टर्म में दो बड़े पूरे कर दिए हैं. जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया है. अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन हो गया है. तीसरा वादा यानी यूसीसी भी पूरा करने की तैयारी है. लेकिन कोई हड़बड़ी नहीं दिखाना चाहती है. बीजेपी की फिलहाल रणनीति यही है कि आने वाले चुनाव में वादे पूरे करने की प्रतिबद्धता का मैसेज दिया जाए. इसलिए नेशनल लेवल पर यूसीसी लाने में हड़बड़ाहट नहीं दिखाएगी.

‘अभी राज्यों में लागू किया जाएगा यूसीसी’

अमिताभ तिवारी कहते हैं कि इस बार चुनाव में बीजेपी राम मंदिर मुद्दे को लेकर जाएगी. इसका श्रेय लेने की पूरी कोशिश करेगी. यूसीसी संभवत: अभी टाल सकती है. यूसीसी को 2029 के आम चुनाव में सेट करने की रणनीति हो सकती है. फिलहाल, यूसीसी को राज्यों में लागू करके आगे बढ़ना पसंद करेगी. अलग-अलग राज्यों में लागू होने के बाद इसका संदेश भी स्पष्ट हो जाएगा और फिर 2029 तक देशभर में लागू करने पर आगे बढ़ सकती है.

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यूसीसी को लेकर क्या कहती है उत्तराखंड सरकार?

उत्तराखंड सरकार का दावा है कि इस कानून का लक्ष्य बिना धर्म जाति लिंग में भेदभाव किये सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का है. हालांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से इस बिल को सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने वाला कानून बताया जा रहा है. विधेयक पेश किए जाने से पहले विपक्षी सदस्यों ने सदन के अंदर विरोध प्रदर्शन किया और कहा, उन्हें इसके प्रावधानों का अध्ययन करने के लिए समय नहीं दिया गया. विपक्ष के नेता यशपाल आर्य ने कहा, ऐसा लगता है कि सरकार विधायी परंपराओं का उल्लंघन कर बिना बहस के विधेयक पारित करना चाहती है. विपक्षी सदस्यों ने भी नारेबाजी की. स्पीकर ऋतु खंडूरी ने आश्वासन दिया कि विधेयक का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा. यूसीसी बिल पेश करने के लिए उत्तराखंड में विशेष सत्र बुलाया गया है. यूसीसी पर कानून लागू होने के साथ बीजेपी राज्य में अपना वादा पूरा भी करेगी. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने राज्य के लोगों से यूसीसी लाने का वादा किया था.

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क्या नियम बनाए गए हैं…

-लड़कियों विवाह की उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल होगी. विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन होगा. पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान कारण और आधार उपलब्ध होंगे. एक पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी नहीं हो सकेगी यानी बहुविवाह पर रोक लगेगी. उत्तराधिकार में लड़कियों को भी लड़कों के बराबर अधिकार होगा. लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेरेशन आवश्यक होगा.
1- विवाह का पंजीकरण धारा 6 के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा.
2- तलाक के लिए कोई भी पुरुष या महिला कोर्ट में तब तक नहीं जा सकेगा, जब तक विवाह की अवधि एक साल ना हो गई हो.
3- विवाह चाहे किसी भी धार्मिक प्रथा के जरिए किया गया हो, लेकिन तलाक केवल न्यायिक प्रक्रिया के तहत हो सकेगा.
4- किसी भी व्यक्ति को पुनर्विवाह करने का अधिकार तभी मिलेगा, जब कोर्ट ने तलाक पर निर्णय दे दिया हो और उस आदेश के खिलाफ अपील का कोई अधिकार नहीं रह गया हो.
5- कानून के खिलाफ विवाह करने पर छह महीने की जेल और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. इसके अलावा नियमों के खिलाफ तलाक लेने में तीन साल तक का कारावास का प्रावधान है.

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6- पुरुष और महिला के बीच दूसरा विवाह तभी किया जा सकता है, जब दोनों के पार्टनर में से कोई भी जीवित न हो.
7- महिला या पुरुष में से अगर किसी ने शादी में रहते हुए किसी अन्य से शारीरिक संबंध बनाए हों तो इसको तलाक के लिए आधार बनाया जा सकता है.
8- अगर किसी ने नपुंसकता या जानबूझकर बदला लेने के लिए विवाह किया है तो ऐसे में तलाक के लिए कोई भी कोर्ट जा सकता है.
9- अगर पुरुष ने किसी महिला के साथ रेप किया हो, या विवाह में रहते हुए महिला किसी अन्य से गर्भवती हुई हो तो ऐसे में तलाक के लिए कोर्ट में याचिका लगाई जा सकती है.
10- अगर महिला या पुरुष में से कोई भी धर्मपरिवर्तन करता है तो इसे तलाक की अर्जी का आधार बनाया जा सकता है.