राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कई वर्ष हो चुके हैं जिस स्तर पर जितना संभव हो सका उतना संघर्ष करते थे, 29 नवंबर 1992 को अयोध्या पहुंचा था देश भर से कर सेवक वहां जुटे थे माहौल गर्म था और असमंजस की स्थिति थी मगर हर व्यक्ति के मन में रामकश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भाव दौड़ रहा था
4 दिसंबर को रामलाल के दर्शन का सौभाग्य मिला इसके बाद 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद का विध्वंश हुआ चारों तरफ राम सेवकों का सैलाब नजर आने लगा, कंपकंपाने वाली सर्दी में रात 2:00 से सुबह 6:00 बजे तक मेरे संग कई और उत्तराखंडी की ड्यूटी लगी थी, जुम्मा था मस्जिद के मलबे को हटाने का। शुक्रवार को अग्रसर भारत संवाददाता से आंदोलन की यादें साझा करते हुए विधायक नवीन चंद्र दुमका ने कहा कि यह घटना हमें आज भी प्रेरित करती है
देश का हर व्यक्ति इस समय 22 जनवरी का इंतजार कर रहा है लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने इस पल को साकार करने के लिए घर परिवार तो छोड़ ही इतना ही नहीं अयोध्या में राम मंदिर को प्राण प्रतिष्ठा से लाल कुआं निवासी नवीन चंद्र दुमका भी बेहद उत्साहित है यह बताते हैं कि 28 अक्टूबर 1990 को हल्दी छोड़कर 14 से 15 लोग संघ जुलूस को शक्ल में मंगल पड़ाव से बस स्टेशन की ओर जा रहे थे सिंधी चौक के पास इस दौर में राम मंदिर से जुड़ा सबसे प्रमुख नारा ”रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे” लगने लगें तभी पुलिस आई और सभी को गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल ले गई। वहां जगह कम होने पर मचखाली स्थित सरकारी स्कूल में बने अस्थाई जेल भेज दिया, लेकिन वहां भी रखने से मना कर दिया।
अगले दिन सुबह 4:00 बजे अल्मोड़ा जेल में ही सभी को भर गया। हालांकि समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा कौन सा अपराध हम लोगों से हो गया की जेल में ठोसने की नौबत आ पड़ी। कुछ दिन बाद पता चला कि पुलिस ने प्राथमिक की में लिखा था कि नवीन दुमका हाथ में बम लेकर मीरा मार्ग स्थित मस्जिद की तरफ दौड़ रहा था, कोई बड़ी घटना ना हो इसलिए पकड़ना जरूरी था इस आप से समझा जा सकता है कि इस दौर में सरकार के इशारे पर राम भक्तों के सॉन्ग कैसा व्यवहार होता था बहरहाल 15 दिन बाद अल्मोड़ा जेल से छूट गए राम मंदिर आंदोलन से जुड़े स्थानीय व अन्य कार्यक्रमों में भागीदारी को बरकरार रखा। 2 साल बाद 29 नवंबर 1992 को अयोध्या पहुंच गया अंतर मन से आवाज आ रही थी कि रामकाज अब पूरा होगा। 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ देश भर से कर सेवकों के आधे वर्ग वहां थे।
वर्तमान उत्तराखंड जो पहले उत्तर प्रदेश का हिस्सा था वहां से काफी लोग परिसर में थे इसके बाद हड्डियों तक को कंपा देने वाली सर्द रात में 9:00 बजे से सुबह 6:00 तक मलबे की सफाई में छूट गए अगले दिन टेंट में मूर्ति को रखा गया प्रभु के दर्शन का मौका भी मिला दूसरी तरफ अयोध्या सॉन्ग आसपास के जिलों में कर्फ्यू लग चुका था किसी तरह घर पहुंचा वहां पहले से ही पुलिसकर्मी चक्कर लगा रहे थे मुझे देखते ही बस यही कहा कि घर से ज्यादा बाहर मत निकालना