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दीपावली पर्व इस बार एक नवंबर को ही मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्य डॉ. मंजू जोशी के अनुसार इसे लेकर तरह-तरह के विघटित तर्क फैलाये जा रहे हैं लेकिन दीपोत्सव महालक्ष्मी पर्व एक नवंबर 2024 को ही संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा।

कहा कि संचार सेवाएं अत्यंत सशक्त होने के कारण इसका सदुपयोग होना चाहिए परन्तु इसका दुरुपयोग हो रहा है। सनातन धर्म में विघटन की स्थिति उत्पन्न हो गई है। हिंदू धर्म के अनुयायी दो गुटों में विघटित हो रहे हैं जो कि हमारे सनातन धर्म के लिए सोचनीय विषय है। ऐसे में हम अन्य धर्म के लिए उपहास के पात्र बनते जा रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई है। 1962, 1963 और 2013 में भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई थी उस स्थिति में जब दो दिन अमावस्या तिथि पर प्रदोष व्याप्त हो दूसरे दिन ही दीपोत्सव मनाया गया था। कहा कि यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी अमावास्या होती है तो दूसरे दिन दीपावली (महालक्षमी) पर्व मनाना चाहिये। कहा कि इस वर्ष 31 अक्टूबर तथा 1 नवम्बर, 2024 को कार्तिक कृष्ण अमावास्या प्रदोषव्यापिनी है। ऐसे में एक नवम्बर को ही दीपावली (महालक्ष्मी) पर्व मनाना शास्त्रोक्त है।

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बताया कि प्रदोषव्यापिनी (सूर्यास्त के बाद त्रिमुहूर्त्त) कार्तिक अमावस्या के दिन ही दीपावली (महालक्ष्मी-पूजन) मनाने की शास्त्राज्ञा है। इसवर्ष  31 अक्तूबर के दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का समाप्तिकाल अपराह्न 3:53 पर है।अतः चतुर्दशी समाप्ति के साथ ही कार्तिक अमावस्या प्रारंभ होकर अगले दिन 1 नवम्बर शुक्रवार शाम 06:17 तक व्याप्त है।

स्पष्ट है कि अगले दिन एक नवम्बर 2024 प्रदोषकाल में अमावस तिथि की व्याप्ति कम समय के लिए है। (क्योंकि पंजाब, हिमाचल, जम्मू आदि राज्यों में सूर्यास्त लगभग 05:35 पर होगा।) जबकि 31 अक्तूबर, 2024 को अमावस्या पूर्णतया प्रदोष एवं निशीथकाल को व्याप्त कर रही है। परन्तु फिर भी शास्त्रनिर्देशानुसार ‘दीपावली पर्व महालक्ष्मी-पूजन 1 नवम्बर, शुक्रवार, 2024 को ही मनाना शास्त्रसम्मत रहेगा।

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कार्तिक अमावस्या को प्रदोष के समय लक्ष्मीपूजनादि कहा गया है। उसमें यदि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के अंतर 1 घड़ी (24 मिनट) से अधिक रात्रि तक (प्रदोषकाल) अमावस्या हो, तो बिना संदेह उसी दिन पर्व मनाए। यदि दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी होय, तो अगले दिन करें-क्योंकि तिथितत्त्व में ज्योतिष का वाक्य है-एक घड़ी रात्रि (प्रदोष) का योग होय तो अमावस्या दूसरे दिन होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है।) लक्ष्मीपूजन, दीपदान के लिए प्रदोषकाल ही शास्त्र प्रतिपादित है।

निर्णय सिन्धु, धर्म सिन्धु, पुरुषार्थ-चिन्तामणि, तिथि-निर्णय आदि ग्रन्थों में दिए गए शास्त्रवचनों के अनुसार दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होने पर दूसरे दिन ही अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त (प्रदोषव्यापिनी) वाली अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा। इसके अतिरिक्त दिवाली पर्व पर स्वाति नक्षत्र का होना भी अति आवश्यक है क्योंकि एक नवंबर 2024 को ही पड़ रही है।

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1 नवम्बर को लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत 
शास्त्र-वचनों पर विचार कर हमारे मतानुसार एक नवम्बर शुक्रवार को ही दीपावली पर्व तथा लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा। सम्पूर्ण भारत में यह पर्व इसी दिन होगा। यही निर्णय भारत के अधिकतर पंचाङ्गकारों को मान्य है। परम्परा अनुसार तथा गत अनेक उदाहरण भी इसी मत को मान्यता देते हैं। कहा कि उत्तराखंड में जितने भी पंचांग हैं उन सभी में 1 नवंबर 2024 को दीपोत्सव मनाने का निर्णय दिया गया है तो पंचांगकारों के परिश्रम को भी सम्मान देते हुए 1 नवंबर को ही दीपोत्सव मानना शास्त्र सम्मत होगा क्योंकि हर छोटे बड़े धार्मिक अनुष्ठान के लिए हम हमारे प्रदेश में बन रहे पंचांगों का ही प्रयोग करते हैं।)

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