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उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गुरुवार को गैरसैंण की उपेक्षा के खिलाफ यहां मौन उपवास किया. इसके बाद उन्होंने बाजार में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को प्रतीकात्मक रूप से टॉर्च और मोमबत्ती जलाकर ढूंढा.

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड की स्थायी राजधानी घोषित करने की मांग को लेकर बुधवार को गैरसैंण में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की मूर्ति के निकट उपवास किया. उनके साथ राज्य के कई कांग्रेस विधायक भी मौजूद थे. इस दौरान हरीश रावत दिन के उजाले में हाथ में मोमबत्ती लेकर प्रदेश की स्थायी राजधानी खोजते हुए दिखाई दिए.

हरीश रावत के साथ सड़कों पर बड़ी संख्या में मौजूद लोग जुलूस की शक्ल में नारेबाजी करते हुए शहीद स्थल से निकले और गैरसैंण नगर के एक हिस्से की परिक्रमा करने के बाद वापस शहीद स्थल पर पहुंचे एवं सभा की.

कैंडल लेकर की राजधानी की तलाश

अपने समर्थकों के साथ जुलूस का नेतृत्व करते हुए उन्होंने मीडिया से बात की और कहा, “मैं मोमबत्ती लेकर उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी की तलाश में निकला था, लेकिन मुझे वह कहीं नहीं मिली. हालांकि, मैंने सड़कों पर बहुत सारे गड्ढे देखे, बिना डॉक्टरों के अस्पताल, बिना पानी के नल और सड़कों पर पड़ा मलबा जो गैरसैंण की पहचान बन गया है.”

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इस मौके पर उन्होंने सवाल पूछा कि गैरसैंण उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी है और देहरादून अस्थायी राजधानी है तो प्रदेश की स्थायी राजधानी कहां है? उन्होंने कहा, “पूरे राजमार्ग पर उन्होंने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बताते हुए साइनबोर्ड लगा दिए हैं, बुनियादी ढांचा कहां है? अगर 2027 में हम सत्ता में आए तो कांग्रेस गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाएगी.”

इस मौके पर उन्होंने सवाल पूछा कि गैरसैंण उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी है और देहरादून अस्थायी राजधानी है तो प्रदेश की स्थायी राजधानी कहां है?

हमारी सरकार बनते ही गैरसैंण बनेगी राजधानी- रावत

उन्होंने कहा कि हमने पहले स्पष्ट कर दिया था कि 2020 तक गैरसैंण में अवस्थापना सुविधाएं विकसित कर लेंगे और 2022 से पहले गैरसैंण में राजधानी ले आएंगे लेकिन इससे पहले एक षड्यंत्र के तहत ‘हमें (सत्ता से) हटा दिया गया.’ कांग्रेस नेता ने कहा कि अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने वादा किया था कि 2020 तक गैरसैंण में मजबूत बुनियादी ढांचा होगा और इसे राज्य की राजधानी बनाया जाएगा.

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तीन बार उत्तराखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके रावत ने लोगों से अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिताने और सत्ता में लाने की अपील की. उन्होंने आश्वासन दिया कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही राजधानी गैरसैंण लायी जाएगी.

2020 में हुआ था ये फैसला

आपको बता दें कि साल 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया था.  अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद स्थायी राजधानी को लेकर उत्तराखंड में पिछले दो दशकों से बात कही जा रही है, लेकिन आज तक स्थायी राजधानी नहीं मिल सकी. देहरादून राज्य की राजधानी है, लेकिन वह अभी भी अस्थायी राजधानी के रूप में ही है. गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग नई नहीं है.

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दरअसल, उत्तराखंड में प्रशासकीय तौर पर दो मंडल हैं, कुमाऊं और गढ़वाल. राज्य बनने के बाद गढ़वाल और राज्य की सीमा पर स्थित देहरादून को राजधानी बनाया गया तो कुमाऊं के नैनीताल में हाई कोर्ट बना रहा. इसके अलावा उत्तराखंड देश के चुनिंदा राज्यों में शुमार है, जहां राज्यपाल के लिए दो राजभवन हैं- देहरादून और नैनीताल में. ग्रीष्मकाल में राज्यपाल यहां प्रवास पर आते हैं.

उत्तराखंड देश का ऐसा पांचवां राज्य बना है जिसकी 2-2 राजधानियां हैं. आंध्र प्रदेश में 3 राजधानियों का प्रस्ताव है तो हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में 2-2 राजधानियां हैं. जम्मू-कश्मीर में भी 2 राजधानी हैं. चमोली जिले में पड़ने वाला गैरसैंण उत्तराखंड की पामीर के नाम से जानी जाने वाली दुधाटोली पहाड़ी पर स्थित है, जहां पेन्सर की छोटी-छोटी पहाड़ियां फैली हुई हैं और यहीं पर रामगंगा का उद्भव हुआ है. भौगोलिक तौर पर यह इलाका उत्तराखंड के बीच में पड़ता है. इसलिए भी इसे राज्य आंदोलन के दौरान राजधानी बनाने की मांग थी.