राष्ट्रपति चुनाव में सर्वे साफ बता रहे हैं कि ट्रंप की बाइडेन पर जबरदस्त बढ़त है। बाइडेन जहां जन्म लिये, पले-बढ़े वहां भी उनका दावेदारी कमजोर है। पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट में भी बाइडन ने बेहद खराब प्रदर्शन किया और उनकी खूब आलोचना हुई. ये तक कहा गया कि वे राष्ट्रपति कैंडिडेट बनने के लायक नहीं हैं.
लोग कमला हैरिस, मिशेल ओबामा तक का नाम लेने लगे. और इन सब के बीच एक गोली लगती है ट्रंप को चुनावी रैली के दौरान, ट्रंप बच जाते हैं, कानों से गोली छूकर निकल जाती है, खून बहने लगता है और फिर पूरे अमेरिका में ट्रंप को लेकर सहानुभूति की लहर फैल जाती है, और साथ ही ये मैसेज की आज ट्रंप जिंदा हैं, वे बच गए और देखा जाए तो पूरे विश्व के इतिहास में चुनाव के दौरान ऐसी कोई घटना नहीं है, जो इसी रूप में चुनावी प्रतिद्वंद्वी के साथ घटी हो और वो हार गया हो तो क्या ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीत रहे हैं, चलिए करते हैं कारणों की पड़ताल…
ट्रंप बने नेशनल हीरो
पहले बात करते हैं ट्रंप की लोकप्रियता को लेकर। अगर भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो अमेरिकी चुनाव में करीब 50 लाख अप्रवासी भारतीय हैं तो इन आंकड़ों से आप अनुमान लगा सकते हैं कि बाइडेन में किस हद तक घबराहट घर कर चुकी होगी। अगर देखा जाए तो भारत में डोनाल्ड ट्रंप की अलग किस्म की लोकप्रियता है, ये बात तो किसी से छिपी नहीं है। ट्रंप आज ही नहीं बल्कि पीएम मोदी की लोकप्रियता के कल भी दीवाने थे, आज कुछ ज्यादा हैं क्योंकि अमेरिकी चुनाव में करीब 50 लाख अप्रवासी भारतीय हैं, और इस दीवानगी का अमेरिकी चुनाव पर सीधे तौर पर असर देखा गया है तो इस बार भी असर दिखेगा, इसमें कोई दो राय नहीं। और इस बात को ट्रंप बहुत अच्छी तरह से समझ रहे हैं इसीलिए किसी भी मौके पर वे पीएम मोदी या भारत के मामले में अति सतर्क हैं।रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप का पलड़ा काफी भारी है और उन्हें लग रहा कि बाइडन की हार पूरी तरह से तय है। दूसरी बात कि बाइडन की काबिलियत पर पार्टी के अंदर ही सवाल उठ रहे हैं। अमेरिका में 5 नवंबर को मतदान होगा और अगले साल यानि 6 जनवरी, 2025 को रिजल्ट आएगा। दस जुलाई तक के रुझानों पर एक नजर डालें तो ट्रंप को 46 फीसदी तो बाइडेन को 44 फीसदी मत मिल सकते हैं. यानि डोनाल्ड ट्रंप जो बाइडेन से 2 फीसदी आगे चल रहे हैं. सर्वे बताते हैं कि बाइडेन भारतीयों के बीच तेजी से पिछड़ रहे हैं. साल 2020 के मुकाबले भारतीयों में 19 फीसदी समर्थन कम हुआ है. अनुमान ये भी लगाया जा रहा है कि भारत और मोदी के खिलाफ अगर बाइडेन प्रशासन इसी तरह से हमले जारी रखता है तो भारतीय वोटर्स में उनका समर्थन और भी गिर सकता है. और ये बाइडेन के लिए बहुत बड़ी चिंता या बड़ी हार की तरफ इशारा कर रहा है। हालात इस हद तक बाइडेन के विपरीत हैं कि पेंसिल्वेनिया में जहां बाइडन पले-बढ़े हैं, वहां भी उनकी स्थिति ठीक नहीं है। एरिजोना, जॉर्जिया, नेवादा और उत्तरी कैरोलिना में भी बाइडन पीछे चल रहे हैं. पोल में शामिल ज्यादातर लोगों का यही मानना है कि बाइडन को अपनी जिद छोड़कर राष्ट्रपति की रेस से बाहर हो जाना चाहिए. इतना ही नहीं, लगभग 10 में से तीन डेमोक्रेट्स यानी बाइडन की पार्टी के ही लोगों का कहना है कि उन्हें दौड़ से हट जाना चाहिए. सिर्फ बाइडन ही नहीं, 9% रिपब्लिकनों ने भी ट्रंप को यही सलाह दी कि वे पीछे हट जाएं और दूसरे को मौका दें.ब्लूमबर्ग न्यूज/मॉर्निंग कंसल्ट के प्री पोल सर्वे में दावा किया जा रहा है कि पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद बाइडन की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है. पांच में से एक से एक भी वोटर यह मानने को तैयार नहीं कि वे मानसिक और शारीरिक रूप से फिट हैं. और इस बारे में लोगों ने काफी सोच-समझकर राय बनाया क्योंकि यह सर्वे ट्रम्प-बाइडन के बीच डिबेट के चार दिन बाद किया गया था.
भारत की शर्तों पर नहीं जीत पाएंगे बाइडेन
अब बात करते हैं भारत के तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी की हाल के रूस दौरे की, जिसने बाइडेन को उकसाया और वो बयानबाजी करने से नहीं चूके और अपनी बयानबाजी से वे न सिर्फ अमेरिका में अप्रवासी भारतीयों की निगाहों में आ गए बल्कि ये भी तय हो गया कि चुनावों में उनका वोट अब तो एकदम ट्रंप को ही जाएगा। मोदी-पुतीन के बीच जो मुलाकात हुई, उसका मैसेज गया अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन तक, तो ये भी बहुत कुछ बाइडेट-ट्रंप के रिजल्ट की कहानी बयां कर दे रहा है। 8 जुलाई को मोदी-पुतीन की मुलाकात हुई तो बाइडेन इस मुलाकात से काफी बिफरे, जबकि प्रधानमंत्री मोदी की पुतिन से इससे पहले भी कई मुलाकातें हुई हैं लेकिन 8 जुलाई को हुए भारत-रूस शिखर सम्मेलन को लेकर बाइडेन की जो हालत हुई है, इससे पहले उनकी हालत कभी नहीं इस तरह की देखी गई। अमेरिका इतना बौखला गया और इस बौखलाहट में जिस तरह से उसने ऐतराज जताया और चेतावनी भी दी, वो उसके घबराहट को बताने के लिए काफी है।
नई दिल्ली से हनोई पहुंचते ही असल रंग में दिखे बाइडेन
हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन नई दिल्ली छोड़ते ही वियतनाम की राजधानी हनोई पहुंचे थे। हनोई प्रेस वार्ता में बाइडेन ने भारत में मानवाधिकार की रक्षा, आम नागरिकों की सुरक्षा, किसी देश की समृद्धि में प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व का जिक्र किया. और ये सब कहते हुए बाइडेन ने इस बात का भी ध्यान नहीं रखा कि इसी साल जून में प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका में जो बाइडेन की सरकार ने गर्मजोशी से स्वागत किया था. इस यात्रा में दोनों देशों के बीच रक्षा, अंतरिक्ष, हथियारबंद ड्रोन, सेमीकंडक्टर सेक्टर, एच-1बीवीजा के मामले में द्विपक्षीय समझौते हुए. अमेरिका ने एशिया में भारत की उभरती शक्ति को सलाम किया और चीन के खिलाफ अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त माना. ये सब करके भी हनोई में बाइडेन ने जो बोला, वो सबपर भारी था और भारत की आशाओं-आकांक्षाओं पर पानी फेरने के समान था। पूरी दुनिया आवाक थी कि नई दिल्ली में तो बाइडेन ठीक थे, हनोई पहुंचते ही अचानक उन्हें क्या हो गया। और ये सब तब था, जब बाइडेन भारत में मानवाधिकार का मुद्दा उठा रहे थे, उससे ठीक पहले डोनाल्ड ट्रंप प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के पुल बांध रहे थे. 2022 में भी ट्रंप ने कहा- मोदी प्रधानमंत्री के रूप में बहुत शानदार काम कर रहे हैं.
50 लाख भारतीयों के लिए पाकिस्तान प्रेम पर बाइडेन मंजूर नहीं
बाइडेन पाकिस्तान और चीन की शर्तों पर भारत के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं लेकिन मोदी के नये भारत को यह गंवारा नहीं है। वो जानता है कि जो पाकिस्तान दशकों से आतंक को पाल-पोस रहा है, उसके मुद्दे पर अमेरिका उन्हें रास्ता नहीं दिखा सकता और इसीलिए कभी भी भारत ने तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया, जबकि बार-बार अमेरिका इसके लिए कोशिश करता रहा है। लेकिन अमेरिका इन सब से बेपहरवाह है और चीन के विस्तारवाद को रोकने के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों से संबंध जरूरी समझता है। लेकिन बाइडेन के विपरीत दुनिया ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 2020 में भारत आने के दौरान भी मोदी-ट्रंप की केमिस्ट्री को देखा था। गुजरात के मोटेरा में एक रैली को संबोधित करते हुए भारतीय स्वागत से अभिभूत होकर ट्रंप ने कहा था कि ऐसे भव्य आतिथ्य को वो हमेशा याद रखेंगे. स्टेडियम में सवा लाख लोगों की तालियों के साथ ‘नमस्ते ट्रंप’ के महाआयोजन से प्रभावित होकर उन्होंने पीएम मोदी को अपना प्रिय दोस्त कहा. केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर भी ट्रंप की तारीफों के पुल बांधते कई मौकों पर नजर आते हैं।
चुनावी सीजन में चुनाव में जीत-हार के नजरिये से देखा जाए तो गोली ट्रंप को नहीं मारी गई, गोली बाइडेन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के सपने को मारी गई और ट्रंप को गोली लगते ही बाइडेन का यह सपना भी टूट गया, ये भी सच है। जल्द ही देखने को मिलेगा अमेरिका में राजनीतिक चर्चा-परिचर्चा और उस चर्चा में बाइडेन और उनकी पार्टी इस बात की तरफ भी इशारा करेंगे कि ये गोली सहानुभूति की लहर के लिए खुद ट्रंप ने ही चलाई है, ट्रंप के कई पुराने रिकॉर्ड की भी बात जनता के सामने लाने या दोहराने की कोशिश होगी और अगर ऐसा बाइडेन करते हैं तो उनके लिए और उनकी पार्टी के अन्य नेताओं के लिए यह कदम आत्महत्या की तरह होगी, मतलब मानकर चलिए कि हर हाल में जनमत ट्रंप के साथ है और गोली लगते ही अमेरिका को उसका अगला राष्ट्रपति मिल गया है, बस ये फैसला 6 जनवरी, 2025 को पता चलेगा, जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का रिजल्ट आएगा।