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आंदोलनों की जमीन बागेश्वर में मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन फिर गूंजा. सैकड़ों की संख्या में युवाओं ने सरयू में स्थाई निवास की प्रतियां बहाई. साथ ही भू-कानून के अधिसूचना की चिता जलाकर विरोध भी जताया.

मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति, उत्तराखंड ने बागेश्वर की सरयू नदी में स्थाई निवास प्रमाण पत्र की प्रतियां बहाई. इसके साथ ही जमीनों की लूट के रास्ते खोलने के लिए लागू किए गए भू-कानून भी चिता भी जलाई. उन्होंने सरकार को अल्टीमेटम दिया और कहा कि अगर सरकार ने जल्द उनकी मांगे नहीं मानी तो उत्तराखंड राज्य आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन किया जाएगा.

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सोमवार को सरयू नदी के तट पर बागेश्वर में आयोजित सभा को संबोधित करते हुए मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी और सह संयोजक लुशुन टोडरिया ने कहा कि बागेश्वर की जमीन आंदोलन की जमीन रही है. चाहे देश आजादी का आंदोलन रहा हो या उत्तराखंड राज्य आंदोलन. इस जमीन ने आंदोलन को धार दी है. बाबा बागनाथ की जमीन से एक बार फिर बड़े आंदोलन की शुरुआत हो रही है. बाबा बागनाथ के आशीर्वाद से मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति आंदोलन को आगे बढ़ाएगी.

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सरयू नदी के तट पर स्थायी निवास की प्रतियां बहाते हुए युवाओं ने कहा कि अब लड़ाई आरपार की होगी. सरकार ने जल्द मूल निवास 1950 लागू नहीं किया तो उत्तराखंड आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन उत्तराखंड में होगा. उन्होंने कहा कि हमें हिमाचल की तरह सशक्त भू-कानून चाहिए. कृषि भूमि की खरीद फरोख्त पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए. आज बाहर से आने वाले लोगों ने अपने फर्जी स्थायी निवास बनाकर हमारे संसाधनों पर डाका डाल दिया है. नौकरियां, जमीन से लेकर हर तरह के संसाधनों को लूटा जा रहा है. मूल निवासी अपने ही राज्य में धक्के खाने के लिए मजबूर हैं.

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