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विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि मेरे पिता कैबिनेट सेक्रेटरी थे लेकिन 1980 में जब इंदिरा गांधी दोबारा चुनकर सत्ता में आईं, तो सबसे पहले उन्होंने मेरे पिता को पद से हटा दिया. मेरे पिता बहुत ईमानदार शख्स थे और शायद समस्या यही थी. वह उसके बाद कभी सेक्रेटरी नहीं बने. राजीव गांधी के कार्यकाल में मेरे पिता से जूनियर अधिकारी को कैबिनेट सेक्रेटरी बनाया गया.

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विदेश मंत्री जयशंकर ने मंगलवार को एक इंटरव्यू के दौरान चीन समेत कई मामलों पर खुलकर बात की. इस दौरान उन्होंने अपने पिता के साथ हुई नाइंसाफी पर भी दो टूक बात की. उन्होंने कहा कि उनके पिता डॉ. के सुब्रमण्यम कैबिनेट सेक्रेटरी थे लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी के दोबारा सत्ता में लौटने पर उन्हें पद से हटा दिया गया.

उन्होंने एएनआई को दिए इंटरव्यू में अपने पिता को पद से हटाने, उनकी जगह जूनियर अधिकारी को पद पर नियुक्त करने से लेकर विदेश सेवा से लेकर राजनीति तक के अपने सफर पर बात करते हुए कहा कि वह हमेशा से बेहतरीन फॉरेन सर्विस अधिकारी बनना चाहते थे.

जयशंकर ने कहा कि मैं हमेशा से बेहतरीन फॉरेन सर्विस ऑफिसर बनना चाहता था. मेरी नजरों में विदेश सचिव बनना उस सर्वश्रेष्ठता को हासिल करने की परिभाषा थी. मेरे पिता एक नौकरशाह थे, जो कैबिनेट सेक्रेटरी बन गए थे. लेकिन उन्हें पद से हटा दिया गया. वह उस समय 1979 में जनता सरकार में सबसे युवा सेक्रेटरी थे.

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वह बताते हैं कि मेरे पिता कैबिनेट सेक्रेटरी थे लेकिन 1980 में जब इंदिरा गांधी दोबारा चुनकर सत्ता में आईं, तो सबसे पहले मेरे पिता को पद से हटा दिया गया. मेरे पिता सिद्धांतों पर चलने वाले शख्स थे और शायद समस्या यही थी. उसके बाद वह कभी सेक्रेटरी नहीं बने. उनके बाद राजीव गांधी के कार्यकाल में मेरे पिता से जूनियर अधिकारी को कैबिनेट सेक्रेटरी बनाया गया. यह बात उन्हें बहुत खलती रही. लेकिन उन्होंने शायद कभी ही इसके बारे में बात की हो. जब मेरे बड़े भाई सेक्रेटरी बने तो उनका सीना गर्व से फूल गया था.

बता दें कि जयशंकर ब्यूरोक्रेट्स परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वह जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव पद पर रहे. साल 2019 में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. उससे पहले 2011 में ही जयशंकर के पिता का निधन हो गया था. उनके पिता डॉ. के सुब्रमण्यम देश के जाने-माने कूटनीतिज्ञ थे. उन्हें भारत के न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन का शिल्पकार भी माना जाता रहा है.

जयशंकर का कांग्रेस पर पलटवार

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में जब एस जयशंकर से पूछा गया कि कांग्रेस आरोप लगाती है कि आप और पीएम मोदी चीन का नाम लेने से डरते हैं. इस पर जयशंकर ने कहा, C H I N A, मैं चीन का नाम ले रहा हूं.

जयशंकर ने कहा, अगर हम डरते हैं तो एलएसी पर भारतीय सेना को किसने भेजा. राहुल गांधी ने उन्हें नहीं भेजा, बल्कि नरेंद्र मोदी ने भेजा है. चीन सीमा पर आज तक के इतिहास की सबसे बड़ी सेना की तैनाती की गई है. उन्होंने कहा कि मैं चीन का नाम लेता हूं. देखिए मैं चीन का नाम ले रहा हूं.

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विदेश मंत्री जयशंकर ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि उन्हें  ‘C’ से शुरू होने वाले शब्दों को समझने में थोड़ी दिक्कत हो रही होगी. यह सच नहीं है. मुझे लगता है कि वे जानबूझकर स्थिति को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं. दरअसल, कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार पर चीन को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. राहुल का कहना है कि सरकार चीन का नाम लेने से डरती है.

जयशंकर ने कहा कि मैं सबसे लंबे समय तक चीन का राजदूत रहा और सीमा विवाद मामलों को डील करता रहा. मैं यह नहीं कहूंगा कि मुझे इसके बारे मे अधिक जानकारी है लेकिन इतना कहूंगा कि मुझे चीन मामले पर काफी कुछ पता है. अगर उनके (राहुल गांधी) पास चीन को लेकर अधिक जानकारी और ज्ञान है तो मैं  उनसे भी सीखने के लिए तैयार हूं.

बता दें कि चीन और भारत के बीच मई 2020 से सीमा को लेकर विवाद चल रहा है. 2020 में गलवान में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. चीन को भी काफी नुकसान पहुंचा था. हालांकि, चीन पर जानकारी छिपाने का आरोप लगता रहा है. इसके बाद से कांग्रेस चीन के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरती रही है. कांग्रेस का आरोप है कि पीएम मोदी चीन का नाम तक नहीं लेते. यहां तक कि राहुल गांधी ने यहां तक कह दिया था कि पीएम मोदी चीन का नाम लेने से डरते हैं.

पिछले साल अरुणाचल के तवांग में भी चीनी सेना और भारतीय जवानों के बीच झड़प हुई थी. दरअसल, चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण की कोशिश की थी. इसके बाद भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ दिया था. इसे लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बयान भी दिया था.

हालांकि, इसे लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर निशाना साधा था. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चीन को लेकर बहस से ‘भागने’ का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे पर जवाब प्रधानमंत्री मोदी को देना चाहिए न कि रक्षा मंत्री को.

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