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रुद्रपुर: फास्ट-ट्रैक विशेष अदालत ने नाबालिग से यौन उत्पीड़न के आरोप में प्रतिवादी को 20 साल जेल की सजा सुनाई। कठोर कारावास के साथ ही 50,000 रुपये का जुर्माना भी अदालत ने आरोपी पर लगाया है। इसके साथ ही राज्य सरकार को पीड़िता को मुआवजे के रूप में एक लाख रुपये देने के भी आदेश दिये।

रुद्रपुर में 26 जनवरी 2019 को एक व्यक्ति ने आईटीआई थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। व्यक्ति ने बताया कि शाम को उसके रिश्तेदार अंकुर उर्फ ​​​​अंशुल और शेर सिंह, निवासी महेशपुर खेम ​​भगतपुर मुरादाबाद, शराब के नशे में घर आए। उन्हेंनशे में देखा तो तुरंत घर से निकल जाने को कहा गया, जिसके बाद दोनों ने घर छोड़ने की बजाय उससे पानी लाने को कहा। फिर वह पानी भरने चला गया और जब वह लौटा तो अंकुर उनकी 6 साल की बेटी को लेकर लापता था। इसके बाद शेर सिंह भी वहां से भाग गया। लगभग एक घंटे बाद, छह साल की मासूम बेटी को घर के बाहर छोड़कर हैवान भाग गया।

होश में आई तो बताई जुल्म की दास्तान

बेहोश मासूम जब होश में आई तो उसने बताया कि उसके चाचा ने उसके साथ दुष्कर्म किया है। इसके बाद पुलिस ने संदिग्ध को गिरफ्तार कर लिया, मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की न्यायाधीश संगीता आर्या ने की, सात गवाह अदालत में पेश हुए, जिसके बाद अदालत ने अंकुर को बलात्कार का दोषी पाया और उसे 20 साल जेल और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।

फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी लग गए 4 साल

फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी इस दरिंदगी को साबित होने में 4 साल लग गए। भारत की तमाम अदालतों में फास्ट ट्रैक कोर्ट होने के बाद भी कई केस पेंडिंग हैं। महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और विकलांगों के खिलाफ मामलों में तेजी लाने के लिए स्थापित की गई फास्ट ट्रैक भी सामान्य कोर्ट की तरह लेट लतीफी की शिकार हो रही हैं। वैसे भी कहते हैं कि देरी से मिला इन्साफ ना मिले इन्साफ के बराबर होता है। पिछले चार सालों में पेंडिंग मामलों में 45 फीसदी का इजाफा हो गया है। साल 2020 में ये मामले 10.7 लाख थे, 2023 में बढ़कर 15 लाख से ज्यादा हो गए हैं। और इस समय लगभग 18 लाख केस पूरे भारतवर्ष में सालों से फैसले का इंतजार कर रहे हैं।