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नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना की जाती है. इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. कठोर साधना करने की वजह से और ब्रह्म में लीन रहने की वजह से इनको ब्रह्मचारिणी कहा जाता है.

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत कल से हो चुकी है और आज नवरात्रि का दूसरा दिन है जो मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है. तो चलिए जानते हैं कि नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की क्या मान्यता है, उपासना विधि और उपासना से क्या लाभ होता है.

कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी?

नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना की जाती है. इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. कठोर साधना करने की वजह से और ब्रह्म में लीन रहने की वजह से इनको ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. विद्यार्थियों के लिए और तपस्वियों के लिए इनकी पूजा बहुत ही शुभ और फलदायी होती है. जिनका भी चंद्रमा कमजोर हो उनके लिए भी माता ब्रह्मचारिणी की उपासना अनुकूल होती है.

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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

मां ब्रह्मचारिणी की उपासना के समय पीले या वस्त्र धारण करें. साथ ही माता को सफेद वस्तुएं अर्पित करें जैसे- मिश्री, शक्कर या पंचामृत. ज्ञान और वैराग्य का कोई भी मंत्र माता के सामने जप सकते हैं. वैसे, मां ब्रह्मचारिणी के लिए ऊं ऐं नम: मंत्र का जाप विशेष होता है. साथ ही जलीय आहार और फलाहार पर विशेष ध्यान दें.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का लाभ

1. नवरात्रि के दूसरे दिन सफेद वस्त्र धारण करके पूजा करनी चाहिए या महिलाएं चाहें तो पीला वस्त्र भी पहन सकती हैं.

2. इस दिन माता के मंत्रों के साथ चंद्रमा के मंत्र का जब भी आप कर सकते हैं.

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3. माता को चांदी की वस्तु भी समर्पित की जा सकती है और बाद में इसको अपने पास सुरक्षित रखा जा सकता है.

4. इस दिन शिक्षा और ज्ञान के लिए विद्यार्थियों को मां सरस्वती की उपासना भी करनी चाहिए, उसके परिणाम उनके लिए बहुत शुभ होते हैं.

मां ब्रह्मचारिणी का भोग

नवरात्रि के दूसरे दिन माता को शक्कर का भोग लगाए और भोग लगाने के बाद घर के सभी सदस्यों में बांटें.

मां ब्रह्मचारिणी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर ब्रह्मचारिणी के रूप में जन्म लिया था. देवी पार्वती का यह स्वरूप किसी संत के समान था. एक बार उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने का प्रण लिया. इनकी तपस्या हजारों वर्षों तक चलीं. भीषण गर्मी, कड़कड़ाती ठंड और तूफानी बारिश भी इनकी तपस्या का संकल्प नहीं तोड़ पाई. कहते हैं कि देवी ब्रह्मचारिणी केवल फल, फूल और बिल्व पत्र की पत्तियां खाकर ही हजारों साल तक जीवित रही थीं. जब भगवान शिव नहीं मानें तो उन्होंने इन चीजों का भी त्याग कर दिया और बिना भोजन व पानी के अपनी तपस्या को जारी रखा. पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अर्पणा’ भी पड़ गया.

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एक बार देवी ब्रह्मचारिणी की इसी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वरदान देते हुए कहा कि उनके जैसा कठोर तप आज तक किसी ने नहीं किया है. तुम्हारे इस आलौकिक कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही है. तुम्हारी मनोकामना निश्चित ही पूरी होगी. भगवान शिव तुम्हें पति रूप में जरूर मिलेंगे.