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मनीष खंडूड़ी के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस के लिए पौड़ी गढ़वाल सीट पर टिकट की दावेदारी के समीकरण बदल गए हैं। कांग्रेस इस सीट पर जातीय समीकरण साधने की तैयारी में है, लेकिन इसके लिए उन्हें भाजपा के दांव का भी इंतजार है।

फिलहाल पार्टी के कई वरिष्ठ नेता, विधायक, पूर्व विधायकों के नाम इस सीट पर दावेदारी के तौर पर सामने आ रहे हैं।

दरअसल, मनीष खंडूड़ी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पौड़ी गढ़वाल सीट से किस्मत आजमाई थी, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए थे। सूत्रों के मुताबिक, इस बार भी कांग्रेस के पैनल में मनीष ही पहली च्वाइस के तौर पर शामिल थे, उन्हें इस बात का अहसास भी था। अचानक उनके पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल होने के बाद यहां टिकट दावेदारी के समीकरण बदल गए हैं।

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कांग्रेस आमतौर पर ठाकुर-ब्राह्मण फार्मूले पर चलती आई
ब्राह्मण या ठाकुर चेहरे को लेकर अब कांग्रेस फूंक-फूंककर कदम रखेगी। सूत्रों के मुताबिक अब यहां पूर्व पार्टी अध्यक्ष गणेश गोदियाल, बदरीनाथ विधायक राजेंद्र भंडारी, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष ज्योति रौतेला के अलावा पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत के नाम पर मंथन तेज हो गया है। पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन में भाजपा और कांग्रेस आमतौर पर ठाकुर-ब्राह्मण फार्मूले पर चलती आई है।

एक सीट पर ठाकुर तो दूसरी पर ब्राह्मण चेहरे का रिवाज रहा है। अभी भाजपा ने भी इन दोनों सीटों पर अपने पत्ते नहीं खोले। ऐसे में कांग्रेस भी मैदान में भाजपा के दांव के इंतजार में है। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों का कहना है कि संभावित तौर पर 14 मार्च को प्रत्याशियों की घोषणा हो सकती है लेकिन इसमें ये दोनों सीटें शामिल होंगी या नहीं, कहना मुश्किल है।

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मनीष के जाने का दुख, कांग्रेस मुक्त नहीं युक्त हो गई भाजपा

मीडिया से बातचीत में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि उन्हें मनीष के अचानक पार्टी छोड़ने का दुख है। लेकिन जो भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत का सपना दिखाती आई है, वह खुद कांग्रेस युक्त हो गई है। नौ में से पांच मंत्री कांग्रेस बैकग्राउंड के हैं। बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं के कांग्रेस छोड़ने के सवाल पर माहरा ने कहा कि लालच, सत्ता भोगी सोच और डर वाले लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा बहुत घबराहट में है। आज 400 पार का दावा करने के बावजूद दूसरे दलों के लोगों को लेने में जुटी है। उन्होंने कहा कि ये 1977 जैसा दौर है। एक बीजेपी शासित सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे और भाजपा विधायक व विस अध्यक्ष के भाई होने के बावजूद मनीष को कांग्रेस ने बहुत सम्मान दिया। उन्होंने कहा कि मनीष को थोड़ा सब्र रखना चाहिए था