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एडम स्मिथ भाषा विज्ञान के विद्यार्थी रहे और दर्शनशास्त्र के शिक्षक. लेकिन उन्होंने थ्योरी दी अर्थशास्त्र पर. एडम स्मिथ के इस क्रांतिकारी सिद्धांत ने दुनिया को मुक्त अर्थव्यवस्था का मंत्र दिया. इस थ्योरी पर चलकर वर्ल्ड इकोनॉमी ने लंबे सफर तय किए और राष्ट्रों ने सरप्लस के रूप में अरबों-खरबों डॉलर पूंजी जमा किया. भारत में भी जब बाजार को सरकार के प्रतिबंधों से मुक्त किया गया तो एडम स्मिथ की थ्योरी की चर्चा हुई.

आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक (Father of modern economics) कहे जाने वाले अर्थशास्त्री एडम स्मिथ (Adam smith) का बचपन उस बहुमंजिला घर में गुजरा था जिसकी खिड़कियां एक बाजार की ओर खुलती थी. समय आज से कोई 300 साल पहले (1723) का था. जगह थी यूनाइटेड किंगडम का स्कॉटलैंड. यहां किर्काल्दी नाम के गांव में लोग सुबह-सुबह इसी हाट में ब्रेड, दूध, मीट समेत जरूरत की अन्य चीजें खरीदते थे.

इसी छोटे से मार्केट में बालक एडम स्मिथ ने पहली बार लेन-देन, बाजार, और विनिमय को देखा. बालक एडम को पर्यवेक्षण (Observation) की शक्ति प्रकृति से मिली थी. उनका बालमन आस-पास की क्रियाओं का गहन अवलोकन करता था. स्कूल जाते और लौटते वक्त एडम स्मिथ रोज इस बाजार में घटने वाली आर्थिक क्रियाओं को देखते थे. इसी बाजार में पहली बार एडम स्मिथ ने एक्सचेंज सीखा, मार्केट के गुर सीखे, उनमें मुनाफा और नुकसान की समझ विकसित हुई. लंदन की पॉश कॉलोनियों में होने वाली साम्राज्यवादी हलचलों से दूर इसी छोटे से गांव में एडम स्मिथ अपनी मां के साथ रहते थे.

एडम स्मिथ ने ही दुनिया को दिया पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का कॉन्सेप्ट

किर्काल्दी के इसी बाजार में एडम ने अर्थशास्त्र के उस महीन सूत्र को पकड़ा जिससे आज भी दुनिया की इकोनॉमी संचालित हो रही है. ये सूत्र था मुक्त अर्थव्यवस्था का सिद्धांत. पूंजी के स्वतंत्र प्रवाह का सिद्धांत, यानी कि सरकारी नियंत्रण से मुक्त निजी कंपनियों को अपने दम पर फलने-फूलने देने की थ्योरी.

अर्थ और राष्ट्रों की संपत्ति की विवेचना कर रहे इस पॉलिटिकल इकोनॉमिस्ट ने ऐसी मौलिक स्थापनाएं दी जिससे दुनिया में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist economy) का सूत्रपात हुआ. यही नीति आगे चलकर laissez-faire (लेसे फेयर) के रूप में विकसित हुई. लेसे फेयर यानी कि कंट्रोल से मुक्त आर्थिक नीति, जहां प्राइवेट कंपनियों के बीच लेन-देन टैक्स फ्री और ‘पारदर्शी’ होता है और स्टेट एजेंसियां इन कंपनियों पर न्यूनत्तम निगरानी रखती हैं. व्यापार का ये व्यवहार ही ग्लोबलाइजेशन और उदारीकरण लेकर आया. इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जन्म हुआ और दुनिया एक ग्लोबल बाजार में बदल गई.

आधुनिक अर्थव्यवस्था के पिता कहे जाते हैं स्मिथ

पूंजी के स्वतंत्र और निर्बाध प्रवाह से जुड़े एडम स्मिथ की ये प्रतिस्थापनाएं इतनी युगपरिवर्तनकारी थी कि इन्हें आधुनिक अर्थशास्त्र का पिता कहा जाने लगा. अगले 250 से 300 साल में विश्व की अधिकांश आर्थिक मशीनरी इसी दर्शन से संचालित होने लगी. 19वीं सदी में कार्ल मार्क्स आए तो उन्होंने पूंजी की बजाय श्रम की प्रमुखता पर जोर दिया. बावजूद इसके आज राष्ट्रों के बही-खाते को देखें तो साफ जाहिर होता है कि मार्क्स की लेबर थ्योरी पूंजी को उत्पादन के मुख्य साधन से डिगा नहीं सकी है.

एडम स्मिथ ने अपनी दो सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों Theory of Moral Sentiments और  An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations में मनुष्य के आर्थिक और नैतिक व्यवहार, समाज के साथ उसके अंत:संबंध, तत्कालीन समाज के राजनीतिक दर्शन पर विस्तार से कलम चलाई है.

क्या है स्मिथ का फ्री मार्केट का सिद्धांत 

मुक्त बाजार अथवा फ्री मार्केट आधुनिक अर्थव्यवस्था की नींव है. सवाल उठता है बाजार किससे मुक्त होने चाहिए? इसका सरल सा जवाब है सरकार की गैर जरूरी दखलंदाजी से. आज भी दुनिया की सरकारें और अर्थशास्त्री बार-बार इस दर्शन का जिक्र करते हैं और बाजार में कम से कम सरकारी दखल की पैरवी करते हैं.

1776 में प्रकाशित हुई एडम स्मिथ की किताब  An Inquiry into the Nature and Causes of the Wealth of Nations जिसे वेल्थ ऑफ नेशंस भी कहा जाता है में इस सिद्धांत का विस्तृत वर्णन है. इस किताब में तर्क देते हुए स्मिथ कहते हैं कि मनुष्य की आर्थिक गतिविधियां स्वार्थ की वजह से होती हैं. जब एक व्यक्ति अपने स्वार्थवश कोई धंधा-पानी/वेंचर शुरू करता है तो वह उसका सर्वोत्तम संचालन करता है. क्योंकि इस बिजनेस में उसका धन दांव पर लगा होता है. वह इसी स्वार्थ की वजह से व्यापार का जोखिम उठाता है और मुनाफा कमाता है. यही मुनाफा बचत है, यही मुनाफा पूंजी है. एक व्यक्ति की पूंजी ही आखिरकार राष्ट्र की पूंजी है.

ब्रेड, मीट और शराब से बाजार समझा गए स्मिथ

स्मिथ के विचार तत्कालीन यूरोपीय समाज से प्रभावित लगते हैं. जो 17वीं-18वीं और 19वीं सदी में सिर्फ और सिर्फ मुनाफे के लिए काम कर रहा था. स्मिथ कहते हैं कि लोग स्वार्थ के अधीन होते हैं और अपने फायदे के लिए काम-काज और बिजनेस करते हैं. हर व्यक्ति के अंदर उसका निजी स्वार्थ होता है. अपनी बात समझाने के लिए एडम स्मिथ ने जो बातें लिखीं वो कैपिटलिज्म की किताब में अमिट लाइनें बनकर रह गईं. इकोनॉमिक्स समझाने के लिए प्रोफेसर आज भी इस लाइन को कई दफे दोहराते हैं. ये लाइन है, “It is not from the benevolence of the butcher, the brewer, or the baker that we expect our dinner, but from their regard to their own interest.”

दरअसल इस कथन के जरिए ए़डम स्मिथ अपने समाज के उन तीन किरदारों को सामने लाते हैं जिनके जरिए लोगों को ब्रिटेन को भोजन मिलता था. स्मिथ का कहते हैं कि हमें डिनर ब्रेड बेचने वाले बेकर, मीट बेचने वाले कसाई और शराब बनाने वाले ब्रीवर की मेहरबानी या भलमनसाहत से नहीं मिलता है बल्कि इस आर्थिक क्रिया में इन तीनों के ही अपने हित छिपे हैं. उनका कहना है कि एक बेकरी वाला इसलिए ब्रेड नहीं बेच रहा कि वह लोगों को भोजन देना चाहता है बल्कि उसमें उसका निजी स्वार्थ है. वह धन कमाना चाहता है इसीलिए ब्रेड बेच रहा है, वह एक आर्थिक क्रिया कर रहा है और जिसे भूख होगी वह उससे ब्रेड खरीदेगा. यही बात मीट बेचने वाले और शराब बेचने वाले के साथ भी लागू होती है.

एडिनबर्ग के ग्लासगो विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र और नीतिशास्त्र पढ़ाने वाले एडम स्मिथ ने इसी क्रिया को बाजार भी कहा है. यानी कि लेनदेन की वो जगह जहां क्रेता और विक्रेता एक दूसरे से मिलकर खरीदारी करते हैं. जब सभी लोग अपने स्वार्थ के लिए धन और वस्तुओं का लेन-देन करते हैं तो बचत के रूप में पूंजी जमा होती है. इसी प्रक्रिया में देश के लिए भी पूंजी का निर्माण होता है.

‘व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा में आखिरकार कुछ न कुछ सबकी बेहतरी है’

स्मिथ के अनुसार चूंकि बाजार में कई क्रेता और विक्रेता होते हैं. इसलिए उनके बीच प्रतियोगिता होती है. प्रतियोगिता में आगे बने रहने के लिए जरूरी है कि विक्रेता लागत कम रहें. लागत कम करने और लाभदायक बने रहने के लिए दक्षता बढ़ाना आवश्यक होता है.

जैसे-जैसे व्यवसाय अधिक दक्ष और सुगम बनते जाते हैं, वे तेजी से माल या सेवाओं का उत्पादन करते हैं, इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में गिरावट आती है, जिसका फायदा आखिरकार उपभोक्ताओं को ही मिलता है. एडम स्मिथ का एक मशहूर कथन है, -In competition, individual ambition serves the common good.इसका अर्थ यह है प्रतियोगिता में निजी महात्वाकांक्षा का फायदा आखिरकार सब को मिलता है.

एडम स्मिथ भले ही बिजनेस में सरकार के दखल को हतोत्साहित करते हैं लेकिन वे राष्ट्र में एक मजबूत सरकार जरूर चाहते हैं. वैसी सरकार जो नागरिकों को शिक्षा और स्वास्थ्य मुहैया करा सके. जो देश की सीमाओं की रक्षा कर सके. स्मिथ एक ऐसी मजबूत सरकार की परिकल्पना करते हैं जो व्यावसायिक संविदाओं (Business contract) को लागू करा सके, नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा कर सके.

व्यावसायिक संविदा को लागू कराने का अर्थ ये है कि देश में सरकार का इकबाल ऐसा होना चाहिए कि व्यक्ति अपने इकरारनामे पर अमल करने को मजबूर हो. एडम मजबूत कानून-व्यवस्था को भी जरूरी मानते हैं. इनके बिना व्यवसाय का पनपना मुश्किल होगा.

फ्री मार्केट का जादू

सरकारों की जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए स्मिथ तर्क देते हैं  कि सत्ता को देश में एक स्थिर, कानून का राज और संतुलित माहौल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जहां व्यवसाय सुगमता से संचालित हो सकें. इस माहौल में फ्री मार्केट का दर्शन अपना जादू करेगा और इसके परिणामस्वरूप सभी की समृद्धि में वृद्धि होगी.

इसमें दो राय नहीं कि अमेरिका, यूरोप, जापान, सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग जैसे देशों की अमीरी इसी फ्री मार्केट का जादू है. जहां सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, विदेश नीति जैसे विभाग संभालती हैं और बिजनेस वहां की कंपनियां करती हैं. हालांकि स्मिथ का ये बिजनेस मॉडल वर्तमान समय में दोष मुक्त नहीं है. जहां कई छोटे-छोटे और गरीब देशों की जीडीपी से ज्यादा की नेटवर्थ रखने वाली ये कंपनियां अपने व्यापारिक साम्राज्य बढ़ाने के लिए दूसरे देशों के संसाधनों का दोहन कर उसे खोखला कर देती है.

एडम स्मिथ की बात दोहरा चुके हैं पीएम मोदी

हालांकि कमियों के बावजूद एडम स्मिथ की इस थ्योरी का डंका आज भी दुनिया भर में बजता है. विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं फ्री मार्केट की इसी थ्योरी के इर्द-गिर्द चलती हैं. 1990 के बाद विदेशी कंपनियों के लिए अपने बाजार के दरवाजे खोलने वाला भारत, सफेद हाथी बने चुकी सरकारी कंपनियों के विनिवेश की पहल करने वाला भारत भी इसी कदम पर चलता दिखाई देता है. पिछले साल फरवरी में पीएम मोदी के एक बयान की काफी चर्चा हुई थी. जब पीएम ने एक एजेंसी को दिए इंटरव्यू में अपने संदेश को स्पष्ट शब्दों में कहा था. नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘सरकार खुद इंटरप्राइज चलाए उसकी मालिक बनी रहे, आज के युग में न ये आवश्यक है न ये संभव रहा. इसलिए मैं कहता हूं Government has no business to be in business.’

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नीतियां-प्राथमिकताएं स्पष्ट करते हुए कहा था कि सरकार का काम गरीबों के लिए भोजन के बारे में सोचना, उनके लिए घर और शौचालय बनाना, उन्हें पीने का साफ पानी दिलाना, उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना, सड़कें बनाना, छोटे किसानों के बारे में सोचना है. यह मेरी प्राथमिकता है. एडम स्मिथ भी जब देशों में लिमिटेड गवर्नमेंट की बात करते हैं तो वे जनता के लिए इसी बेसिक फ्रेमवर्क को मुहैया कराने पर जोर देते हैं.

BSNL की कहानी से समझिए, एडम किस संरक्षण का विरोध करते हैं 

ऊपर हमने बताया है कि एडम स्मिथ मुक्त बाजार में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को संरक्षण का विरोध करते हैं. एडम स्मिथ की समझ, उनकी व्याख्या के अनुसार व्यवसायों को संरक्षण उसकी दक्षता और लाभप्रदता (Profitability) को खत्म कर देता है. उसे इसे भारत में BSNL के उदाहरण से समझा जाना चाहिए. कुछ ही महीने पहले मोदी सरकार ने देश की टॉप दूरसंचार कंपनियों में शामिल रहे BSNL को 1.64 लाख करोड़ रुपये का रिवाइवल पैकेज देने का ऐलान किया है. दरअसल ये पैकेज ही संरक्षण है. 1.64 लाख करोड़ की ये रकम सरकार अपने खाते से एक तबाह हो चुकी कंपनी को आगे की बर्बादी से बचाने के लिए दे रही है. सवाल है कि इस कंपनी की ऐसी हालत क्यों हुई?

अपनी थ्योरी में स्मिथ साफ कहते हैं कि व्यवसाय करने वालों को उपभोक्ताओं की जरूरतें पूरी करने में सक्षम होना पड़ेगा तभी उन्हें मुनाफा मिल पाएगा. हालांकि लोकतंत्र में जरूरी नहीं है कि अर्थव्यवस्था और राजनीति में टकराव न हो. इसलिए सरकारों को बिजनेस नहीं चलाना चाहिए का ऐलान करने के बावजूद पीएम मोदी को एक सरकारी कंपनी को डूबने से बचाने के लिए देश के खजाने से 1.64 लाख करोड़ रुपये देना पड़ रहा है.

बाजार में एक अदृश्य शक्ति काम करती है

सवाल है कि एडम स्मिथ को फ्री मार्केट की शक्तियों पर इतना भरोसा कैसे है? इसके पीछे तर्क देते हुए स्मिथ कहते हैं कि बाजार में एक अदृश्य शक्ति काम करती है. ये शक्ति ही बाजार में मांग और पूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखती है और निवेशक को पूंजी का बेस्ट रिटर्न देती रहती है. इस थ्योरी का मानना है कि बाजार ऑटो करेक्ट करता है. स्मिथ मानते हैं कि बाजार में उप्तादक, उपभोक्ता और कामगार के अपने अपने हित हैं. इन तीनों के हितों के टकराव और सामंजस्य से बाजार चलता रहता है.

स्मिथ का कहना है कि बाजार की इस प्रक्रिया में सरकारी नियंत्रण शून्य होना चाहिए. स्मिथ का तर्क है किसी वस्तु की कीमत कितनी होगी, वो कितनी मात्रा में बिकेगी. इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होना चाहिए. क्योंकि ऐसा करने से अक्षमता और कुप्रंबधन पैदा होगा. वे संरक्षण के एकदम खिलाफ हैं. यहां ये याद दिलाना जरूरी है कि भारत में 90 के दशक से पहले मोटर कार, टेलिफोन, स्कूटर, सीमेंट और चीनी का मार्केट सरकार के कंट्रोल में था. तब उस समय की सरकारें तय करती थी कि इन चीजों का कितना उत्पादन होगा और इसकी कहां, कब कितनी बिक्री होगी. उस समय की कालाबाजारी और सामानों के लिए वेटिंग टाइम किसी से नहीं छिपी है.

स्मिथ के अनुसार बाजार स्वयं तय कर लेगा की किस चीज का उत्पादन होना चाहिए और कितनी मात्रा में होनी चाहिए. किसी चीज का उत्पादन करने के लिए कितनी लागत लगेगी कितने मजदूर लगेंगे और कितने जमीन की आवश्यकता होगी. ये बाजार की ताकतें तय करेगी.

5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने के लिए भारत को भी इनविजिबल हैंड पर भरोसा

अदृश्य शक्ति का ये सिद्धांत कितना अहम है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि भारत की सरकार ने 2025 में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने में इस अदृश्य हाथ को एक अहम कारक माना है. भारत सरकार की 2019-20 की आर्थिक समीक्षा कहती है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महात्वाकांक्षा बाजार के अदृश्य हाथ को मजबूत करने के साथ ही भरोसे की ताकत को शक्तिशाली बनाने पर निर्भर करती है. इस अदृश्य हाथ को व्यापार समर्थक नीतियों को बढ़ावा देकर ताकतवर बनाया जा सकता है.

हालांकि 1930 के दशक में जब अमेरिका और यूरोप इसी महामंदी के दौर से गुजर रहे थे तो एडम स्मिथ के ही देश के अर्थशास्त्री कीन्स ने इस थ्योरी को चैलेंज किया और कहा कि इस मंदी से निकलने के लिए सरकारों को अर्थव्यवस्था में दखल देने की जरूरत है.

जीडीपी गणना का आधार एडम स्मिथ ने ही तैयार किया

जिस जीडीपी के आंकड़ों से राष्ट्रों का आर्थिक रुतबा तय किया जाता है उसके मौलिक विचार एडम स्मिथ की पुस्तक वेल्थ ऑफ नेशंस से ही निकले हैं. 18वीं सदी में दो देशों के बीच आयात और निर्यात के लिए मुद्रा के रूप में सोने और चांदी का प्रयोग होता था. सोना चांदी को बुलियन कहा जाता था. जिस देश के पास जितना सोना-चांदी वो उतना अमीर कहलाता था. राष्ट्र सोने-चांदी में ही अपनी संपदा की घोषणा करते थे. इसे वाणिज्यवाद (Mercantilism) कहा जाता था.

लेकिन स्मिथ ने अपनी किताब के जरिए इस प्रैक्टिस को चुनौती दी. उन्होंने तर्क दिया कि देशों की समृद्धि का मूल्यांकन उनके उत्पादन के स्तर और कॉमर्स के आधार पर किया जाना चाहिए. यही अवधारणा किसी राष्ट्र की समृद्धि को मापने के लिए जीडीपी मीट्रिक तैयार करने का आधार बन गई है. आज जीडीपी की सहज परिभाषा एक साल में एक देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं का कुल वैल्यू है.

सोने और चांदी पर आधारित इकोनॉमी के खिलाफ क्यों थे स्मिथ

स्मिथ ने तर्क दिया कि सोने और चांदी पर आधारित व्यवस्था पूरी दुनिया को भूखी और वस्त्रहीन कर देगी अगर उसका भोजन और कपड़ों से विनिमय नहीं किया जा सके. इसलिए एडम स्मिथ की प्रतिस्थापना में जो दो चीजें धन बनी वो थीं- वस्तु और सेवाएं (Goods and services). और इसे श्रम का विभाजन से हासिल किया जा सकता है. एडम स्मिथ का एक मशहूर कथन है- It was not by gold or by silver, but by labour, that all wealth of the world was originally purchased.

सोने और चांदी पर आधारित व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी ये थी कि इन दोनों ही धातुओं की मात्रा विश्व में सीमित है. और अगर इन्हें किसी भी देश को हासिल करना है तो उस देश को इस गोल्ड और सिल्वर को किसी दूसरे व्यक्ति, देश या कंपनी से ही लेना पड़ेगा. ये व्यवस्था शोषण और युद्ध को जन्म दे रही थी. कई लड़ाइयां हो रही थी. लाखों लोग शोषण के शिकार हो रहे थे.

वहीं इसके उलट एक देश की वस्तु और सेवा उत्पादन की क्षमता का व्यापक विस्तार किया जा सकता था. इसमें बहुत संभावनाएं थी. जो देश  इस सिस्टम पर चले उनका आयात और निर्यात बढ़ा. स्मिथ की इसी विचारधारा ने जीडीपी गणना के लिए एक आधार तैयार किया जो आगे चलकर व्यवस्थित और सांस्थानिक हो गया.

उदार आर्थिक नीतियों के प्रवर्तक बने एडम स्मिथ

एडम स्मिथ का दौर यूरोप-अमेरिका में हलचल का दौर था. जनता अपने सम्राटों के खिलाफ विद्रोह कर रही थीं. विलासिता में डूबे राजाओं और रानियों को झकझोरते हुए जनता ने कहा कि हमें पेट भरने के लिए ब्रेड दो. फ्रांस और अमेरिका में क्रांति की चिंगारी सुलग रही थी. इसी माहौल में एडम स्थिम ने बड़े पैमाने पर यात्राएं की. उन्होंने अपने समकालीन दिग्गजों डेविड ह्यूम, वाल्तेयर, रूसो, फ्रांसिस क्वेसने के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया और नई व्यवस्था के लिए उर्वर जमीन तैयार की.

ये अचरज की बात है कि इकोनॉमी पर दुनिया को नए प्रकाश से परिचित कराने वाले एडम स्मिथ असल जिंदगी में दर्शनशास्त्र के टीचर थे. तब वो दौर था जब यूरोप में पुनर्जागरण ने करवट लेना शुरू कर रहा था. तब विश्वविद्यालयों में इतिहास, दर्शन और नीति शास्त्र की पुस्तकें अधिक पढ़ाई जाती थी और खेतिहर से व्यवसाय (Commerce) की ओर शिफ्ट हो रहे समाज के लिए नियम, नीति और नैतिकता का एक ढांचा तैयार किया जा रहा था.

इस ढांचे में मनुष्य के दैनिक व्यवहार, संपत्ति, धर्म से जुड़े कानून थे. अपनी पुस्तक वेल्थ ऑफ नेशंस में एडम स्मिथ ने आर्थिक सिद्धांतों की दार्शनिक विवेचनाएं की है. इन विवचनाओं पर अमल इतना क्रांतिकारी साबित हुआ कि आने वाले दशकों में ये सिद्धांत उदार आर्थिक नीतियों की प्रवर्तक बन गईं और दुनिया ने पूंजी के प्रवाह पर आधारित व्यवसाय के युग में प्रवेश किया.