
अग्रसर भारत
युवा सोच, नया भारत
पंतनगर:
तेजी से डिजिटल होती इस दुनिया में मोबाइल फोन अब हमारे हाथ का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी जीवनशैली और आदत बन चुका है। सुबह की पहली किरण के साथ नोटिफिकेशन चेक करना, दिनभर सोशल मीडिया की अंतहीन फीड को स्क्रॉल करना और रात को देर तक नीली रोशनी वाली स्क्रीन से चिपके रहना—यह अब एक सामान्य दिनचर्या बन गई है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि यह ‘डिजिटल खुराक’ हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर डाल रही है?
इसी संदर्भ में युवाओं और छात्रों के बीच एक नया और महत्वपूर्ण शब्द चर्चा में है— ‘डिजिटल डाइट’।
क्या है डिजिटल डाइट?
जैसे हम अपने शरीर को बीमारियों से बचाने और फिट रहने के लिए संतुलित आहार (Physical Diet) लेते हैं, ठीक वैसे ही अपने मस्तिष्क को तनावमुक्त और केंद्रित रखने के लिए स्क्रीन समय (Screen Time) को नियंत्रित करना ‘डिजिटल डाइट’ कहलाता है।
जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की छात्रा भारती अटवाल के अनुसार, “लगातार स्क्रीन पर रहने से मन थक जाता है। युवाओं में एकाग्रता की कमी और अनजाना तनाव बढ़ता जा रहा है। घंटों स्क्रॉल करने के बाद जो खालीपन महसूस होता है, वह डिजिटल ओवरलोड का ही संकेत है।”
रिश्तों पर बढ़ता ‘डिजिटल’ साया
डिजिटल डाइट केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, इसका गहरा प्रभाव हमारे पारिवारिक रिश्तों पर भी पड़ रहा है। आज एक ही कमरे में बैठे लोग शारीरिक रूप से साथ होकर भी मोबाइल की दुनिया में खोए रहते हैं। संवाद कम हो गया है और ‘सुनने’ की क्षमता घटती जा रही है। डिजिटल डाइट इसी बढ़ती दूरी को कम करने का एक प्रभावी सेतु है।
डिजिटल डाइट अपनाने के सरल मंत्र:
विशेषज्ञों और जागरूक युवाओं ने इसे अपनी जीवनशैली में उतारने के लिए कुछ आसान तरीके सुझाए हैं:
- स्क्रीन-फ्री मॉर्निंग: सोकर उठने के बाद कम से कम एक घंटे तक मोबाइल को हाथ न लगाएं।
- भोजन के समय नो फोन: खाना खाते समय मोबाइल का उपयोग पूरी तरह वर्जित रखें।
- डिजिटल कर्फ्यू: रात को सोने से कम से कम एक घंटे पहले सभी डिजिटल उपकरणों को खुद से दूर कर दें।
- नोटिफिकेशन कंट्रोल: अनावश्यक ऐप्स के नोटिफिकेशन बंद रखें ताकि ध्यान न भटके।
बदलाव की बयार: ‘नो फोन क्लास’
इस दिशा में अब शिक्षण संस्थान भी आगे आ रहे हैं। कई कॉलेजों में ‘नो फोन क्लास’ जैसे अभियान शुरू किए गए हैं, जिन्हें छात्रों का भरपूर समर्थन मिल रहा है। इसका उद्देश्य छात्रों को वर्चुअल दुनिया से बाहर निकालकर वास्तविक संवाद और शिक्षा की ओर प्रेरित करना है।
निष्कर्ष:
डिजिटल डाइट का अर्थ तकनीक का त्याग करना नहीं, बल्कि उसका अनुशासित उपयोग करना है। यह मन को राहत देने और अपनों के साथ फिर से जुड़ने का एक सार्थक प्रयास है। थोड़ी सी कोशिश हमें फिर से खुद से और अपने समाज से जोड़ सकती है।
प्रस्तुति:
भारती अटवाल
छात्रा, जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय



