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वर्षों से फाइलों में बंद हैं अतिक्रमण हटाने के निर्देश, बसने लगी मुस्लिम बस्ती, पुलिस में एफआईआर फिर भी शासन-प्रशासन खामोश, नैनीताल जिले में गौलापार क्षेत्र में बागजाला क्षेत्र में वन विभाग की जमीन पर वर्षों से अतिक्रमण हटाया नहीं गया

यह वह आरक्षित वन क्षेत्र की भूमि है जो 1978 में लीज पर दी गई थी और ये लीज 2008 में समाप्त हो गई थी। तब से उक्त वन भूमि को कब्जे से मुक्त करने के आदेश लालफीताशाही के शिकार हो रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक तराई पूर्वी वन प्रभाग क्षेत्र में गौला रोखड आरक्षित वन क्षेत्र की भूमि 1978 में 64 परिवारों को कृषि कार्य हेतु लीज पर दी गई थी, इस जमीन की लीज 2008 में खत्म हो गई। नियम ये कहता है कि जब लीज खत्म हो गई तो ये भूमि वन विभाग को वापस ले लेनी चाहिए थी। लेकिन वन विभाग के अधिकारी आंखें मूंद कर बैठे रहे और कागज फाइलों में दबते चले गए। जब-जब ये मसला सुर्खियां बनता कुछ दिन जांच पड़ताल होती फिर विभाग खामोश हो जाता।

वन विभाग के डीएफओ स्तर से, कुमायूं आयुक्त, जिला अधिकारी स्तर से भी ये विषय अतिक्रमण की बैठको में चर्चा में आता और फिर ठंडे बस्ते में चला जाता। हाल ही में जब वन विभाग ने अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया तो बागजाला की फाइल से एक बार फिर धूल झाड़ी गई। इस बारे में डीएफओ बाबू लाल की 21.07. 23 रिपोर्ट कहती है कि 2008 साल में लीज समाप्त होने के बाद किसी लीजधारक ने लीज नवीनीकरण का प्रार्थना पत्र नहीं दिया और न कोई शुल्क जमा करवाया।

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एक अन्य रिपोर्ट 02.08.19 में डीएफओ रहे नीतीश मणि त्रिपाठी ने वन मुख्यालय भेजी थी, जिसमें यह स्पष्ट जानकारी दी गई है कि यहां लीजधारक गायब हो गए हैं और उनकी जगह दूसरे लोग कब्जे कर रहे हैं। वन विभाग की एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि जब कृषि कार्य हेतु लीज हुई थी तब लीजधारकों की संख्या कुल 64 थी और इन्हें 66.96 हेक्टेयर वन भूमि का आवंटन किया गया था। आज की तारीख में यहां चार सौ से अधिक परिवार हैं, जिनमें 1800 लोगों ने वन भूमि पर एक बस्ती जैसी बना ली है।

रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 103 हेक्टेयर वनभूमि पर अवैध कब्जा है और यहां जंगल की सरकारी जमीन खरीदने और बेचने का धंधा चल रहा है। पिछले दिनों शासन के द्वारा इस मामले में दिशा-निर्देश मिलने पर वन विभाग ने कुछ लोगों के खिलाफ काठगोदाम पुलिस थाने में एफआईआर भी दर्ज करवाई और कब्जेदारों को नोटिस भी दिए किंतु कुछ दिन बाद फिर वन विभाग और जिला प्रशासन सो गया। अब पुनः डीएफओ बाबू लाल द्वारा डीएम के द्वारा बनाई गई समिति को संज्ञान में लेते हुए तराई पूर्वी वन प्रभाग को पत्र लिख कर बाग जाला, ढोली रेंज कोर्ट खर्रा आदि के विषय में ” अपडेट” रिपोर्ट मांगी है।

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ऐसा जानकारी में आया है कि इस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय द्वारा लीज धारकों से जमीन खरीद कर कब्जे किए जा रहे हैं और यहां धीरे-धीरे मुस्लिम बस्ती बसती जा रही है। इस बात की पुष्टि वन अधिकारियों के उन जांच रिपोर्ट में भी मिलती है जिसमें कहा गया है कि यहां लीजधारक अब नहीं के बराबर हैं, 64 लीजधारकों में से अब यहां बमुश्किल पांच-छह ही रह गए हैं और यहां अब 114 मुस्लिम परिवारों ने कब्जे कर घर बना लिए हैं। इसके अलावा हिंदू परिवार भी हैं जिनमें से नेपाली मूल के लोग हैं जोकि यहां अवैध रूप से बसे हुए हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार गौला पार में एक योजनाबद्ध तरीके से मुस्लिम बस्तियां बन रही हैं, जोकि डेमोग्राफी चेंज का उदाहरण पेश कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि यह वह क्षेत्र है जहां पास में ही नैनीताल हाई कोर्ट शिफ्ट होना है। इसके अलावा यहां कई महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय भी बनेंगे। खबर है कि हाई कोर्ट को लेकर जिला प्रशासन और वन विभाग पर भी खासा दबाव है। उधर, काठगोदाम थाने के सामने गंगापुर क्षेत्र में भी वन भूमि लीज पर आवंटित की गई थी उसकी लीज भी खत्म हो गई है, इस पर भी वन विभाग नोटिस देने की तैयारी कर रहा है।

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क्या कहते हैं नोडल अधिकारी ?

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने विशेष सचिव डॉ पराग धकाते को अतिक्रमण हटाओ अभियान का नोडल अधिकारी नियुक्त किया है। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उनका कहना था कि वन भूमि से अतिक्रमण हटाया जाएगा, इसमें कोई रियायत वाली बात नहीं होगी। बेहतर है कि लोग खुद ही अतिक्रमण स्थान से हट जाएं अन्यथा विभाग बलपूर्वक हटाएगा।

रेरा के विरोध के आंदोलन के पीछे बाग जाला के लोग भी

नैनीताल प्रशासन ने जिले में अवैध रूप से बस रही कॉलोनियों को रोकने के लिए, नैनीताल विकास प्राधिकरण ने रेरा नियम सख्ती से लागू किया है। इसके विरोध में गौलापार क्षेत्र से लोग आंदोलन कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार इस आंदोलन के पीछे बाग जाला के लोग भी शामिल हैं, जिन्हे वन विभाग की कार्रवाई का डर सता रहा है।

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