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24 जनवरी, 1966 को भारत के परमाणु प्रोग्राम के जनक कहे जाने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा का प्लेन क्रैश में निधन हो गया था. होमी भाभा की मौत ऐसे समय पर हुई थी, जब उन्होंने तीन महीने पहले ही एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उन्हें ग्रीन सिग्नल मिल जाए तो भारत 18 महीनों के अंदर ही परमाणु बम बना लेगा.

24 जनवरी, 1966 को भारत के परमाणु प्रोग्राम के जनक वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा का प्लेन क्रैश में निधन हो गया था. निधन से तीन महीने पहले ही होमी भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उन्हें हर तरफ से हरा सिग्नल मिल जाए तो भारत 18 महीनों के अंदर परमाणु बम बना सकता है.

हादसे से पहले होमी भाभा एयर इंडिया की फ्लाइट 101 में सवार होकर मुंबई से न्यूयॉर्क जा रह थे. यात्रा के दौरान फ्लाइट यूरोप की सबसे ऊंची मोंट ब्लांक पहाड़ी से टकराकर क्रैश हो गई. क्रैश में सभी 117 लोगों की मौत हो गई, जिनमें होमी भाभा भी शामिल थे.

घटना के बाद प्लेन क्रैश की वजह विमान के पायलटों और जिनेवा एयरपोर्ट के बीच मिसकम्युनिकेशन बताई गई. हालांकि, इस प्लेन क्रैश में होमी भाभा की मौत को लेकर कई ऐसे खुलासे और दावे किए गए, जिन्होंने पूरे देश को चौंका दिया.

साल 2008 में छपी एक किताब में इस क्रैश को अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए की साजिश बताया गया. हालांकि, यह कभी साबित नहीं हो पाया लेकिन इन आरोपों के बाद से होमी भाभा की मौत का रहस्य और ज्यादा गहरा गया.

क्या अमेरिका का था प्लेन क्रैश की साजिश में हाथ 
होमी भाभा की मौत के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ होने पर पहले भी चर्चा होती रही है. यहां तक कहा गया कि सीआईए ने भाभा की मौत की साजिश इसलिए रची, क्योंकि अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत के पास परमाणु शक्ति आ जाए.

दरअसल, साल 2008 में विदेशी पत्रकार ग्रेगरी डगलस की एक किताब ‘Conversation With the Crow’ में डगलस और एक सीआईए अफसर रॉबर्ट क्राउली की बातचीत का अंश डाला गया था. इसी के अंदर डगलस ने भारत के वैज्ञानिक होमी भाभा की मौत के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए की साजिश होने का दावा किया गया था.

इसके पीछे थ्योरी दी गई थी कि अमेरिका भारत जैसे देशों से चिंतित था. क्योंकि ऐसे देश हथियारों के साथ-साथ परमाणु ताकत को हासिल करने की पूरी कोशिश कर रहे थे. साल 1945 तक सिर्फ अमेरिका के पास ही परमाणु ताकत थी. हालांकि, अमेरिका की बादशाहत ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई और साल 1964 आने तक सोवियत यूनियन और चीन ने भी परमाणु परीक्षण कर लिया था.

किताब के अनुसार, जब साल 1965 में भारत पाकिस्तान से युद्ध जीत गया था तो अमेरिका बेचैन हो गया था. युद्ध जीतने के बाद भारत परमाणु शक्ति की ओर तेजी से बढ़ने लगा था, जिसे देखकर अमेरिका की चिंता और ज्यादा बढ़ गई थी. किताब में सीआईए अफसर रह चुके रॉबर्ट क्राउली ने भाभा के प्लेन क्रैश के पीछे साजिश की बात मानी थी.

2017 में एक पर्वतारोही ने किया था नया खुलासा

होमी भाभा की मौत से करीब 16 साल पहले साल 1950 में भी एयर इंडिया का एक विमान मोंट ब्लांक पर क्रैश हो गया था. उस हादसे में 48 लोगों की मौत हो गई थी. साल 2017 में डैनियल रोश नाम के एक पर्वतारोही ने दावा किया था कि उसे क्रैश साइट के पास विमान के कुछ अवशेष मिले हैं. हालांकि, यह साफ नहीं था कि जो टुकड़े मिले, वे साल 1950 के क्रैश वाले विमान के थे या साल 1966 वाले प्लेन क्रैश के, जिसमें होमी भाभा भी सवार थे.

वहीं रोश को एक अन्य विमान का इंजन भी मिला था. यह सब सामान देखकर रोश का मानना था कि जिस विमान में होमी भाभा सवार थे, हादसे के समय उसकी किसी दूसरे विमान से भी टक्कर हुई थी. रोश का कहना है कि अगर विमान संख्या 101 सीधा पहाड़ों में क्रैश होता तो वहां बड़ा धमाका होना चाहिए था, क्योंकि विमान में उस समय करीब 41 हजार टन तेल मौजूद था.

रोश ने आगे कहा था कि उनका मानना है, यह विमान एक इटालियन एयरक्राफ्ट से टकराया होगा. लेकिन ऐसी ऊंचाई पर ऑक्सीजन इतना कम रहा होगा कि टक्कर के बाद विस्फोट होने का मौका ही नहीं रहा होगा.

होमी भाभा को लेकर रोश ने कहा था कि, ”उन्हें नहीं पता कि यह हादसा था या साजिश और भाभा भारत को पहला परमाणु बम बनाकर देने वाले थे…मुझे लगता है कि सबूतों के आधार पर दुनिया को सच बताना मेरी ड्यूटी है. अगर भारत सरकार चाहती है तो मैं उन्हें ये दस्तावेज और क्रैश के दौरान यात्रियों का गिरा हुआ सामान देने के लिए तैयार हूं.

परमाणु शक्ति से भारत को आगे बढ़ाना चाहते थे होमी भाभा
भारत में परमाणु जनक के नाम से मशहूर होमी भाभा एक जाने-माने न्यूक्लियर फिजिसिस्ट थे. उन्होंने कैम्ब्रिज से पढ़ाई की थी, जहां उन्हें अपने काम को लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली. भाभा ने उस कैवेंडिश लाइब्रेरी में भी काम किया है, जहां कई बड़ी खोज की जा चुकी है.

जब वर्ल्ड वॉर 2 चल रहा था तो होमी जहांगीर भाभा भारत आए हुए थे. भारत से उन्हें इतना लगाव हुआ कि यहीं रहने का मन बना लिया. भारत में होमी भाभा ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में सीवी रमन की लैब में काम करना शुरू किया. जिसके बाद वे मुंबई में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के फाउंडर और डायरेक्टर बने.

भाभा का मानना था कि अगर भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में आगे बढ़ना है तो अपनी परमाणु क्षमताएं को विकसित करना होगा, और साथ ही एक एटम बम भी विकसित करना होगा. होमी भाभा ने अपने करीबी दोस्त और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि सिर्फ साइंस ही प्रगति का रास्ता है.

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