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चुनाव में दक्षिण बिहार में बीजेपी नीत एनडीए को मिली हार पर भारी मंथन हो रहा है। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार एनडीए की 9 सीटें घट गईं। खासकर मगध और शाहाबाद क्षेत्र की अधिकतर सीटों पर महागठबंधन के आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई माले उम्मीदवारों की जीत हुई।

लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट में सामने आया है कि जातिगत समीकरण, टिकट बंटवारा और स्थानीय मुद्दों की वजह से बीजेपी और एनडीए को दक्षिण बिहार में नुकसान हुआ। औरंगाबाद में आरजेडी का कोइरी फैक्टर काम कर गया। इससे काराकाट में पवन सिंह के निर्दलीय लड़ने से राजपूत उनके पक्ष में हो गए और कुशवाहा वोटर एनडीए से छिटककर महागठबंधन में चले गए। इसका असर आसपास की सीटों आरा, बक्सर, सासाराम में भी देखने को मिला। वहीं, कुछ सवर्ण जातियों और पासवान वोटरों के भी एनडीए से नाराज होने पर बीजेपी एवं जेडीयू को नुकसान हुआ।

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने पिछले सप्ताह कहा था कि पार्टी राज्य में लोकसभा चुनाव में अपने खराब प्रदर्शन के कारणों का विश्लेषण करेगी। 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में, इस बार बिहार में एनडीए की सीटों की संख्या कम हो गईं। जेडीयू को चार सीटें किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और जहानाबाद में हार का सामना करना पड़ा। वहीं, बीजेपी ने पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर, औरंगाबाद और सासाराम सीट गंवा दी। इस तरह इंडिया गठबंधन 9 सीटें जीतने में कामयाब रहा। जबकि पूर्णिया में निर्दलीय कैंडिडेट पप्पू यादव की जीत हुई।

बिहार में बीजेपी का वोट शेयर भी घट गया। 2019 में बीजेपी को 24 फीसदी वोट मिले थे और 17 में से 17 सीटें पार्टी ने जीती थी। वहीं, 2024 के चुनाव में बीजेपी को 20.52 फीसदी वोट ही मिले और 12 सीटों पर ही जीत मिल पाई। सहयोगी पार्टी जेडीयू के वोट शेयर में भी पिछले चुनाव के मुकाबले 4 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं, दूसरी ओर आरजेडी ने इस चुनाव में सिर्फ चार सीटें जीतीं, लेकिन 22.14 प्रतिशत वोट शेयर मिला, जो राज्य के सभी राजनीतिक दलों में सबसे अधिक है।

लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को बिहार में 45.52% वोट मिले, जबकि महागठबंधन का वोट शेयर 36.47% रहा। बीजेपी का मानना है कि बिहार में कम मतदान और विभिन्न जाति समूहों में विभाजित मतदाताओं की लामबंदी ने चुनाव रिजल्ट को प्रभावित किया है। महागठबंधन ने पहले चरण से ही सभी जातियों को साधने की कोशिश की, जिससे एनडीए का वोट समीकरण गड़बड़ा गया।

बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार में एनडीए की नींव पहले फेज के चुनाव में औरंगाबाद लोकसभा सीट से ही कमजोर हो गई। यहां आरजेडी का कोइरी फैक्टर काम कर गया। औरंगाबाद में बीजेपी के तीन बार के सांसद सुशील कुमार सिंह और आरजेडी के अभय कुशवाहा के बीच सीधा मुकाबला था। माना जा रहा है कि कुशवाहा ने अपनी जाति के कैंडिडेट को वोट किया, जिससे बीजेपी के सुशील सिंह को हार का सामना करना पड़ा।

औरंगाबाद का बदला लेने के लिए काराकाट में राजपूतों ने बड़े पैमाने पर बीजेपी के बागी निर्दलीय कैंडिडेट पवन सिंह का समर्थन किया। इससे एक चेन रिएक्शन बनता चला गया। कुशवाहा कोइरी समुदाय ने सासाराम, आरा और बक्सर में भी एनडीए को वोट नहीं किया। इससे बीजेपी और जेडीयू की सीटिंग सीटें चली गईं।

इसके अलावा, बीजेपी ने स्थानीय उम्मीदवारों की अनदेखी कर बाहरियों को टिकट दिया, जिसका असर भी चुनाव नतीजों पर पड़ा। सासाराम में छेदी पासवान की जगह शिवेश राम, जबकि बक्सर में मौजूदा सांसद अश्विनी चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को उम्मीदवार बनाया गया। बक्सर में स्थानीय आनंद मिश्रा की भी अनदेखी की गई। इससे बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का जोश कम हो गया। साथ ही एनडीए के परंपरागत सवर्ण, कुर्मी, पासवान जैसी जातियों के वोट भी विरोधी उम्मीदवारों के पक्ष में चले गए।

सासाराम से छेदी पासवान का टिकट काटना भी बीजेपी को भारी पड़ा और इससे उनकी जाति के वोटर एनडीए से नाराज हो गए। इसका असर आरा, बक्सर, साराराम और काराकाट में भी देखा गया। इन सीटों पर पासवान वोटरों की संख्या एक लाख से ज्यादा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर बीजेपी के रामकृपाल यादव को अपने कार्यकर्ताओं से दूरी ले डूबी। सारण में फायरिंग की घटना होने के बाद यादव वोटर भी आरजेडी की मीसा भारती के पक्ष में चले गए।

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