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हल्द्वानी: उत्तराखंड में UCC कानून लागू होने के बाद हल्द्वानी के ग्रामीण क्षेत्र में लिव इन रिलेशनशिप के तहत पहला रजिस्ट्रेशन हुआ है. नए नियम कानून के आधार पर शादियों के रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य है. लिहाजा ग्रामीण इलाकों से लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन का पहला मामला आया है, जिसमें उपजिला अधिकारी ने रजिस्ट्रेशन किया है.

बताया जा रहा कि कुमाऊं मंडल का यह पहला मामला है, जहां UCC (Uniform Civil Code) के तहत रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन करने का पहला मामला सामने आया है. एसडीएम परितोष वर्मा ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में लिव इन रजिस्ट्रेशन का पहला मामला पंजीकृत कर लिया गया है

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.उन्होंने बताया कि महिला विधवा है और उसका एक बच्चा भी है. एसडीएम हल्द्वानी परितोष वर्मा ने बताया कि यह रजिस्ट्रेशन शुक्रवार को कराया गया है. बता दें कि लिव-इन-रिलेशनशिप को रजिस्टर करने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होता है. आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करने की प्रक्रिया 30 दिनों में पूरी करनी होती है.

अभी तक के आंकड़ों पर एक नजर:

  1. उत्तराखंड में अब तक समान नागरिक संहिता पोर्टल पर 21 लोगों ने लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन करवाया है.
  2. वहीं 66365 लोगों ने शादी का रजिस्ट्रेशन करवाया हैं.
  3. वसीयत वारिश रजिस्ट्रेशन 207 लोगों ने करवाया है.
  4. जबकि तलाक के लिए 62 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है.
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यूसीसी के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने का काम शहरी इलाके में नगर आयुक्त (रजिस्ट्रार) को दिया गया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में एसडीएम को जिम्मेदारी दी गई है. बता दें कि उत्तराखंड में 27 जनवरी को यूसीसी लागू किया गया था. तभी से ये नियम है कि उत्तराखंड में लिव इन में रहने के लिए आपको रजिस्ट्रेशन कराना होगा.

यदि कोई जोड़ा लिव इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं कराता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, जिसमें 6 माह की सजा से लेकर 25 हजार रुपए दंड अथवा दोनों का प्रावधान है. लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को साथ में रहने के लिए अनिवार्य रूप से पंजीकरण UCC के वेब पोर्टल पर कराना होगा.

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पंजीकरण करने के पश्चात उसे रजिस्ट्रार द्वारा एक रसीद दी जाएगी. इसी रसीद के आधार पर वह युगल किराये पर घर, हॉस्टल अथवा पीजी में महिला मित्र के साथ रह सकेगा. पंजीकरण करने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी. लिव इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उसी युगल की जायज संतान माना जाएगा. इस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे.

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