उत्तराखंड, भीमताल
भीमताल आने वाले सैलानियों की सुरक्षा को लेकर शासन-प्रशासन और पर्यटन विभाग अनजान बने हैं। शुक्रवार को गुजरात से भीमताल घूमने आए एक सैलानी की पैराग्लाइडिंग स्थल पर हुए हादसे में मौत हो गई।इससे पूर्व भी हादसों में सैलानी घायल हो चुके हैं लेकिन सरकार, प्रशासन, पर्यटन विभाग की ओर से पैराग्लाइडिंग स्थलों पर सुरक्षा की दृष्टि से एंबुलेंस, स्ट्रेचर, स्वास्थ्य संबंधी कोई भी उपकरण उपलब्ध नहीं हैं।
शुक्रवार को एक पैराग्लाइडिंग स्थल पर गुजरात के पुष्कर धाम राजकोट निवासी जगदीश भाई (55) अपने परिवार के साथ पहुंचे। पैराग्लाइडिंग के दौरान हुए एक हादसे में जगदीश घायल हो गए। घायल को परिजन और स्थानीय लोग निजी वाहन से हल्द्वानी लेकर पहुंचे। शनिवार शाम सैलानी की एक निजी अस्पताल में मौत हो गई। सैलानी की बेटी पोरम ने बताया था कि एंबुलेंस नहीं मिलने से एक निजी कार चालक की मदद से उनके पिता को अस्पताल पहुंचाया गया। परिजनों की ओर से अभी पुलिस को कोई तहरीर नहीं सौंपी गई है।
एंबुलेंस, स्ट्रेचर और प्राथमिक किट नहीं है उपलब्ध
भीमताल और नौकुचियाताल में 12 कंपनियां पैराग्लाइडिंग का संचालन करती हैं। पैराग्लाइडिंग करने आने वाले सैलानियों की सुरक्षा के लिए कंपनियों के पास एंबुलेंस, स्ट्रेचर और प्राथमिक किट समेत कोई सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं हैं। कोई हादसा होने पर सैलानी को निजी वाहन से अस्पताल पहुंचाया जाता है। पर्यटन विभाग की ओर से अब तीन जगह से पैराशूट उड़ान भरने और तीन जगह पैराशूट के उतरने की अनुमति दी गई है।
पैराग्लाइडिंग कंपनियों की ओर से सरकार और प्रशासन से एंबुलेंस और प्राथमिक किट उपलब्ध कराने की मांग रखी गई है। मांग पूरी करने के लिए जल्द सीएम, पर्यटन मंत्री, विधायक और पर्यटन सचिव से मुलाकात की जाएगी।
– नितिन राणा, पैराग्लाइडिंग संचालक
सरकार और प्रशासन को पैराग्लाइडिंग कंपनियों को सहयोग करने के लिए आगे आना चाहिए। इसके लिए एंबुलेंस, स्ट्रेचर और अन्य स्वास्थ्य संबंधी उपकरण उपलब्ध कराने चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की कोई दुघर्टना न घट सके।
– विपिन पांडे, पैराग्लाइडिंग संचालक
भीमताल में शुक्रवार को पैराग्लाइडिंग करते समय सैलानी की मौत नहीं हुई है। जानकारी के दौरान पता चला है जिस समय हादसा हुआ उस समय सैलानी फोटो खींच रहे थे और फोटो खींचते समय अनियंत्रित होकर वह गिर गए थे। जांच की जा रही है। जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।
– बलवंत कपकोटी, साहसिक खेल अधिकारी