नगर निगम चुनाव में जाती, धर्म की राजनीति पूरी तरह से हावी रही। पिछली बार समाजवादी पार्टी के शुएब अहमद ने मुकाबले को निर्णायक बना दिया था। या कहें उनके चुनाव लड़ने से भाजपा को काफी लाभ मिला था। शुएब को करीब 9300 वोट मिले थे। भाजपा करीब 11200 वोट से चुनाव जीती थी। अगर पिछली बार सपा चुनाव नहीं लड़ती को भाजपा की जीत करीब 1500 से 1800 वोटों तक ही होती। इस बार शुएब कांग्रेस के पक्ष में चुनाव लड़ने से पीछे हट गए। मुकाबला पूरी तरह से दो दलों का हो गया।
भाजपा ने जमकर धर्म का मुद्दा उठाया, जिससे शुएब के बैठने का असर कम किया जा सके लेकिन कांग्रेस ने भी जमकर प्रचार किया। 2.42 लाख की आबादी वाले नगर निगम क्षेत्र में करीब 1.38 लाख लोगों ने मतदान किया है। मेयर पद पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के अलावा आठ उम्मीदवार खड़े हैं। ऐसे में इतना तो दिख ही रहा है कि जिस पार्टी को भी चुनाव जीतना है उसे करीब 70 से 80 हजार वोट लाने होंगे। राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस बार जीत का अंतर पांच से 10 हजार वोटों के अंदर ही सिमट सकता है। ऐसे में किसी भी पार्टी की जीत का दावा नहीं किया जा सकता है।
अगर 50 प्रतिशत के आसपास ही मतदान होता तो भाजपा के विपक्ष में यह बात जाती लेकिन मतदान भी करीब 57.23 प्रतिशत हुआ है। यह अच्छी वोटिंग प्रतिशत है लेकिन इतनी भी नहीं है कि भाजपा प्रत्याशी चैन की नींद सो लें। कुल मिलाकर जनता का मूड देखकर लग रहा है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस में बहुत ही करीबी मुकाबला देखने को मिल सकता है।